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राजनैतिक विद्वेष में उलझा गोवंश

***.......सीधी खरी बात.......***
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रिजिल मक्कुट्टी केरल युवा कांग्रेस के नेता होने के साथ केरल में पार्टी के लिए उभरता हुआ चेहरा थे पर जिस तरह से उन्होंने केंद्र सरकार के मवेशियों की खरीद और बिक्री के लिए लाये गए अधिनियम का विरोध किया वह सभ्य समाज और कानून की नज़रों में बेहद आपत्तिजनक है. देश के कानून ने आज़ादी के बाद से ही हर नागरिक को अपने अनुसार जीवन जीने की छूट दी हुई है पर क्या इस छूट का इस तरह से दुरूपयोग किया जा सकता है? निश्चित तौर पर यहाँ पर मामला गोहत्या रोकने और गोवंश को बचाने का नहीं है क्योंकि इस मामले में जितने बड़े पैमाने पर राजनीति की जा रही है उससे कहीं न कहीं लम्बे समय में देश की सामाजिक समरसता को ही नुकसान पहुँचने वाला है. जिन राज्यों में पहले से ही गोहत्या प्रतिबंधित है वहां जो रक्षक किस तरह से गोवंश को लाने ले जाने वालों पर कानून के विरुद्ध जाकर उनकी हत्या करने तक पहुंचे जा रहे हैं ? जिन राज्यों में गोहत्या संवेदनशील मामला है उस पर देश के सभी राजनैतिक दलों को स्थानीय जनता की संवेदनशीलता को देखते हुए मानवीय पहलुओं पर ही किसी नियम को बनाने के बारे में सोचना चाहिए क्योंकि उत्तर भारतीय हिन्दुओं के लिए गाय आस्था का विषय है पर दक्षिण भारतीय हिन्दू यहाँ तक की ब्राह्मणों की भी बड़ी आबादी हमेशा से ही गोमांस खाती रही है जिससे इस मामले की उत्तर और दक्षिण भारत के परिवेश और परिप्रेक्ष्य में गंभीरता को समझा जाना चाहिए। यह पूरा मामला जिस तरह से राजनैतिक दलों द्वारा केवल भावी चुनावों में एक दूसरे को मात देने की नियति से रचा जाने वाला चक्रव्यूह ही अधिक लगता है क्योंकि इससे समाज में विभाजन बढ़ता हुआ ही दिखाई देने वाला है.
इस मामले में युवा कांग्रेस के पदाधिकारियों के शामिल होने से उत्तर भारतीय और विशेषकर हिन्दू समाज में कमज़ोर हो चुकी कांग्रेस को और भी कमज़ोर करने के लिए भाजपा के पास घातक ही सही पर एक मज़बूत हथियार आ गया है क्योंकि भाजपा भी यह अच्छी तरह से जानती है कि आने वाले समय में जब कभी भी पूरे देश में उसे कहीं से भी मज़बूत चुनौती मिलेगी तो वह कांग्रेस की तरफ से ही होगी इसलिए वह इस तरह के मुद्दों पर अधिक हमलावर होकर कांग्रेस को लगातार बचाव की मुद्रा में ही रखना चाहती है जिससे भाजपा को अपने मतों को समेटने के लिए अधिक परिश्रमं करना पड़े और जनता का ध्यान उन मुद्दों से लगातार हटाकर रखा जाये जो सीधे उससे जुड़े हुए हैं. विकास की बातें करना और किसी भी सरकार के गंभीर प्रयासों के अनुरूप उसका धरातल पर स्पष्ट प्रभाव दिखाई देना आज के समय में बहुत सारे कारकों पर ही निर्भर करता है क्योंकि अच्छे प्रयासों के बाद भी वैश्विक कारण किसी भी सरकार के अथक प्रयासों को बहुत आसानी से कडा झटका दे सकते हैं संभवतः इसलिए ही भाजपा लगातार ऐसे संवेदनशील मामलों में बड़ी लकीर खींचने की कोशिश करती रहती है और मुद्दों को लगातार जीवित किये रखने के हर संभव प्रयास किया करती है. आज के समय में ऐसी स्थिति भाजपा को चुनाव जिता भी रही है पर उसे यह भी समझना चाहिए कि सामाजिक समरसता के कमज़ोर होने से समाज में जो तनाव बढ़ता है देश की कितनी जनता उसके साथ लगातार रहना चाहती है यह कोई भी समझ नहीं सकता है.
