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नितीश का इस्तीफ़ा

***.......सीधी खरी बात.......***
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देश की राजनीति में कई बार अच्छे कदम उठाने वाले नेता भी हताशा में जिस तरह से बेकार की कवायद करने में लग जाया करते हैं उस परिस्थिति में नितीश जैसे घाघ नेता का अपने पद से इतनी आसानी से इस्तीफ़ा किसी बड़े ध्रुवीकरण का संकेत ही देता है क्योंकि अभी तक जिस तरह से देश के उत्तरी राज्यों में बहुध्रुवीय राजनीति के माध्यम से सभी दल समय समय पर उसके लाभ उठाते रहे हैं उससे देश का पीछा आसानी से नहीं छूटने वाला है. यदि केवल बिहार की ही बात की जाये तो नितीश के काम काज को लगभग डेढ़ दशक तक चलने वाली उस अराजकता से बहुत अच्छा ही माना जाता है जिसमें लालू ने अपने जातीय समीकरणों के माध्यम से पहले से ही पिछड़े बिहार को और भी पीछे धकेलने का काम ही किया था और भाजपा के साथ उसके गठबंधन के बाद नितीश ने ज़मीनी स्तर पर बड़े बदलाव कर पाने में सफलता भी पायी थी और उनके सुशासन को बिहार की जनता ने महसूस भी किया था.
इस समय जिस तरह से अपने मतों को बंटने से रोकने के लिए उनके द्वारा इस्तीफ़ा दिया गया है उसका बहुत बड़ा लाभ दीर्घकाल में मिलने की बहुत कम सम्भावना दिखाई देती है क्योंकि भाजपा के खिलाफ बिहार में इस तरह से सभी दलों के गठबंधन को बनाने के स्थान पर यदि बेहतर शासन देने की कोशिशें जारी रखी जाएँ तो उसका प्रभाव जनता पर पड़ सकता है. भाजपा की लोकसभा चुनावों में बिहार में मज़बूती देखने के बाद अब नितीश को भी लगने लगा होगा कि यदि वे भाजपा के साथ ही बने रहते तो उनको इस तरह से चिंतित होने की आवश्यकता नहीं पड़ती पर अब जब समय जा चुका है तो केवल भाजपा को घेरने के लिए इस तरह की रणनीति कितनी कारगर रहने वाली हैं यह तो समय ही बताएगा क्योंकि नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली भाजपा सरकार के लिए देश की जनता ने जिस तरह से अपना स्पष्ट समर्थन दिया है उसके बाद अगले तीन वर्षों तक उनकी लोकप्रियता को कोई खतरा भी नहीं है और उनके गुजरात के काम काज के तरीकों को देखते हुए बहुमत की सरकार चलने में नीतिगत समस्या भी नहीं आने वाली है.
इस समय जिस तरह से गैर भाजपा आम जनमानस को अपने पक्ष में करने की कोशिशें की जा रही हैं उनका अभी भले ही कोई मतलब निकल पाये पर आने वाले समय में इस पूरे गठबंधन पर हमला करना भाजपा के लिए आसान ही होने वाला है क्योंकि सीटों के बंटवारे के समय जिस तरह से सभी दल अपने हितों को साधने की कोशिशें करने वाले हैं उसमें बिहार का ही नुकसान होने वाला है. बिहार में जिस तरह से सभी नेताओं की महत्वाकांक्षा स्पष्ट ही है उसमें केवल लालू ही सीएम नहीं बन सकते हैं बाकी इस भीड़ में शामिल बहुत सारे लोग अपने करतब दिखाने से बाज़ भी नहीं आने वाले हैं. नितीश की सरकार पर वैसे तो कोई बड़ा खतरा नहीं था पर जिस तरह से उन्होंने एक बड़ा दांव खेला है वह पूरी तरह से उल्टा भी पड़ सकता है क्योंकि इस बार भाजपा के खिलाफ जाकर उन्होंने अपने दम पर चुनावों में जाने की कोशिश की तो जनता ने मोदी लहर में उन्हें एक तरह से नकार ही दिया है. बिहार में आने वाले दिन सुशासन की तरफ जायेंगें या राजनैतिक जोड़तोड़ की तरफ यह अभी भविष्य के गर्भ में ही है.

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