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स्वतंत्रता दिवस पर राजनीति

***.......सीधी खरी बात.......***
***.......सीधी खरी बात.......***
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हर १५ अगस्त को लालकिले के प्राचीर से दिए गए किसी भी प्रधानमंत्री के हर संबोधन को जहाँ राष्ट्र और विश्व ध्यान से सुनता है वहीं देश में अब राजनीति का स्तर इतना निम्न होता जा रहा है कि इस अवसर पर भी राजनीति करने का कोई अवसर कोई भी नेता और खासकर आधी अधूरी भाजपा के भावी प्रधानमंत्री नरेन्द्र भाई मोदी भी नहीं छोड़ना चाहते हैं. जब से उन्हें भाजपा ने चुनाव अभियान समिति का मुखिया बनाया है तब से उन्हें कुछ ऐसा लगता है जैसे वे गुजरात के मुख्यमंत्री नहीं बल्कि देश की संसद में नेता विरोधी दल हों और लगभग हर मुद्दे पर वे अपनी राय देने से बाज़ नहीं आते हैं ? यह सही है कि वर्तमान संप्रग सरकार देश और अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर कई बार अपनी सार्थक और प्रभावी उपस्थिति दर्ज कराने में असफल दिखाई दी है पर इसका मतलब यह भी नहीं है कि लालकिले से दिए जाने वाले प्रधानमंत्री के किसी भी संबोधन के हर वाक्य में कुछ कमी ही ढूंढी जाए ? देश में राजनीति करने के अवसर सदैव ही रहते रहेंगें पर इस बार जिस तरह से मोदी ने स्वतंत्रता दिवस के संबोधन को भी राजनीति में घसीटा है वह देश में निम्न स्तर की नयी शुरू होती घटिया राजनीति का संकेत ही देता है.
जब देश के प्रधानमंत्री इस ऐतिहासिक अवसर बोलते हैं तो उनकी किसी भी बात पर नुक्ताचीनी करने से बचा जाता है क्योंकि आज के वैश्विक माहौल में हर बात सीधे तौर पर पूरे विश्व की नज़रें होती हैं और देश में इस तरह से की जाने वाली राजनीति कहीं न कहीं से देश के कमज़ोर अंतर्राष्ट्रीय पहलू को भी दर्शाती है कि हम अपने आप में इतने सक्षम भी नहीं हैं कि देश के लिए देश के बाहर कम से कम एक सुर में संदेश दे सकें ? मोदी की इस आलोचना सबसे भाजपा के वरिष्ठ नेता और मोदी से असहमत रहने वाले आडवानी ने सबसे पहले की और भाजपा की लम्बे समय से विश्वसनीय सहयोगी शिवसेना ने भी मोदी को एक बार फिर से संयम में रहने की सलाह दी है साथ ही यह भी कहा है कि साल में और ३६४ दिन भी होते हैं और उन दिनों में पूरी तरह से हर स्तर की राजनीति की जा सकती है. अपने राजनैतिक उतार चढ़ाव में अपने किसी भी विरोधी की बात सुनने के स्थान पर उसको राजनीति से बाहर करने की नीति पर चलने वाले नरेन्द्र मोदी को संभवतः इस तरह की बातों से कोई अंतर नहीं पड़ता है ?
ऐसा नहीं है कि आज तक देश में हमेशा ही लोकप्रिय प्रधानमंत्री लालकिले से बोलते रहे हैं पर जिस तरह से आज कल प्रधानमंत्री का मोदी और उनके समर्थकों द्वारा हर जगह उपहास किया जाता है उससे यही लगता है कि मोदी अपनी राजनीति को हर उस स्तर तक ले जाने को उत्सुक हैं जहाँ से समाज के हर स्तर के व्यक्ति का उनको समर्थन मिल सके क्योंकि आज भी देश में बहुत सारे ऐसे लोग हैं जिन्हें किसी भी सरकार की किसी भी बात में कमियां निकालने का अवसर हर समय मिलता रहता है और मोदी अब उस समूह के लिए इस तरह की बातें करके अपने को वहां भी मज़बूत करना चाहते हैं ? इस तरह से देश के त्यौहार पर जिस तरह से आलोचना को नए निम्नतम स्तर तक पहुंचाया जा रहा है आने वाले समय में उसका देश को ही कुछ मूल्य चुकाना होगा क्योंकि देश तो सदैव रहेगा पर इस तरह की राजनीति करने वाले नेता आज हैं तो कल नहीं होंगें पर देश के राष्ट्रीय दिवसों पर इस तरह की राजनीति की शुरुवात कर मोदी ने उस कीचड़ को उछालना शुरू कर ही दिया है जो संभवतः आने वाले समय में देश की स्वच्छ छवि पर धब्बे लगाने और उसकी आत्मा को छलनी करने का काम ही करेगा.

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