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यूपी – मंदिरों पर सरकारी नियंत्रण

***.......सीधी खरी बात.......***
***.......सीधी खरी बात.......***
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लम्बे समय के बाद यूपी की अखिलेश सरकार ने जिस महत्वपूर्ण बात का संज्ञान लिया है उसका बिना किसी भी दलीय या धार्मिक राजनीति के केंद्र सरकार को भी समर्थन करना चाहिए क्योंकि भारत में आज यदि महत्वपूर्ण मंदिरों की दुर्दशा है तो उसका कारण सिर्फ वहां के चढ़ावे को लेकर स्थानीय परंपरागत पुजारियों, सेवायतों और पूजा प्रसाद को बेचने वाले लोगों के गठजोड़ ही हैं जिनके चलते ही कुछ भी सही नहीं रहा पाता है. आज यदि अखिलेश सरकार इस बात के लिए सोचने को मजबूर हुई है तो इसके लिए क्या कारण रहे हैं इन पर विचार किये बिना कुछ भी कह पाना मुश्किल ही है क्योंकि जब भी महत्वपूर्ण देव स्थान की व्यवस्था निजी तौर पर संभाली जाती है तो उसमें बहुत सारे लोग भी शामिल होते हैं जिनमें से बहुत हद तक पूरी तरह से समर्पित लोगों के साथ कुछ स्वार्थी तत्व भी अपना स्थान पाने में सफल हो जाते हैं जिसका सीधा दुष्प्रभाव इन देव स्थानों में आने वाले श्रद्धालुओं को ही भुगतना पड़ता है और बिना सरकारी नियंत्रण के चलने वाले ऐतिहासिक एवं प्राचीन मंदिरों की क्या स्थिति रहती है यह किसी से भी छिपी नहीं है. एक समय माता वैष्णव देवी मंदिर के लिए भी सरकार को इसी तरह का विरोध झेलना पड़ा था पर आज उस बोर्ड की व्यवस्था के सभी कायल हैं और अन्य स्थानों में उसका उदाहरण देने से भी नहीं चूकते हैं.
आम तौर पर धर्म से जुड़ा हुआ मसला होने के कारण केंद्र और राज्य सरकारें इसमें दखल देने से बचना ही चाहती हैं पर जिस तरह से आज इन स्थानों पर खुली लूट शुरू हो चुकी है और देश विदेश से आने वाले श्रद्धालुओं को दी जाने वाली आम सुविधाओं को लेकर ये स्थान पूरी तरह से किसी भी मानक पर खरे नहीं उतर पाते हैं उसके बाद अब इस बात की आवश्यकता महसूस की जाने लगी है कि यूपी के मिर्ज़ापुर के विंध्यवासिनी और मथुरा के बांके बिहारी मंदिर के अधिग्रहण की बातें शुरू हो चुकी हैं तब जाकर इन मंदिर के प्रबंधकों को यह धर्म पर हमला दिखायी देने लगा है पर जब श्रद्धालु यहाँ आकर हर तरह से लूटे खसोटे जाते हैं तो उस लूट में सीधे तौर पर दखलं होने के बाद भी यहां की समितियां पूरी तरह से चुप्पी ही लगाये रहती हैं. अब इन महत्वपूर्ण स्थानों को इन दलालों के चंगुल से निकालना बहुत ही आवश्यक है क्योंकि जब तक मंदिर की व्यवस्था एक सही कानून के अंतर्गत नहीं चलायी जाएगी तब तक आम श्रद्धालुओं को सुविधाओं के नाम पर रोज़ ही छला जाता रहेगा. भारतीयों और विशेषकर हिन्दू भारतीयों के लिए श्रद्धा का अनमोल केंद्र होने के बाद भी श्रद्धालु यदि करोड़ों के चढ़ावे वाले मंदिर में सामान्य सुविधाएँ भी न पा सकें तो इन समितियों के औचित्य पर प्रश्नचिन्ह लगना स्वाभाविक ही है.