इस मुद्दे पर कांग्रेस का जो नुकसान होना था वह हो चुका है और जिस तरह से भाजपा मामले में शामिल स्थानीय कांग्रेस नेताओं के स्थान पर सीधे कांग्रेस नेतृत्व पर हमले कर रही है उससे यही लगता है कि अब कांग्रेस को इस तरह की नयी राजनीति से मुक़ाबला करने के लिए नए सिरे से सोचना होगा वर्ना उसके पास विकल्प और भी सीमित होते चले जायेगें. धार्मिक और सामाजिक रूप से संवेदनशील मामलों में हिन्दू जन भावनाओं का किस तरह से भरपूर दोहन किया जा सकता है यह भाजपा अच्छी तरह से जानती है क्योंकि उसके पास संघ के रूप में सक्रिय राजनीति से दूर एक ऐसा संगठन मौजूद है जो हिन्दू समाज पर अपने प्रभाव के माध्यम से मुद्दों को जीवंत रखने में भाजपा की मदद करता है. परंपरागत राजनीति के लिए अब समय बीत चुका है इसलिए पूरे देश में मौजूद कांग्रेस और अन्य गैर भाजपा दलों के लिए यह आत्म मंथन का समय है कि भाजपा की इस नयी तरह की राजनीति का किस तरह से मुक़ाबला किया जाये ? भाजपा इस खेल में पारंगत है और जब भी कोई राजनैतिक दल या मुद्दा इस तरह से सामने आता है और राजनैतिक दल भाजपा को इस क्षेत्र में आकर चुनौती देने की कोशिश करते हैं तो उनके लिए समस्या और भी अधिक बढ़ जाती है इसलिए इस तरह के मुद्दों पर अनावश्यक रूप से भाजपा पर आक्रामक होने की कितनी आवश्यकता है और किस तरह से इन मामलों में कानून सम्मत प्रतिरोध कर सरकार को घेरा जा सकता है गैर भाजपाई दलों के लिए यह विचार करना अब और भी आवश्यक है.
स्वयं भाजपा के लिए भी अब यह सोचने का समय है कि देश में उत्तर दक्षिण के नाम पर इस तरह के बंटवारे से उसे क्या मिलने वाला है फिलहाल दक्षिण में केवल कर्नाटक में उसके लिए मज़बूत संभावनाएं हैं इसलिए वहां पर इस नए कानून का कितना असर पड़ेगा यह तो आगामी चुनावों में ही सामने आ पायेगा पर तमिलनाडु की राजनीति में जिस तरह से किसी स्थानीय पार्टी या नेता के माध्यम से अपनी पैठ मज़बूत करने के लिए भाजपा जिस तरह से प्रयासरत है उस पर इस घटना का विपरीत असर पड़ना अवश्यम्भावी ही है. इन दो राज्यों तमिलनाडु और केरल में उसके पास खोने के लिए कुछ भी नहीं है शायद इसलिए ही वह उत्तर भारत के राज्यों को साधने के लिए इस तरह के मामलों को खुलकर उछालने का काम करती है. सबसे चिंताजनक बात यह भी है कि जिस विपक्ष को सरकार की जन विरोधी नीतियों से आम लोगों पर पड़ने वाले दुष्प्रभाव पर चिंतित होना चाहिए वह भी केवल गाय, लव जिहाद, बीफ पर उलझा हुआ है और जनता की स्थिति पर किसी का भी ध्यान नहीं जा रहा है. इस तरह से देखा जाये तो विपक्ष इस समय पूरी तरह से भाजपा के हाथों में खेल रहा है क्योंकि भाजपा एक सोच के साथ विवादों को जन्म देती जा रही है और बिना कुछ सोचे समझे विपक्षी दल और उनके नेता कुछ भी बोलने और करने पर आमादा है जिससे वे वही गलतियां कर रहे हैं जो भाजपा की सोच के अनुरूप होती हैं.

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