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पवार की पॉवर ?

***.......सीधी खरी बात.......***
***.......सीधी खरी बात.......***
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कृषि मंत्री शरद पावर ने मनमोहन सिंह से मिलकर जिस तरह से अपने काम के बोझ को कम करने को कहा है वह शायद भारत के इतिहास में पहली बार ही हुआ होगा क्योंकि अभी तक किसी भी तरह का दबाव बनाने में सक्षम नेता पॉवर बढ़ाने की बातें ही किया करते हैं. अगर देखा जाये तो कृषि मंत्रालय के साथ ही न्याय करने के लिए उनके साथ कम से कम २ राज्य मंत्री हो होने ही चाहिए पर खाद्य वितरण और उपभोक्ता मामले का मंत्रालय भी पावर को ही देखना पड़ता है. आखिर कल तक अधिकार बढ़ाने की मांग करने वाले पावर का ह्रदय परिवर्तन हो गया या फिर वे अपने मंत्रालय की किरकिरी से बचने के लिए फिर से दबाव की राजनीति करना चाह रहे हैं ? देश में मंहगाई एक मुद्दा तो है पर जिस तरह से पिछले वर्षों में इससे कृषि मंत्रालय ने अपना पीछा छुड़ाने की कोशिश की वह दुर्भाग्यपूर्ण है.

आखिर अचानक ऐसा क्या हो गया है जिसके चलते पावर को यह दिखाई दिया कि उनके पास बहुत काम है ? कहीं ऐसा तो नहीं अगले कुछ दिनों में वे अपनी जिम्मेदारियां धीरे धीरे अपनी बेटी सुप्रिया को सौंपना चाहते हों और अपने स्वास्थ्य और अन्य कारणों का हवाला देकर फिलहाल वे इस सत्ता शक्ति हस्तांतरण की शुरुआत करना चाहते हों ? सुप्रिया के आगे आने में कोई बुराई नहीं है पर जिस तरह के हथकंडे अपनाये जा रहे है उनका समर्थन तो नहीं किया जा सकता है ? कहीं ऐसा तो नहीं वे भारत में सरकार से जुड़ा अपना राजपाट सुप्रिया को सौंप खुद क्रिकेट की दुनिया के आनंद को उठाना चाहते हैं क्योंकि अब वे क्रिकेट की सर्वोच्च संस्था के अध्यक्ष भी बन गए हैं ?

कोई भी फैसला करने के लिए सभी स्वतंत्र हैं पर किसी भी स्थिति में इस तरह जब एक सरकार अपना काम ठीक ढंग से कर रही हो तब उसे पावर जैसे अनुभवी व्यक्ति की बहुत ज़रुरत है उस समय उनका इस तरह से कुछ भी कहना अच्छा सन्देश नहीं देता है. इस सरकार में अगर सबसे व्यस्त मंत्री कोई है तो वे प्रणब दा पर आज तक उनके मुंह से ऐसा कुछ भी नहीं निकला है जो सरकार के लिए समस्या बन जाये ? ये वही प्रणब हैं कि जिनका अगर भाग्य ने साथ दिया होता तो वे १९८४ में ही देश के प्रधान मंत्री बन गए होते ? फिर भी जिस समर्पण से और समय बद्ध तरीके से वे अपना काम निपटते हैं उसे देखकर नए राजनेताओं को कुछ सीखना भी चाहिए.

फिलहाल तो कारण चाहे जो भी हो पावर ने इस तरह की बात करके कहीं इस बात को उछाल ही दिया है कि कहीं न कहीं उनकी पार्टी एनसीपी पर कोई दबाव बन रहा है और उसको कम करने के लिए ही हो सकता है कि इस मराठा क्षत्रप ने यह दांव खेल दिया हो जिससे आने वाली किसी भी बात को ज़ोरदार ढंग से उठाया जा सके. वैसे भी यदि वे वास्तव में काम कम करना चाहते हैं तो कोई ऐसा मंत्रालय भी मांग सकते हैं जिसमें काम करने में उन्हें अधिक कठिनाई न हो.

मेरी हर धड़कन भारत के लिए है…

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