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रेल बजट और नयी दृष्टि

***.......सीधी खरी बात.......***
***.......सीधी खरी बात.......***
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एक बार फिर से मोदी सरकार अपना रेल बजट तैयार करने में लगी हुई है जिसके चलते मंत्रालय के स्तर से विभिन्न क्षेत्रों के विशेषज्ञों और रेल से जुड़े हुए लोगों यात्रियों और व्यापारियों के साथ उनके सुझाव जानने की प्रक्रिया शुरू कर दी है.भारतीय रेल विश्व में सबसे जटिल परिस्थितियों में चलाया जाना वाला नेटवर्क है और इसे जिस तरह से आधुनिकता के साथ आगे बढ़ना चाहिए था वह रेलकर्मियों की कमज़ोर इच्छशक्ति के आगे कहीं से भी दिखाई नहीं देता है. माधव राव सिंधिया के रेलमंत्री रहने के बाद पहली बार अब संभवतः रेल सत्ताधारी दल के नेता को स्वतंत्र रूप से चलने के लिए मिली है जो कि रेलवे के लिए अच्छा संकेत भी है. रेल मंत्री अपने स्तर से विभाग की जड़ता को तोड़ने में लगे हुए हैं फिर भी अभी बहुत सारे ऐसे क्षेत्र भी हैं जहाँ तेज़ी से काम करने की आवश्यकता भी है और अभी तक कई मसलों पर उनकी तरफ से सही दिशा में काम करना शुरू भी किया गया है पर रेलवे को केवल व्यावसायिक विभाग मानने के स्थान एक सामाजिक संस्थान भी समझा जाये संभवतः यह रेलमंत्री अभी भी नहीं समझ पा रहे हैं.
इस बार मंत्रालय के स्तर पर जो सबसे महत्वपूर्ण निर्णय लिया गया है कि नेताओं की मांग पर नयी गाड़ियों के सञ्चालन पर कोई भी निर्णय नहीं किया जायेगा वह अपने आप में रेलवे को लम्बे समय में लाभकारी लग सकता है क्योंकि अभी तक विभिन्न क्षेत्रीय क्षत्रपों के हाथों में रहने वाली रेल का जिस तरह से दुरूपयोग किया जाता रहा है वह भी रेलवे की व्यावसायिक सेहत पर बुरा प्रभाव डालता रहता है. आज रेलवे को अपने सम्पूर्ण बेड़े को आधुनिक करते हुए बढ़ाने की बहुत आवश्यकता है क्योंकि जब तक उसके पास समुचित संख्या में डिब्बे ही नहीं होंगें तब तक वह परिचालन की लागत को काम करने के साथ यात्रियों को बेहतर सेवा दे पाने में सक्षम नहीं हो पायेगी. भारत त्योहारों का देश है और इसी क्रम में देश विभिन्न हिस्सों में साल भर लगने वाले विभिन्न धार्मिक और स्थानीय मेलों के बारे में अब रेलवे को एक स्पष्ट नीति भी बनने होगी और इनके आयोजन के समय यात्रियों के लिए अतिरिक्त कोचों की व्यवस्था करने के बारे में भी सोचना होगा जिससे पूरे देश में उपलब्ध वर्तमान नेटवर्क का सही और भरपूर उपयोग करके रेलवे अपनी आमदनी को बढ़ाने के साथ यात्रियों को अतिरिक्त सुविधाएँ दिलवा पाने में सफल हो सकती है. उदाहरण के तौर पर यूपी के सीतापुर जिले में हर अमावस्या पर लगने वाले मेले में लाखों लोग चक्र तीर्थ पर स्नान करते हैं और रेलवे लाइन होने के बाद भी कमज़ोर नेटवर्क और गलत समय पर चलने वाली गाड़ियों के कारण पूरा मेला ही सड़क मार्ग पर आश्रित रहा करता है जबकि इसे वर्तमान में कानपुर, बुढ़वल और शाहजहाँपुर से ब्रॉड गेज तथा लखनऊ और लखीमपुर से मीटर गेज की सुविधाओं का लाभ उठाते हुए अच्छी तरह से नैमिषारण्य से जोड़ा जा सकता है.
