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सपा, विहिप और यूपी

***.......सीधी खरी बात.......***
***.......सीधी खरी बात.......***
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लगता है मिशन २०१४ को पूरा करने के संकल्प में जुटे हुए मुलायम सिंह यादव इस बात को भूल गए हैं कि वे जितना ही विश्व हिन्दू परिषद् और उसके संगठनों की गतिविधियों पर प्रतिबन्ध लगाने का प्रयास करेंगें प्रदेश में उतना ही माहौल खराब होता चला जायेगा और विभ्जा की राजनीति में वे खुद भी एक मोहरा बाते चले जायेंगें क्योंकि १९८९ में ठीक इसी तरह से विभिन्न यात्राओं के माध्यम से जिस तरह से पहले प्रदेश और फिर पूरे देश को आंदोलित किया गया था उसके परिणाम आज तक देश भुगत रहा है फिर भी मुलायम जैसे नेताओं के द्वारा उसी घटनाक्रम की उसी तरह से पुनरावृत्ति करना आख़िर किस तरह की राजनीति को बढ़ावा देने का प्रयास है ? प्रदेश को आज विकास की पटरी पर आगे बढाने की अधिक आवश्यकता है जबकि सपा प्रमुख किसी तरह से घिसटती हुई सरकार चला रहे अखिलेश के लिए इस तरह के क़दमों से नयी समस्याएं खड़ी करने में व्यस्त हैं. १९८९ से देश में बहुत सारे बदलाव आ चुके हैं और देश के साथ नेताओं की सोच को भी आगे बढाने की ज़रुरत है पर हमारे नेता आज भी पुराने समय में ही जीने के अधिक इच्छुक दिखाई देते हैं.
मुलायम ने अखिलेश के साथ जिस तरह से विहिप के नेताओं और संतों से लम्बी मुलाक़ात की और उसको मीडिया द्वारा प्रचारित किया गया उसके बाद इस तरह के क़दमों की आशंका उत्पन्न हो ही गयी थी क्योंकि मुसलमान विहिप से मुलायम के किसी भी तरह के रिश्ते तो दूर बात करने को भी पसंद नहीं करते हैं उस स्थिति में संतों को महत्व देना आज़म जैसे नेताओं को भी बहुत अखरा है और उन्होंने खुले आम अपनी नाराजगी का प्रदर्शन भी कर दिया है. इस तरह के दबाव के आगे झुकते हुए मुलायम ने विहिप की ८४ कोसी यात्रा को निकलने पर प्रतिबन्ध लगा दिया है जिसका संतों और विहिप की तरफ से कड़ा विरोध किया जा रहा है. यह सही है कि किसी भी नयी परंपरा को शुरू करने के लिए प्रशासनिक अनुमति की आवश्यकता पड़ती है पर जिस तरह से विहिप ने यात्रा निकलने का मन बनाया और फिर उस पर सपा सरकार ने प्रतिबन्ध लगाने की बात कही है उससे एक बार फिर से समाज में उन्माद फ़ैलाने वालों को एक अवसर मिल सकता है जबकि उससे पूरे समाज का ही अधिक नुक्सान होने वाला है. इस तरह कि किसी भी प्रस्तावित यात्रा आदि के बारे में सरकार को बहुत ही सचेत होकर काम करना चाहिए जबकि वह केवल प्रतिबन्ध लगाने तक ही खुद को सीमित करना चाहती है.
इस तरह की यात्रा को यदि कड़ी सुरक्षा के बीच निकालने की अनुमति दे दी जाती और उसमें सद्भाव बनाये रखने की शर्त भी जोड़ दी जाती तो संभवतः संतों के माध्यम से राजनीति करने की विहिप और भाजपा की मंशा को रोका जा सकता था पर उस पर जिस तरह से राजनीति की शुरुवात कर दी गयी है वह प्रदेश के लिए एक बार फिर से बड़े संकट की की आहट हो सकती है ? क्या प्रदेश सरकार इतनी अक्षम है कि संतों के द्वारा निकाली जाने वाली किसी यात्रा को सिर्फ कानून व्यवस्था बिगड़ने की बात करके रोकने के अलावा उसके पास कोई चारा ही नहीं बचा है इस बात पर जिस तरह से रोक लगाकर इसके माध्यम से विहिप को आम हिन्दुओं तक यह संदेश पहुँचाने का अवसर दिया जा रहा है कि भले ही आज अखिलेश यूपी के सीएम हो पर उससे सपा की मानसिकता में कोई अंतर नहीं आया है और इस रोक के माध्यम से विहित भावनाओं को उभारने का काम भी कर सकती है. अच्छा होता कि इस मसले को सपा में इतना अधिक महत्त्व ही न दिया जाता पर शायद मोदी और भाजपा की बढ़त को देखते हुए सपा ने अपने मुस्लिम मतों को कांग्रेस के खाते में जाने से रोकने के लिए ही इतना बड़ा फ़ैसला कर लिया है.

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