आज जो भी धार्मिक, व्यावसायिक सामाजिक लोग यूपी सरकार के इस निर्णय का विरोध करने में लगे हुए हैं क्या उन्हें यह नहीं पता है कि निजी क्षेत्र की अपनी बाध्यताएं होने के कारण सामान्य सुविधाएँ भी उपलब्ध नहीं होती हैं जबकि सरकारी नियंत्रण में जाने के बाद उन स्थानों के लिए व्यवस्थाओं को देखने का काम भी जिलाधिकारी और मंडलीय अधिकारीयों के साथ स्थानीय धार्मिक लोगों की समिति के पास चला जाता है और जैसे अभी तक वाराणसी के श्री काशी विश्वनाथ मंदिर ट्रस्ट द्वारा बहुत अच्छी तरह से चलाया भी जा रहा है. इन स्थानों पर वैष्णव देवी, तिरुपति और शिर्डी की तरह सरकारी नियंत्रण वाली समितियां बहुत अच्छा काम कर रही हैं और उनके कामों से वहां जाने वाले श्रद्धालुओं को बहुत सुविधा भी मिलती है तो क्या उस मॉडल पर देश भर के महत्वपूर्ण स्थानों का प्रबंधन सरकारों के हाथों में नहीं होना चाहिए ? आखिर सरकारी नियंत्रण से किन लोगों को समस्या हो सकती है और उस चढ़ावे का सदुपयोग यदि सरकार द्वारा शहर विशेष के विकास के साथ प्रदेश के विकास में भी खर्च किया जाता है तो उससे आखिर किसी को क्या आपत्ति हो सकती है ? जम्मू स्टेशन पर उतरते ही वैष्णवी धाम की सुविधाओं को किसी भी अच्छे होटल से तुलनात्मक रूप से लिया जाये तो यह अपने आप में बहुत अच्छी पहल लगती है पर क्या आज तक बांके बिहारी मंदिर ने श्रद्धालुओं को उतनी सुविधाओं को प्रदान करने की किसी भी कार्ययोजना पर सोचा भी है ?
देश में राजनीति करने वाले लोगों के लिए धार्मिक राजनीति करना भी बहुत अच्छा सौदा साबित होता है और यदि इस बार भी इसे कुछ संगठनों का सहयोग मिल जाये तो कोई आश्चर्य भी नहीं है पर क्या किसी समिति के लिए इतने संसाधनों का ईमानदारी से आने वाले चढ़ावे का सदुपयोग करना संभव है ? यदि ये निजी व्यवस्था कारगर होती तो श्रद्धालुओं को जो प्रसन्नता काशी विश्वनाथ, वैष्णव धाम मंदिर में मिलती है वह इन निजी प्रबंधन वाले स्थानों पर क्यों नहीं मिल पाती है आज इन प्रबंध समितियों के पास सबसे बड़ी पूँजी केंद्र सरकार से हस्तक्षेप करवाने की हो सकती है पर खुद पीएम के गृह राज्य गुजरात में सोमनाथ मंदिर का प्रबंधन भी सरकारी हाथों में ही है और जिसके बारे में उनको बहुत अच्छे से पता भी है तो आशा की जानी चाहिए कि अखिलेश सरकार के इन निर्णय पर केंद्र सरकार और भाजपा किसी भी स्तर पर कोई राजनीति नहीं करेगी क्योंकि धर्म के विकृत स्वरुप के सामने आने के बाद सरकार के पास करने के लिए कुछ अधिक नहीं रह जाता है. यूपी सरकार का यह निर्णय अपने आपमें बहुत ही अच्छा है बल्कि लगे हाथ सरकार को पूरे प्रदेश में स्थित अन्य देव स्थानों तथा देवी शक्तिपीठों के भी इसी तरह का देव स्थान विभाग कानून बनाने के बारे में सोचना चाहिए क्योंकि बात केवल इन्हीं दो स्थानों की नहीं है पूरे प्रदेश ऐसे सैकड़ों स्थान हैं जिनके चढ़ावे का सदुपयोग करके सरकार खुद ही इन नगरों के सर्वांगीण विकास के साथ सफाई आदि की व्यवस्था इनसे होने वाली आय से कर सकती है. धार्मिक मसला होने के बाद भी अखिलेश इस बात के लिए बधाई के पात्र हैं कि उनका ध्यान इस तरफ भी जा रहा है जिससे आने वाले समय में यूपी के धर्म स्थल भी पूरी तरह से आधुनिक सुख सुविधाओं से परिपूर्ण हो जायेंगें.

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