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पेंशन योजनाओं का स्वरुप

***.......सीधी खरी बात.......***
***.......सीधी खरी बात.......***
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केंद्रीय बजट में पेंशन संबंधी किये गए कुछ बदलावों के विरोध में एकदम से सरकार के खिलाफ इस तरह का माहौल बन जायेगा यह सरकार ने इस प्रावधान को करते समय सोचा भी नहीं था क्योंकि अभी तक सरकारी, निजी क्षेत्र के कर्मचारियों को सेवानिवृत्ति के बाद अपने फण्ड को उपयोग में लाने के लिए हर तरह के विकल्प खुले रहा करते थे अब सरकार की तरफ से उन पर भी दबाव बनाने की कोशिशें की जा रही हैं. बेशक किसी भी सरकार को देश के विभिन्न क्षेत्रों के विकास के लिए नियमों में संशोधन करने के असीमित अधिकार देश का संविधान दिया करता है पर अपने जीवन भर की कमाई के उपयोग पर भी सरकार किसी को बेवजह टैक्स का दायरे में लेकर कैसे खड़ा कर सकती है ? जिस व्यक्ति को अपने जीवन के अंतिम वर्षों में आर्थिक सुरक्षा की गारंटी देने के लिए ही इस योजना को १९५२ में शुरू किया गया था और इसमें मिलने वाले लाभ को हर तरह के टैक्स दायरे से अभी तक मुक्त ही रखा गया था उसके बाद इस तरह का प्रावधान आखिर सरकार की किस मंशा को प्रदर्शित करता है ?
जिस एन्युटी स्कीम में सेवानिवृत्ति के बाद लोगों को पैसा लगाने के लिए मजबूर किये जाने का प्रावधान इसमें हो रहा वह केवल बीमा क्षेत्र के लिए ही लाभकारी साबित हो सकता है क्योंकि जब तक इस समस्या से निपटने के लिए अन्य विकल्पों पर विचार नहीं किया जायेगा तब तक कर्मचारियों के लिए अधिक विकल्प नहीं बच रहे हैं. कर्मचारी या तो टैक्स चुकाएँ या फिर टैक्स बचाने के लिए किसी भी एन्युटी स्कीम का सहारा लें क्योंकि उनके पैसे को सरकार उनके अनुसार खर्च करने के विकल्पों को बंद करने पर काम करना शुरू कर चुकी है. अच्छे वेतन पाने वाले लोगों के लिए टैक्स विकल्पों में अन्य तरह एक प्रावधान किये जा सकते हैं पर सरकार उनको रोकने के लिए सभी पर नए तरह के नियम लागू करना चाहती है जिसका किसी भी स्तर पर खुला समर्थन नहीं किया जा सकता है क्योंकि अभी तक बहुत सारे कर्मचारी इस जुगत में रहा करते हैं कि फण्ड मिलने पर वे कुछ कर सकेंगें और इसके चलते वे कई बार बैंक आदि से ऋण भी ले लिया करते हैं पर इस नए प्रावधान से इन लोगों के सामने विकल्प खत्म होने की तरफ भी जा सकते हैं.
सरकार को इस बारे में एक बार फिर से विचार करने पर मजबूर होन पड़ सकता है क्योंकि देश में इस योजना में बदलाव से प्रभावित होने वाले लगभग ६ करोड़ लोगों के बारे में सोचना भी उसकी ही ज़िम्मेदारी भी है. सरकार पर इस सबके लिये राजनैतिक, सामाजिक और अन्य तरह एक दबाव भी पड़ सकते हैं और जिस तरह से वित्त मंत्री का यह दांव उल्टा पड़ गया लगता है और उन्होंने इसीलिए इसे पीएम पर छोड़ दिया है उसके बाद यही लगने लगा है कि आने वाले समय में पीएम इस पर पुनर्विचार करते हुए इसे वापस लेने की घोषणा भी कर सकते हैं. वित्त मंत्री संभवतः अपने को सख्त दिखाना चाहते हैं और इसे वापस लेने का श्रेय पीएम को देना चाहते हैं जिससे सरकार को छवि पर भी बुरा प्रभाव न पड़े और कर्मचारियों के हितों की रक्षा भी की जा सके. ६० साल की उम्र के बाद किसी भी व्यक्ति के पास जब शांति से जीने के विकल्प होने चाहिए और जीवन भर उसकी लगातार की गयी छोटी बचत को उसके हिसाब के खर्च करने के विकल्प भी होने चाहिए यह सरकार को समझना भी चाहिए.

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