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दादरी से दिल्ली तक समाज का स्वरुप

***.......सीधी खरी बात.......***
***.......सीधी खरी बात.......***
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देश में पिछले कुछ वर्षों से अनियोजित परन्तु संगठित अपराधों में आम लोगों को मारे जाने की घटनाएं बढ़ती हुई नज़र आ रही हैं उन्हें केवल जाति, भाषा, धर्म के आधार पर रेखांकित करने से समस्या के मूल में नहीं पहुंचा जा सकता है. आज समय की मांग है कि इस तरह की गतिविधियों से निपटने के लिए सामाजिक स्तर पर गम्भीर प्रयास शुरू किये जाएँ क्योंकि जब तक समाज में एक दूसरे के साथ सामंजस्य बिठाकर आगे बढ़ने की सौम्यता नहीं आएगी तब तक कहीं न कहीं से दिल्ली जैसे अपराध होते ही रहने वाले हैं. यह घटना अराजकता का एक नमूना भर ही है जिसमें छोटी सी बात पर कुछ लोग इकठ्ठा होकर एक व्यक्ति को जान से मारने तक पहुँच जाते हैं और पुलिस या समाज के हाथों में ऐसे व्यक्ति की रक्षा करने के लिए कुछ भी नहीं रह जाता है. वैसे तो इस तरह की घटना कहीं भी हो सकती है पर जिस तरह से दिल्ली में यह सब हुआ उसके बाद कहीं न कहीं से वहां के स्थानीय नागरिकों और दिल्ली पुलिस की कार्यशैली पर प्रश्नचिन्ह तो लग ही जाता है क्योंकि घटना के बारे में पुलिस को सूचना समय से दी गयी और क्या पुलिस ने समय रहते सही एक्शन लिया आज इस बात को कोई देखना नहीं चाह रहा है.
इस पूरे पहलू में जिस तरह से कुछ लोगों ने सोशल मीडिया का भरपूर दुरूपयोग करना शुरू किया उससे भी यही पता चलता है कि समाज में मौजूद कुछ लोग किस तरह से अत्यन्त संवेदनशील मामलों में भी राजनीति का कोण तलाशना शुरू कर देते हैं जिसका समाज पर और भी बुरा प्रभाव पड़ता है. दिल्ली में इस मसले को लेकर जिस हद तक अफवाहों में नीचता का प्रदर्शन शुरू हुआ उसके बाद दिल्ली पुलिस की एक अधिकारी ने इसे सामान्य झगड़ा बताते हुए इसमें शामिल हिन्दू मुसलमानों की पहचान सार्वजनिक कर दी. उनके इस कदम से जहाँ घटना का साम्प्रदायिकीकरण होने से बचा वहीं उन लोगों की मंशा पर भी पानी फिर गया जो इसके माध्यम से समाज में तनाव बढ़ाने का काम करने में लगे हुए थे. इस मामले में समाज का एक पहलू और भी दिखाई दिया जिसमें मध्य वर्ग और निम्न वर्ग का संघर्ष भी स्पष्ट रूप से राजनैतिक प्रतिबद्धताओं में बंधता हुआ दिखाई दिया तथा गरीबों ने केजरीवाल के पक्ष की बात की और मध्यवर्ग की तरफ से कुछ लोगों ने भाजपा के साथ खड़े होना पसंद किया वह भी कहीं न कहीं से स्थानीय नेताओं की महत्वाकांक्षाओं को ही दर्शाता है. दिल्ली पुलिस ने सूझ बूझ कर परिचय देते हुए इस मुद्दे पर संभावित राजनीति का खेल अचानक ही खत्म कर दिया जो कि बहुत आवश्यक भी था.
दिल्ली में अब आप और भाजपा के साथ कांग्रेस को भी इस बात का ख्याल रखना चाहिए कि अपराध चाहे जिस भी व्यक्ति द्वारा चाहे जिस भी परिस्थिति में किया गया हो उसका राजनैतिक तौर पर समर्थन नहीं होना चाहिए जिससे समाज में इस तरह से सामने आने वाली चुनौतियों से आसानी से निपटा जा सके. निश्चित तौर पर संविधान हर राजनैतिक दल को अपने कार्यकर्ताओं के संरक्षण की अनुमति देता है पर इसके लिए किसी भी तरह से अनैतिकता का समर्थन करने की छूट भी नहीं देता है. यह एक सामाजिक समस्या है और इससे सामाजिक तौर पर ही निपटने की आवश्यकता है क्योंकि यदि इसमें राजनीति का समावेश होता है तो वह समाज के बीच लकीर खींचकर उसे दो पालों में बाँटने का काम ही करती हुई दिखाई देती है. देश में पुलिस की कमी देखते हुए यह आशा नहीं की जा सकती है कि वह हर जगह आसानी से उपलब्ध होगी पर जब उसकी इस तरह की घटनाओं में आवश्यकता हो तो उसकी तरफ से त्वरित कार्यवाही किये जाने की आशा तो की ही जाती है. समाज में अपने को सही साबित करने के लिए इस तरह से भीड़ वाली मानसिकता के साथ किसी की जान लेने को सही नहीं ठहराया जा सकता है. इसमें शामिल और दोषी पाये किसी भी व्यक्ति के लिए भविष्य में सरकारी नौकरी के अयोग्य घोषित कर सरकारी सब्सिडी, मताधिकार और अन्य निशुल्क सुविधाओं से भी वंचित किया जाना चाहिए.

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