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योग दिवस – बड़े आयोजन और विषमताएं

***.......सीधी खरी बात.......***
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लखनऊ में विश्व योग दिवस पर आयोजित किये कार्यक्रम में मौसम विभाग का पूर्वानुमान होने के बाद भी जितनी बड़ी संख्या में बच्चों को इसके लिए लाया गया उसे किसी भी तरह से उचित नहीं कहा जा सकता है क्योंकि केवल ज़्यादा लोगों को इकठ्ठा करने और रिकॉर्ड बनाने के लिए इस तरह के कार्यक्रम किये जाने का औचित्य समझ में नहीं आता है. २१ जून का समय देश में ऐसा है कि कुछ हिस्सों में मानसून आ चुका होता है और कुछ स्थानों पर स्थानीय कारणों से मानसून पूर्व वर्षा भी होने लगती है तो क्या सरकार और अधिकारियों को इस कार्यक्रम को इंडोर स्टेडियम में करवाने के बारे में एक स्थायी नीति के रूप में स्वयं ही स्वीकार नहीं कर लेना चाहिए ? आज जब मौसम ख़राब होने के १० मिनट पहले ही उसका अलर्ट मोबाइल तक पर उपलब्ध है तो इतने महत्वपूर्ण कार्यक्रम जहाँ खुद देश के पीएम उपस्थित होने वाले हों उसमें इस तरह की बाबूगिरी सदैव ही कार्यक्रम की मंशा को पूरा नहीं होने देती है. पीएम मोदी को निश्चित तौर पर बड़े इवेंट पसंद हैं और यूपी में प्रचंड बहुमत के बाद सरकार बनाने की ख़ुशी में इस बार उनकी यहाँ के लोगों के साथ योग दिवस मनाने की मंशा भी सराहनीय ही है पर कुछ बातों की अनदेखी करने से जिन लोगों पर इसका दुष्प्रभाव पड़ता है उनके लिए ऐसे कार्यक्रम दु:स्वप्न ही बन जाते हैं.
पानी में भीगने के कारण कार्यक्रम स्थल पर रात भर जगे २१ बच्चों पर जो दुष्प्रभाव पड़ा उसके चलते उन्हें अस्पताल ले जाना पड़ा और सर्दी से बचने के लिए उन्हें ब्लोअर चलाकर रखना पड़ा जिससे उनको और उनके परिवार वालों को अनावश्यक रूप से परेशान होना पड़ा. आज जिस स्तर पर संसाधन उपलब्ध हैं उनके सदुपयोग से मानवीयता को अधिक महत्व देते हुए अधिकारियों के और भी संवेदनशील होने की आवश्यकता है क्योंकि पीएम या सीएम अपने कार्यक्रम को सफल ही देखना चाहेंगें पर अधिकारियों के इस तरह के रवैये कई बार कार्यक्रम के आनंद को कम करने का काम किया करते हैं. इस बारे में सभी लोगों को यह ध्यान रखना ही होगा कि इतने बड़े स्तर पर आयोजित किये जाने किसी भी कार्यक्रम में यदि बच्चों की सहभागिता हो रही है तो उनके लिए समुचित व्यवस्था भी होनी चाहिए क्योंकि बच्चे बड़ों की तरह लम्बे समय तक अनुशासन और विषमताएं नहीं झेल पाते हैं और उनके लिए विभिन्न तरह की समस्याएं खडी हो जाती हैं. बारिश के बाद बदली हुई परिस्थिति में लखनऊ जिला प्रशासन और पुलिस द्वारा पीएम के कार्यक्रम के समाप्त होने के बाद जिस तरह से आये हुए लोगों का ध्यान नहीं रखा गया वह अपने आप में यहाँ आने वाले लोगों के लिए बुरा अनुभव हो रहा है.
साथ ही पानी बरसने के कारण कार्यक्रम में आयी सैकड़ों बसें जिस तरह से रैली स्थल के कच्चे हिस्से के कीचड में फँसी उससे भी लोगों को बहुत समस्याओं का सामना करना पड़ा और इनमें से ८० बसें क्रेन मंगवाने पर भी दोपहर १२ बजे तक निकल सकीं जिनसे बच्चों को वापस जाना था. लखनऊ के आसपास के ज़िलों से मंगाई गयी क्रेन्स पहले ही समारोह स्थल पर उपलब्ध थीं पर इस बारे में इस तरह के आदेश देने वाले अधिकारी नदारत थे जिससे परिवहन विभाग के अधिकारियों और रोडवेज कर्मचारियों ने इस कार्य को पूरा करने में हाथ बंटाया. इस तरह की परिस्थिति के बारे में पहले से विचार करने के बाद ही कार्यक्रम के स्वरुप को तय किया जाना चाहिए. आशा की जा सकती है कि आने वाले वर्षों में पीएम और अन्य महत्वपूर्ण व्यक्ति जिस भी स्थान के कार्यक्रम में सम्मिलित हों वहां के अधिकारी, पुलिस और राज्य सरकार इन पहलुओं पर भी ध्यान अवश्य दें क्योंकि २१ जून को देश के मौसम के बारे में कुछ भी निश्चित रूप से नहीं कहा जा सकता है. बेहतर हो कि पीएम के कार्यक्रम को उन शहरों में ही आयोजित करने के बारे में सोचा जाये जहाँ इंडोर स्टेडियम की व्यवस्था हो और एक नीति के अंतर्गत दोहरे काम के लिए खेल मंत्रालय राज्यों के साथ मिलकर राज्यों की राजधानियों में इंडोर स्टेडियम बनाने की एक नीति पर भी काम कर सकता है जिससे आधारभूत संरचना के विकास तथा रोज़गार सृजन के साथ खेल को बढ़ावा मिलेगा और आवश्यकता पड़ने पर उसका इस तरह से सदुपयोग भी किया जा सकेगा.

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