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राष्ट्रपति का संदेश

***.......सीधी खरी बात.......***
***.......सीधी खरी बात.......***
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भले ही स्वाधीनता दिवस की पूर्व संध्या पर राष्ट्र को संबोधित किए जाने की परंपरा हमारे देश में हमेशा से ही रही है और उसके माध्यम से जनता तक सरकारें अपनी बातों को पहुँचाने का काम किया करती हैं पर इस बार जिस तरह से अपने राष्ट्र के नाम अपने संदेश में प्रणब मुखर्जी ने देश के समक्ष उपस्थिति चुनौतियों की तरफ़ पूरा ध्यान दिलाने की कोशिश की है संभवतः ऐसा संबोधन हाल के वर्षों में सुनने को नहीं मिला है. लालकिले के प्राचीर से जब प्रधानमंत्री बोलते हैं तो उनके पास कुछ सरकारी नीतियां और सरकार के कामों का बखान ही हुआ करता हैं और राष्ट्रपति के पास अपने मन से कहने के लिए कुछ भी नहीं होता है फिर भी इस बार उनके के भाषण आज की समस्यायों पर ध्यान देना का पूरा प्रयास ही किया गया है. सीमा पर चीन और पाक के अतिक्रमण करते रहने और संघर्ष विराम का उल्लंघन करने के लिए जिस तरह से उनकी तरफ़ से धैर्य की सीमा की बात की गयी है आज उसकी बहुत ही आवश्यकता थी क्योंकि पाक और चीन का गठजोड़ अपने मंसूबों को पूरा करने में लगा हुआ है.
देश में आम चुनाव अगले वर्ष होने हैं और जिस तरह से लोकतंत्र में चुनावों के महत्व पर राष्ट्रपति ने जनता को जगाने की बातें की हैं और जनता से यह भी अपेक्षा की है कि वह अगले आम चुनावों के बाद एक स्थिर सरकार के गठन की तरफ़ राष्ट्र को ले जाएगी इसकी भी आज के समय में बहुत बड़ी आवश्यकता है क्योंकि आज के समय में जिस तरह से संक्रमण की राजनीति के कारण ही देश की नीतियों पर दबाव आता दिखाई देता है अब उससे भी देश को निजात चाहिए क्योंकि पिछले कुछ वर्षों में जिस तरह से क्षेत्रीय दलों द्वारा बिना किसी आवश्यकता के ही राष्ट्रीय नीतियों को प्रभावित किये जाने काम किया जाने लगा है उससे देश की अंतर्राष्ट्रीय छवि को धक्का लगता रहता है पर क्षेत्रीय दलों के पास उतनी बड़ी राजनैतिक सोच और समझ ही नहीं होती कि वे अपने प्रदेश से बाहर निकाल कर देश की अंतर्राष्ट्रीय छवि के लिए भी चिंतित होना सीख सकें. देश को ऐसे मज़बूत दल चाहिए जिनके पास व्यापक अंतरार्ष्ट्रीय दृष्टिकोण भी हो.
संसद के लगातार बाधित होते सत्रों में आगे आने की कोशिशों को रेखांकित करते हुए उन्होंने यह भी आशा की है कि आने वाले समय में सदन में गंभीर बहस दिखाई देंगी और उनका देश के हित में उपयोग किया जा सकेगा. संस्थाएं राष्ट्रीय चरित्र का दर्पण होती हैं और उनके माध्यम से जहाँ राष्ट्र को आगे बढ़ने की प्रेरणा मिलती है वहीं इन संस्थाओं द्वारा अपना काम सही ढंग से किये जाने से पूरे देश को आगे बढ़ाने में मदद मिलती है. आज देश में हर संस्था पर प्रहार किया जाना एक सामान्य सा काम हो गया है अब इन संस्थाओं में बैठे हुए लोगों का ही यह दायित्व बनता है कि वे अपनी अपनी संस्थाओं की कीर्ति को पुनर्स्थापित करने का काम शुरू करें. देश को मज़बूत संसद के साथ कानून के अनुपालन करने में सक्षम न्यायपालिका के साथ बेहतर और कर्तव्यनिष्ठ नौकरशाही तो चाहिए ही पर साथ ही तेज़ नज़रों वाले मीडिया के साथ पूर्णतः जागरूक नागरिकों की भी बहुत आवश्यकता है क्योंकि इनमें से किसी भी स्तंभ के कमज़ोर पड़ने पर पूरे लोकतंत्र की नींव हिलती सी दिखाई देती है. ऐसे में हम सभी को जिस लगन के साथ देश के निर्माण में लगना चाहिए आज उससे दूर होने के कारण ही इतनी सारी समस्याएं सामने दिखाई देती हैं अब हम सभी अपने कर्त्तव्य के अनुपालन की शपथ ले और देश को आगे बढ़ाने का संकल्प भी लें.

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