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सहनशील से उग्र होते भारतीय

***.......सीधी खरी बात.......***
***.......सीधी खरी बात.......***
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पिछले वर्ष असहिष्णुता का मामला जिस तरह से चर्चा के केंद्र में रहा था और उस पर सभी दलों के नेताओं की तरफ से जमकर राजनीति भी की गयी थी उसके बाद यह मामला अपने आप ही शांत हो गया था पर गाहे बगाहे मीडिया में असहिष्णुता का मामला सामने भी आता रहा है. अपनी नियमित प्रेस कॉन्फ्रेंस में अमेरिका के विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता जॉन किर्बी ने जिस तरह से भारत में सहिष्णुता को लेकर पूछे गए सवाल पर ओबामा प्रशासन की चिंताओं को स्पष्ट किया उसके बाद देश में एक बार इसी मुद्दे पर राजनीति शुरू हो सकती है. देश में कोई भी इस बात से इंकार नहीं कर सकता है कि केंद्र में भाजपा के सत्तारूढ़ होने के बाद उसके वैचारिक संगठन और उसके अनुषांगिक संगठनों की तरफ से जिस तरह से समाज में नयी रेखाएं खींचने का प्रयास किया जा रहा है उसका असर सीधे देश की प्रगति पर भी पड़ने वाला है और किसी भी परिस्थिति में सरकार के किये गए अच्छे प्रयासों पर पानी फेरने के लिए यह एक बड़ा कारण भी बन सकता है फिर भी खुद पीएम की तरफ से इस तरह के मुद्दों पर जिस तरह से चुप्पी लगायी जाती है उसको उनके उग्र समर्थक मौन स्वीकृति ही मान लेते हैं.
१९९१ के बाद शुरू हुए व्यापक आर्थिक सुधारों के माध्यम से देश ने जिस तेज़ी के साथ विकास के नए आयामों पर अपने आप को लगातार खरा साबित करने का क्रम बनाये रखा है वह इस सरकार में भी चलता हुआ दिखाई दे रहा है पर कुछ संगठनों और गौ रक्षकों द्वारा जिस स्तर पर देश की प्रतिष्ठा को अनावश्यक मुद्दों के साथ ठेस पहुंचाई जा रही है वह निश्चित रूप से ही चिंतनीय है. कोई भी वैश्विक व्यापारिक प्रतिष्ठान या समूह किसी भी देश में केवल तभी निवेश करता है जब उसे अपने किये गए निवेश का समग्र बाज़ार दिखाई दे और उस एक निश्चित समय में अपने निवेश से लाभ होने की स्थिति भी दिखाई दे भारत में बड़ा बाज़ार तो है पर जिस तरह से यहाँ के सामाजिक माहौल में बदलाव करने की कोशिशें की जा रही हैं उससे आने वाले दिनों में निवेश के लायक कितना माहौल बना रह सकेगा यह तो समय ही बता पायेगा. वोट लेने की मजबूरी के चलते खुद पीएम और भाजपा इन संगठनों के खिलाफ कड़े कदम उठा पाने की स्थिति में नहीं है क्योंकि राजनैतिक रूप से बेहद संवेदनशील और सर्वाधिक लोकसभा सदस्यों वाले राज्य यूपी में अगले वर्ष होने वाले चुनावों में २०१४ के प्रदर्शन को दोहराने का दबाव अब स्पष्ट रूप से भाजपा पर पड़ा हुआ है.
देश के कानून का राजनैतिक हितों को साधने के लिए लगभग हर पार्टी की राज्य सरकार और केंद्र सरकार द्वारा दुरूपयोग किया जाता है पर अब इस सब पर पूरी तरह से रोक भी लगायी जानी चाहिए क्योंकि पार्टी दफ्तरों में बदलते थाने और प्रशासनिक भवन किस भी तरह से आम जन के अनुकूल नहीं हो सकते हैं. केवल भाषणों से आगे बढ़कर यदि देश को वास्तव में प्रगति के पथ पर आगे बढ़ाने की कोशिश करनी है तो देश में राजनैतिक प्रशासनिक ढांचे को भी विशुद्ध प्रशासनिक ढांचे में बदलना ही होगा तभी देश की छवि कानून के सही अनुपालन करने वाले देश के रूप में पूरे विश्व में सुधर पायेगी. हम अमेरिका के इस तरह एक बयान को भले ही आसानी से एक झटके में खारिज़ कर दें पर उससे होने वाले दुष्प्रभावों को रोक पाने में हम कभी भी सफल नहीं हो सकते हैं. अच्छा हो यदि इस तरह के मुद्दों पर अब तक के सबसे मुखर पीएम मोदी खुद ही अपने लोगों को कड़े अनुशासन का पाठ पढ़ाएं क्योंकि पूरे विश्व में भारत की छवि चमकाने के लिए वे जिस हद तक कोशिशें कर रहे हैं उस पर उनके अपने सहयोगी ही सबसे अधिक पानी फेरने का काम कर रहे हैं. पार्टी भी आज उनके दबाव में है और वे भाजपा में इतने शक्तिशाली भी हैं कि संघ के किसी प्रयास को देश की बेहतर आर्थिक स्थिति के लिए अनदेखा कर पाने की स्थिति में भी हैं फिर भी यदि उनकी तरफ से इस तरह की घटनाओं पर चुप्पी ही लगायी जाती रहेगी तो आने वाले समय में सरकार के लिए अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर परिस्थितियां और भी ख़राब ही होने वाली हैं.
आज पूरे विश्व में कितने ऐसे देश हैं जहाँ पर लंबे समय के लिए कोई उद्योगपति बड़ा निवेश करना चाहेगा पर सौभाग्य से हमारे देश की सहिष्णुता को पूरे विश्व में लंबे समय से सराहा जाता रहा है. आज जिन कारणों से हमारे इस स्वभावजन्य गुण पर भी संदेह के बादल घुमड़ने लगे हैं तो उससे बचाव करने की कोशिश भी ठोस रूप में करने की आवश्यकता है. किसी भी परिस्थिति में किसी भी दल या उसके कार्यकर्ताओं को कानून हाथ में लेने की रत्ती भर भी छूट नहीं मिलनी चाहिए क्योंकि आवश्यकता पड़ने पर लोग इस छूट का व्यापक दुरूपयोग करने लगते हैं. देश में राजनीति कभी सेवा का विषय हुआ करती थी पर अब यहाँ आने वाले अधिकांश लोग भी अपने लाभ को खोजने लगे हैं जिससे भी देश में राजनीति का स्तर गिरता दिखाई दे रहा है. धार्मिक, सामाजिक और आर्थिक स्वतंत्रता का जिस हद तक हम भारतीय दुरूपयोग किया करते हैं उसकी कोई मिसाल अन्य देश में नहीं मिल सकती है. अपने को मिली आज़ादी की व्याख्या अपने पक्ष में करने के लिए हम किसी भी हद तक चले जाते हैं और जब दूसरे उसी तरह से आगे बढ़ते हैं तो हम उन्हें पलक झपकते है अराजक साबित करने में लग जाते हैं. अच्छा हो कि सदैव की तरह हम अपनी कमी को खुद ही खोज कर उसे दूर करने की कोशिशें शुरू कर दें जिससे आने वाली पीढ़ी को हम एक मज़बूत और गंभीर भारत का हस्तांतरण कर सकें.

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