किराया बढ़ाना ही रेलमंत्री का एकमात्र लक्ष्य नहीं होना चाहिए क्योंकि यदि रेलसेवाएं आम नागरिकों की पहुँच से बाहर हो जाती हैं तो उनके लिए अपनी परिचालन लागत को निकाल पाना भी कठिन होने वाला है. रेलवे ने पिछले वर्ष एक नियम बनाकर बड़ी गलती की जिसका खामियाज़ा उसे यात्रियों की संख्या में कमी और राजस्व हानि के रूप में भुगतना भी पड़ा है इस नए नियम में जहाँ यात्रियों के लिए स्पेशल ट्रेनों को सुविधा स्पेशल का नाम देकर प्रति टिकट अधिक वसूली करने की नीति बनायीं गयी उसके बाद अधिकांश स्पेशल ट्रेनों को उनकी पूरी क्षमता में चलाना रेलवे के लिए एक बुरा सपना ही साबित हुआ है क्योंकि भीड़ का मौसम में भी कई बार इन स्पेशल ट्रेनों के डिब्बे खाली दौड़ते हुए रेलवे अधिकारियों की चिंताएं बढ़ाते हुए ही नज़र आये हैं. यदि अब भी रेलमंत्री और रेलवे बोर्ड इस समस्या का समाधान नहीं करता है तो आने वाले समय में लाभ देने के उद्देश्य से चलायी जाने वाली ये सुविधा स्पेशल भी बड़े घाटे का सौदा ही बनने जा रही हैं. यात्रियों की सुविधा के लिए यदि भीड़ के मौसम में सुविधा स्पेशल चलानी हैं तो उसके लिए मंत्रालय को इनका किराया भी उस समय चलने वाली मेल एक्सप्रेस ट्रेनों से किसी भी दशा में अधिक नहीं रखना चाहिए.
एक नए प्रयोग को और भी तेज़ी से सभी ट्रेनों में लागू करने के बारे में सोचना अब रेलवे की ज़िम्मेदारी बन चुका है क्योंकि देश में तेज़ी से बढ़ते हेु मध्यम वर्ग के लिए अब वातानुकूलित श्रेणी में यात्रा करना मुश्किल नहीं रहा गया है तो हर ट्रेन के संयोजन में सभी श्रेणियों के यानों को आवश्यकता के अनुरूप लगाये जाने के बारे में सोचा जाना चाहिए तथा मजबूरी में यात्रा करने वाले यात्रियों के लिए भीड़भाड़ वाले मार्गों पर एक साधारण तथा एक वातानुकूलित कुर्सी यान का लगाया जाना भी आवश्यक कर दिया जाना चाहिए जिससे जो लोग इस श्रेणी का उपयोग कर सकते हैं वे भी रोडवेज़ की बसों के स्थान पर रेल को प्राथमिकता देने के बारे में सोच सकें. एक बड़े परिवर्तन में दिन के समय चलने वाली अधिकांश गाड़ियों के संयोजन में बड़े बदलाव की भी आवश्यकता है क्योंकि बर्थ लगाने से जहाँ डिब्बों की क्षमता में कमी आ जाती है वहीं कुछ लोग उन पर कब्ज़ा करके अन्य यात्रियों को सफर भी नहीं करने देते हैं इसलिए इन ट्रेनों के संयोजन में अधिकांशतः कुर्सी यानों को जोड़ने के बारे में सोचा जाना चाहिए तथा बर्थ वाले टिकट को कुछ मंहगा करके अलग श्रेणी के रूप में विकसित करने के बारे में भी सोचा जा सकता है. लखनऊ दिल्ली के बीच चलने वाली डबल डेकर ट्रेन की रिपोर्ट देखकर ५०० कि०मि० तक इस तरह के डिब्बों वाली ट्रेन को चलाने की आवश्यकता पर भी विचार किया जाना चाहिए.
यदि रेलवे यात्रियों को अच्छी सुविधाएँ देने के बारे में सोचना चाहता है तो महत्वपूर्ण शहरों के स्टेशनों के पास उपलब्ध भूमि को निजी क्षेत्र के साथ मिलकर उसे आवश्यकता के अनुरूप होटल बनाने के प्रस्ताव पर भी गंभीरता से विचार करना चाहिए इससे जहाँ यात्रियों को स्टेशन के पास रहने की सुविधा मिल सकेगी वहीं रेलवे के माध्यम से रोजगारसृजन में भी सफलता पायी जा सकेगी. इन होटलों में रुकने के लिए रेलयात्री होना आवश्यक भी नहीं किया जाना चाहिए जिससे जगह खाली होने पर कोई भी अन्य यात्री इस सेवा का लाभ आसानी से उठा सके परन्तु इसमें रेल यात्रियों को बुकिंग में प्राथमिकता अवश्य ही दी जा सकती है. इसके साथ रेलवे को उन सहायक रेल मार्गों के आधुनिकीकरण के बारे में भी सोचना चाहिए जो कम यातायात के चलते आज उपेक्षित से पड़े हुए हैं क्योंकि इन मार्गों का सदुपयोग व्यस्त मार्ग की मालगाड़ियों को हटाकर चलाने के लिए किया जा सकता है जिससे व्यस्त मार्गों पर दबाव कम होगा वहीं रेलवे इनके संरक्षण पर जो खर्च करता है उसका सही लाभ भी रेलवे को मिल सकेगा. एक वर्ष में परिचालन सम्बन्धी बाधाओं को दूर करने के बारे में मंडल स्तर से सुझाव मांगे जाने चाहिए तथा सुगम और मज़बूत परिचालन के लिए उन बाधाओं को प्राथमिकता के आधार पर अगले कुछ वर्षों में दूर करने के बारे में सोचा जाना चाहिए.

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