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जब भी हम भारत के कानून और कानून व्यवस्था की बात करते हैँ तो हमेँ अपने आप पर शर्म आती है जो देश कभी नैतिकता, कर्तव्यपरायता और नियम पालनके लिये पूरे विश्व के लिये मार्गदर्शक था आज वही देश स्वयं रास्ता भटक गया है।
आजादी के इन 67 सालों में जहाँ हमारेदेश ने आतंकवाद, सुनामी, भूकंप वबाढ़ के रूप में भयानक त्रासदी को सहा है तो वही चाँद पर फतह, भारतीयों का विदेशों में नाम, प्राकृतिक आपदाओं के तत्काल बाद नवनिर्माण आदि के रूप में अपनी विजय का परचम भी लहराया है।
हमारे देश में अब भी जनता की सरकार है। हर फैसला हमारा है परंतु फिर भी मन में एक टीस है, एक असुरक्षा की भावना है, न जाने क्यों आज हम आजाद होकर भी आजद नहीं है, सब कुछ पाने के बावजूद भी कुछ पाने की कमी महसूस कर रहे हैं। आज हम अपनी इस कुंठा को कभी राजनीतिज्ञों पर भ्रष्टाचार के रूप में तो कभी देश के कानून में खामियों के रूप में अभिव्यक्त करते हैं।
‘क्या आज देशकाकानून देश की सुरक्षा के लिए पर्याप्त है, क्या अब भी आप कहेंगे कि मेराभारतमहान है?
हमारे सभी पडोसी देश चाहे चीन हो या पाकिस्तान या फिर बित्ती भर का देश म्यामार सभी ने भारतीय सीमा के अन्दरघुसकर भारतीय क्षेत्र को अपना कहते रहे हैँ । तब हमारे रणनीतिकार विदेश नीति निर्धारक कहाँ थे । पाकिस्तान कई बार भारत की संप्रभुता पर वार कर चुका है पाक सेना के जवान भारतीय सीमा पर से जवानो की हत्या करके आराम से वापस चले जाते हैँ । लेकिन क्या कररहा है हमारा सुरक्षा तन्त्र ? क्या केन्द्र सरकार सोयी हुई है?
चीनी सैनिक हमारी सीमा मेँ 20 किमी तक अन्दर घुस चौकी बना लेते हैँ और हमक्या करते हैँ? बातचीत!
दुश्मनोँ को मित्र नही दुश्मन की ही भाषा मेँ जवाब देना चाहिये तभी देश के नागरिकोँ मेँ सुरक्षा की भावना पैदा होगी। लेकिन हम ऐसा करने मेँ नाकामयाब हो रहे हैँ।
मैँ नही कहता कि आप किसी के खिलाफ युद्ध की घोषणा कर देँ । हाँ लेकिन उनसे सभी प्रकार रिश्ते जरुर तोड देने चाहिये । लेकिन हमारी सरकार कर क्या रही है ? पाकिस्तान को बिजली दान मेँ दे रही है और पाकिस्तान से प्याज आयात करने की बात करती है। क्या पाकिस्तान की मंडियोँ मेँ इतना प्याज है भी कि भारत की एक दिन खपत को भी पूरा कर सकेँ?
ये तो है विदेशनीति की बात हम तो अपनेदेश के अन्दर का माहौल भी सुधार नही पा रहे हैँ। अपराध दिनो दिन बढता ही चला जा रहा है । और वे लोग जो सरकारचला रहे हैँ उन पर खुद अरबो खरबोँ के घोटालोँ का आरोप है भ्रष्टाचार के आरोप हैँ वे क्या अपराध पर अंकुश लगा पायेँगे।
कहने को तो हम स्वतन्त्र है अपना कानून है अपनी व्यवस्था है पर वास्तवमें हम पहले भी गुलाम थे और आज भी हैं? कारण यह की सैंकड़ों वर्ष पूर्व मुगलों के शासन में रहे और फिर दो सौ वर्षो तक अंग्रेजों के गुलाम रहे इसीबीच में हम अपनी सभी विधाओं सभ्यताओंज्ञान विज्ञानं से हाथ धो बैठे – चाहे वह वेद-पुराण हो या अर्थ शास्त्र हो फिर धार्मिक मान्यताएं हो? और यही कारण है कि हम अपना स्वाभिमान खो बैठे हैँ । इतिहास गवाहहै जिसने भी अपनी संस्कृति अपनी सभ्यता को छोडकर किसी और की सभ्यता संस्कृति को अपनाया, आगे चलकर उसकी स्वयं की सभ्यता संस्कृति का लोप हो गया । और शायद हम इसी ओर बढ रहे हैँ।
भारतीय संविधान का ऐसा कौन सा कानून है जिससे वचाव का तरीका मुजरिमोँ के पास नही है? और अगर कोई कडा कानून है भी तो ये भ्रष्टाचार रुपी दानव उसे भी लचर बना देता है।
भारत के इतिहास मेँ सैकडो ऐसे उदाहरणभरे पडे है जिनसे साबित होता है कि भारत के संविधान से आसानी से खिडवाड किया जा सकता है। अब देखिये कोयला घोटाला हुआ जिसमेँ कोयला मँत्री, PMO सहित PM पर भी आरोप लगे क्या हुआ उसकी फाइले ही गायब कर दी गयीँ। क्या इससे ये साफ नही हो जाता कि आरोपित लोग घोटाले मेँ संलिप्त हैँ। ये एक उदाहरण मात्र है ऐसे कई मामले और भी है । हम अगर यहाँ घोटालो की बात करने लगेँगे तो शायद और कई महत्वपूर्ण चीजेँ छूट जायेँगी।
समाजवादी पार्टी के एक नेता यासीन भटकल की गिरफ्तारी पर बयान देते हैँ कि कहीँ भटकल की गिरफ्तारी धर्म के आधार पर तो नही हुयी। एक आतंकवादी जिसकी तलाश कई देशो को थी उसका समर्थन करने वाले पर कानून क्या कर पाया?
हमेँ न सिर्फ कडे कानून बनाने की जरुरत है बल्कि उन कानूनो को सख्ती से लागू भी किया जाना जरुरी है। और येकाम अकेले सरकार के बस की बात नही है इस काम मेँ हम सब को एकजुट होकर खडा होना होगा तभी कुछ हो सकता है।
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