Menu
blogid : 488 postid : 1166209

न्यायाधीशों की कमी और न्याय

***.......सीधी खरी बात.......***
***.......सीधी खरी बात.......***
  • 2165 Posts
  • 790 Comments

देश की आबादी के अनुरूप हर क्षेत्र में संसाधनों की कमी से जूझने के बीच एक नयी तरह की समस्या भी सामने आ रही है जो देश के पहले से ही धीमी न्यायिक प्रक्रिया पर और भी ग्रहण लगाने का काम करने वाली है. यह बात सर्व विदित है कि अभियोजन से लगाकर न्याययिक प्रक्रिया पूरी होने के बीच में जो सबसे बड़ी बाधा आती है यह कहीं न कहीं से न्यायालयों और जजों की संख्या पर ही टिक जाती है क्योंकि जब तक देश की आबादी के अनुसार न्यायालयों की संख्या और जजों की नियुक्ति के लक्ष्य को पाने में हम सफल नहीं होते हों तब तक किसी भी स्तर पर त्वरित न्याय को आसान नहीं किया जा सकता है. आज हर क्षेत्र में सभी लोग देश की न्यायिक प्रक्रिया पर तो आसानी से ऊँगली उठा देते हैं पर इस बात पर कोई भी विचार नहीं करना चाहता है कि इस पूरी परिस्थिति के लिए केवल न्यायालय ही दोषी नहीं हैं क्योंकि उनके पास काम का इतना अधिक बोझ है कि वे चाहकर भी इस पूरी प्रक्रिया को तेज़ नहीं कर सकते हैं और जब तक इस समस्या को सुलझाने के लिए युद्ध स्तर पर प्रयास नहीं किये जाएंगें तब तक यह बैकलॉग बढ़ता ही जाना है.
यदि आज की परिस्थिति पर गौर किया जाये तो निचली अदालतों में ४६००, हाई कोर्ट्स में ४६२ तथा सुप्रीम कोर्ट में ६ पद खाली हैं जिससे स्थिति का आंकलन भी किया जा सकता है. कोलेजियम विवाद और जजों की नियुक्तियों में पेंच फंसने के बाद ऊपरी अदालतों में और भी समस्या उत्पन्न हो गई है क्योंकि वहां पर नियुक्ति कर पाना अब उतना आसान नहीं रह गया है जिसका दुष्परिणाम सभी के सामने है. जजों और अदालतों पर काम का इतना बोझ बन चुका है कि अब इस समस्या से निपटने के लिए नए सिरे से सोचने की आवश्यकता भी है क्योंकि जब तक जजों और अदालतों की संख्या को आबादी के अनुरूप नहीं किया जायेगा तब तक मौजूदा ढांचे से त्वरित न्याय की आशा कैसे की जा सकती है ? जब अन्य क्षेत्रों में आबादी के अनुसार संसाधनों को लगातार बढ़ाये जाने की नीति पर काम किया जा रहा है तो न्याय प्रक्रिया को उससे अलग कैसे रखा जा सकता है और इस समस्या का समाधान भी एक नयी नीति के तहत ही निकाला जा सकता है जिसमें छोटे विवादों को तहसील स्तर पर ही समुचित समाधान के साथ समाप्त करने को प्राथमिकता दी जानी चाहिए तथा पंचायत स्तर के विवादों को वहीं पर सुलझाने की कारगर नीति भी बनायीं जानी चाहिए.
यदि हाई कोर्ट्स पर लॉ कमीशन की रिपोर्ट देखी जाये तो हाई कोर्ट को ब्रेकइवन तक लाने के लिए ५६ और बैकलॉग को समाप्त करने के लिए ९४२ जजों की आवश्यकता पड़ने वाली है तो इस स्थिति में न्यायिक प्रक्रिया का हाल समझा भी जा सकता है. पैनल ने पाया कि यदि केवल बिहार में तीन साल का बैकलॉग ख़त्म करना है तो १६२४ अतिरिक्त जजों की आवश्यकता पड़ने वाली है जो कि आज की परिस्थिति के अनुसार बहुत ही कम लगती है. ऐसी परिस्थिति से निपटने के लिए देश भर में उन जिलों को चिन्हित किया जा सकता है जहाँ लंबित मुक़दमों की संख्या कम है और वहां पडोसी जिलों से विशेष रूप से गठित अदालतों के लिए कुछ करने की आवश्यकता है जिससे इन जिलों में तो लक्ष्य को पाया जा सके और फिर पडोसी जिलों के जजों को अन्य जिलों में नियमित सुनवाई के लिए लगाया जाना चाहिए. इस अस्थायी व्यवस्था से जहाँ कुछ जिलों में स्थिति को सुधारने की तरफ कदम बढ़ाया जा सकता है वहीं आने वाले समय में और अधिक जिलों में त्वरित न्याय को देने में सफलता भी मिल सकती है. तहसीलों में विशेष अदालतों में छोटे विवादों को निपटाने की कोशिशें तो नियमिति रुप से शुरू ही की जा सकती हैं जिनसे अदालतों का अनावश्यक बोझ कम करने में मदद भी मिल सकती है.

Read Comments

    Post a comment

    Leave a Reply

    Your email address will not be published. Required fields are marked *

    CAPTCHA
    Refresh