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संघ, हिन्दू और सहिष्णुता

***.......सीधी खरी बात.......***
***.......सीधी खरी बात.......***
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देश में चल रही सहिष्णुता की बहस में अब नागपुर के राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के स्तर से बयान शुरू होने के बाद लगता है यह सन्देश देने की कोशिश की जा रही है कि भारत में सहिष्णुता तो हमेशा से ही रही है. जब इस मामले पर बहुत ही गंभीर बहस के लिए देश तैयार होना चाह रहा है तब भी मोदी सरकार और भाजपा इससे दूर होने की कवायद करती ही दिखाई दे रही हैं क्योंकि उनको यही लगता है कि ऐसी किसी भी खुली बातचीत या विमर्श में हमला सीधे तौर पर संघ से होता हुआ मोदी और भाजपा तक भी पहुँचने वाला है. अभी तक असहिष्णुता पर मोदी के मंत्री और भाजपा प्रवक्ताओं के साथ अन्य नेता भी लगातार जिस तरह से पिछली घटनाओं की तरफ इशारा करने से नहीं चूक रहे हैं उससे यही लगता है कि मोदी की यह रणनीति ही है कि ऐसे किसी भी मामले पर सरकार की तरफ से कुछ ठोस और नया करने के स्थान पर पिछली सरकारों और विशेषकर कांग्रेस पर हमलावर रहा जाये जिससे लोगों को यह याद दिलवाने की कोशिशें भी होती रहें कि ऐसा हमेशा से ही होता रहा है जबकि उनके पास एक बहुत ही अच्छा अवसर भी था कि वे इन बातों से पीछा छुड़ाकर नयी परंपरा बनाते और भविष्य की किसी भी सरकार को उस पर चलने के लिए बाध्य भी कर जाते.
एक ही दिन में दिल्ली में संघ प्रमुख मोहन भागवत और लखनऊ में अवध प्रान्त के संघ चालक प्रभु नारायण द्वारा जिस तरह से सहिष्णुता को लेकर बातें कही गयीं उससे यही लगता है कि मोदी सरकार और संघ भी राष्ट्रीय दबाव और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर सरकार की साख को लेकर कुछ संवेदनशील हुए हैं. भागवत ने दिल्ली में कहा कि भारत की अनेकता में एकता ही सबसे बड़ी विशेषता है जिसके कारण हमारा समाज इतना प्रभावशाली बना हुआ है और तुच्छ मानसिकता वाले लोग समाज में विभिन्न आधारों पर बंटवारे की बातें किया करते हैं. वहीं लखनऊ में प्रभु नारायण द्वारा यह कहा जाता है कि सहिष्णुता तो भारत के डीएनए में ही शामिल है तो इसके बहुत बड़े अर्थ भी निकाले जा सकते है. जिस संघ की पृष्ठभूमि में तैयार हुए नेता आज सहिष्णुता के मुद्दे को देश को बाँटने वाला बताने से नहीं चूकते हैं उसी संघ की तरफ से शीर्ष स्तर से इस तरह के बयान आने के बाद यह स्पष्ट ही हो जाता है कि भले ही जेटली, गिरिराज, कैलाश और अन्य कोई भी किसी भी कद का भाजपाई नेता कुछ भी कहता रहे पर संघ भी अब इस बात का दबाव स्पष्ट रूप से महसूस कर रहा है.
संघ ने विभिन्न आपदाओं के समय में देश के अन्य संघटनों की तरह अपने लोगों को जुटाकर आपदा में फंसे हुए लोगों की मदद करने की कोशिश भी की है पर उस बात से संघ की मानसिकता में बंटवारे की बातें करने की सीख कहीं से भी कम नहीं होती है. आज भी भाजपाई नेता और सरकारें ऐसे ही काम किया करती हैं जिनके बिना कोई काम नहीं रुकता है. राजस्थान सरकार इस्मत चुगताई और सफ़दर हाशमी को अपने पाठ्यक्रम से हटाना चाहती है क्योंकि उनके पाठों में उसे उर्दू अधिक दिखाई देती है. क्या समाज के लिए काम करने वाले लोग केवल कुछ लोगों के लिए ही आदर्श हो सकते हैं क्या कल को कबीर और रहीम के मुसलमान होने के चलते उनकी भक्तिमय कृतियाँ और भक्तिकाल के कवियों में होने को भी चुनौती दी जाने वाली है ? संघ की मानसिकता में जो कुछ भी अभी तक किया जाता रहा है उससे केवल बयानों के माध्यम से ही नहीं बचा जा सकता है और अब यह सोचने का समय नागपुर वालों को है क्योंकि केवल संघ चालक या किसी प्रान्त के चालक के सहिष्णुता पर बयान देने से उस मानसिकता को नहीं बदला जा सकता है जो शुरू से इनके लोगो में कूट कूट कर भरी जाती है.

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