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यूपी फिर अस्सी के दशक में

***.......सीधी खरी बात.......***
***.......सीधी खरी बात.......***
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सहारनपुर की घटना के बाद यूपी में एक बार फिर से वही सब होता दिख रहा है जिसके लिए कभी वह जाना जाता था और आज हर शहर और गाँव में किस तरह से लगातार तनाव बढ़ता ही जा रहा है इस पर भी खुद समाज को कुछ करने की आवश्यकता है. हिंसाग्रस्त कोई भी क्षेत्र हो पर हर जगह पुलिस और प्रशासन की अक्षमता या ऊपर के अघोषित निर्देशों के चलते ही हालात बेकाबू हो जाते हैं और उसके बाद अजीब तरह से बयानबाज़ी भी शुरू कर दी जाती है जो किसी भी तरह से मामले को शांत करने के स्थान पर अराजकता की तरफ ही ले जाती है. सहारनपुर में विवादित स्थल के बारे में हाई कोर्ट के निर्देशों के बाद भी प्रशासन ने जिस तरह से लापरवाही की वैसी मिसाल कहीं और नहीं मिल सकती है क्योंकि जब इस जगह पर मामला इतना संवेदनशील था तो आदेश के बाद सरकार और प्रशासन को दोनों पक्षों को बैठाकर आगे की रणनीति बनानी चाहिए थी पर इसमें वह पूरी तरह से फेल ही रहा.
सरकार एक तरफ मलाला के नाम पर पूरे प्रदेश में महिलाओं को सम्मान देने की बात करती है पर केवल जैसी घटनाएँ पूरे प्रदेश के हर नुक्कड़ पर घटती रहती हैं तो क्या स्थानीय पुलिस प्रशासन को यह काम प्राथमिकता में नहीं लेना चाहिए जिससे छेड़छाड़ जैसी घटनाएं भी सांप्रदायिक रूप न लेने पाएं ? नॉएडा में एक सब्ज़ी वाले द्वारा दस वर्ष की लड़की को छेड़े जाने पर कल ही विवाद हुआ है तो सरकार महिलाओं के लिए क्या कर रही है और क्या उसका सन्देश अधिकारियों तक पहुँच भी पा रहा है या नहीं ? अखिलेश के युवा होने से जहाँ उनसे जनता को बहुत उम्मीदें थीं वहीं उन्होंने कुछ मामलों में कड़े निर्णय कभी भी नहीं लिए और हर बार सरकार को नीचा ही देखना पड़ा है. क्या कारण है कि पूरे यूपी से सफाया होने के बाद भी सपा कानून व्यवस्था को आज भी पानी प्राथमिकता में नहीं ले पायी है और महिलाओं के खलाफ अत्याचार के साथ सांप्रदायिक संघर्षों की बाढ़ आती जा रही है ?
प्रदेश में बसपा सरकार ही समय भी इस तरह की बातें होती थीं पर सरकार कभी भी पूरी तरह से गायब नहीं दिखाई दी और इन्हीं अधिकारीयों के भरोसे कानून व्यवस्था को आज की स्थिति से अच्छी तरह से संभाला गया था. सहारनपुर में भी जिस तरह से डीएम और एसपी लखनऊ से निर्देशों का इंतज़ार करते रहे और उनके सामने ही दंगाइयों ने फायर ब्रिगेड और पुलिस चौकी को भी आग के हवाले कर दिया गया उससे उनकी प्रशासनिक क्षमताओं का ही पता चलता है इन लोगों क वहां से अविलम्ब हटाया भी जाना चाहिए क्योंकि जो लोग इतने ढीले तेवरों के साथ उग्र भीड़ में जायेंगें तो उनकी जान भी खतरे में हो सकती है और सरकार को एक और शर्मिंदगी उठानी पड़ सकती है. आगज़नी पर आठ घंटे तक प्रशासन कुछ भी न कर पाये तो ऐसे लोगों को ज़िले का चार्ज क्यों दिया जाना चाहिए इस तरह से हर बार ही जिला स्तरीय अधिकारी पूरी तरह से नाकाम साबित होते रहे हैं और प्रदेश वैमनस्यता की आग में सुलगता ही रह जाता है.

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