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पनसारी गाँव- आदर्श और विकसित

***.......सीधी खरी बात.......***
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गुजरात के साबरकांठा ज़िले के ५००० हज़ार की आबादी वाले एक छोटे से गाँव ने अपने युवा सरपंच के सपनों के साथ जिस तरह से आगे बढ़ने के संकल्प लिया आज उसके परिणामों से पूरी दुनिया के सामने ऐसा गाँव आया है जो किसी भी तरह की अनावश्यक बाहरी सहायता के साथ विकसित नहीं हुआ है. आज देश के हर ग्राम में उसी तरह से धन का आवंटन किया जाता है पर पनसारी ने जो विकास गाथा शुरू की है हेमंत पटेल की अगुवाई में वह बहुत आगे तक जाने वाली है. मात्र २३ वर्ष की उम्र में पंचायत का चुनाव जीतने वाले स्नातक हेमंत ने ग्राम सभा के लिए जिस तरह से विकास का खाका खींचा और पूरी पंचायत से उन्हें पूरा समर्थन भी मिला उसके बाद ही यह गाँव अपने आप में बड़े बड़े शहरों को भी मात देने में लगा हुआ है २०१२ में केन्या की एक टीम ने नैरोबी से आकर इसका अध्ययन किया और अपने यहाँ के गांवों में भी इसी तरह से विकास की कहानी को आगे बढ़ाने की कोशिशें शुरू करने की बात की और उस पर काम भी शुरू किया.
गांव में सुविधा के नाम पर जो सूची शुरू होती है वह ख़त्म होने का नाम ही नहीं लेती है आज वहां पर सरकारी स्कूल में एसी के साथ स्मार्ट क्लास चलती हैं जिससे इस स्कूल में बच्चों की संख्या ३०० से बढ़कर ६०० हो गयी है. गाँव का अपना वाईफाई सिस्टम है और पूरे गांव पर नज़र रखने के लिए २५ क्लोज सर्किट कैमरे भी लगे हुए हैं. इस सबसे बढ़कर गांव का अपना लोकल बस तंत्र भी है जो गांव वालों को हर तरह की सुविधा प्रदान करता है. मात्र ४ रूपये में २० लीटर पानी गांव के संयंत्र से ही बनाकर गांव वालों के लिए उपलब्ध किया जाता है जिससे पीने के पानी की समस्या भी ख़त्म हो गयी है. गांव का अपना प्रसारण तंत्र भी है जिसके लिए १२० स्थानों पर लाऊड स्पीकर लगे हुए हैं जिससे सरपंच गांव के लिए महत्वपूर्ण योजनाओं के बारे में तय समय पर जनता को बताते हैं और उनके लिए निर्देश भी जारी करते हैं. कैमरों के माध्यम से गाँव में गंदगी फ़ैलाने वालों पर भी नज़र रखी जाती है और दोषियों के लिए सजा का भी प्रावधान किया गया है.
देश में जिस पंचायती राज की स्थापना का सपना महात्मा गांधी ने देखा था और उसके अनुपालन में राजीव गांधी के कार्यकाल में जिस तरह से पंचायती राज को कानून के रूप में लाया गया था उसके बाद गांवों में विकास की कहानी कुछ इस तरह की ही होनी चाहिए थी पर सरकारी स्तर पर व्याप्त भ्रष्टाचार और गांवों में बढ़ते हुए धन के आवंटन ने हर तरह से छोटे स्तर के नेताओं को गांव के बारे चुनाव के बारे में सोचने के लिए मजबूर कर दिया जिसके बाद सारे आवंटित धन की बंदरबांट शुरू हो गयी. हेमंत पटेल ने गांव को अपने दम पर ही विकसित करने का जो जज़्बा दिखाया और उस सबसे ऊपर उन्होंने गांव की भलाई के लिए जिस तरह से सोचना शुरू किया उसके बाद उन्हें गांव के लोगों का भी पूरा समर्थन मिला जिससे भी उनके हौसले में बढ़ोत्तरी हुई. काश आज पीएम द्वारा आदर्श गाँव की संकल्पना पर हमारे सांसद इस तरह से विचार करना शुरू कर सकते और तेज़ तर्रार युवा सरपंचों को पूरा सहारा देते जिससे हर ब्लॉक में कम से कम तीन चार गांव तो अपने दम पर ही हर वर्ष विकास की रफ़्तार पकड़ने की तरफ बढ़ जाते.

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