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मुद्दों से भटकाने की असफल कोशिश

सौरभ द्विवेदी "स्वप्नप्रेमी"
सौरभ द्विवेदी "स्वप्नप्रेमी"
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मोदी, उनकी पत्नी और राजनीति
वड़ोदरा से नामांकन करते वक्त बीजेपी से प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार नरेन्द्र मोदी ने पहली बार अपनी पत्नी का नाम दुनिया के सामने रखा। गौरतलब है की मोदी ने पहले कभी भी जशोदा बेन को अपनी पत्नी नहीं कहा था लेकिन कभी अस्वीकार भी नहीं किया था। मोदी हमेशा इससे संबन्धित सवालों को टाल जाया करते थे। पहले कभी पर्चा भरते वक्त भी उन्होंने पत्नी का नाम नहीं लिखा । पत्नी से संबंधित कालम को वो खली छोड़ दिया करते थे। लेकिन एस बार वो ऐसा नहीं कर सकते थे क्योंकि चुनाव ने एस बार चुनाव फार्म में किसी भी कालम को खाली छोड़ने की अनुमति नहीं दी है। कालम खली छोड़ने या गलत सुचना प्रविष्ट करने पर चुनाव आयोग दावेदारी ही निरस्त कर सकता है।
यही एक कारन रहा जिस कारन मोदी को अपने वैवाहिक जीवन के बारे में स्पस्ट करना पडा।
हालाँकि ये उनका निजी मामला है लेकिन फिर भी विरोधियों ने इसे राजनितिक मुद्दा बना दिया । जो कि सही नहीं है । जब उनकी पत्नी को उनसे कोई शिकायत नहीं है तो फिर दूसरों को क्यों है?
भारत की राजनीति में कोई कोई पहला मामला नहीं है जब किसी के निजी मामले को मुद्दा बनाया गया हो,
जहाँ तक मेरी समझ है एस तरह के निजी मामलों को मुद्दा नहीं बनाया जाना चाहिए ।देश में और भी कई कई ऐसे मुद्दे हैं जिन्हें उठाकर चुनाव लड़े जा सकते है।
एस तरह की राजनीती ओछी मानसिकता की परिचायक है। चाहे बीजेपी हो या कांग्रेस सपा हो या बसपा कोई भी सियासी दल ऐसी राजनीति से अछूता नहीं है।
मोदी ने अब तक अपनी पत्नी का नाम क्यों छुपाया? सोनिया गाँधी का धर्म क्या है? अरविन्द केजरीवाल नौकरी छोड़कर राजनीति में क्यों आये?
एन सवालों से देश का कुछ भला होने वाला नहीं है। हाँ अगर सच में देश का कुछ भला करना चाहते हो तो बसत विकास की होनी चाहिए। देश को संब्रद्ध और सुद्रढ़ कैसे बनाया जाये ? बेरोजगारी दूर कर गरीबी भुखमरी को कैसे ख़त्म किया जाये? ये मुद्दे होने चाहिए।

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