- 43 Posts
- 140 Comments
ये कहाँ आ गए हम ?
देश के तीन अर्थ-
मनमोहन,चिदंबरम और प्रणब समर्थ
फिर ये क्या हो रहा अनर्थ?
न देखा तेल, न ही देख पाए तेल की धार
डॉलर के मुकाबले हो गयी रुपये की हार
ऊपर से मार गयी मंहगाई की मार
पहले से ही झेल रहे थे भ्रष्टाचार.
मनमोहन बाबु, कहाँ हो गयी भूल
सरकार के चेहरे पर क्यों पड़ रही धूल
दादा तो चले अब राष्ट्रपति बनने
अनगिनत पत्नियाँ रो रही हैं रसोई में
लोगों को केवल बारह सिलेंडर मिलते हैं
नेताओं केनसीब में होते बहत्तर
चाहे जिस भी पार्टी के हों
नेताजी हैं बड़े शातिर
सब कुछ हो अपने खातिर
अपने जोड़ में माहिर
औरों के तोड़ में माहिर
भ्रष्टाचार के खेल में
ये सचिन, साइना और विश्वनाथन से
मीलों आगे हैं
इनके हर वादे कच्चे धागे हैं
इस देश का क्या होगा
इन नेताओं का क्या होगा
क्या भारत की प्रजातंत्र ही दोषी है?
क्यों नहीं टूटती प्रजा की बेहोशी है?
कब तक…आखिर कब तक
जनता तुम सोती रहोगी?
कब तक लहू के आंसू रोती रहोगी?
उठो जागो तंत्र की जंजीरों को काट दो
कोई प्रजातंत्र नहीं
बस प्रजा को जिन्दा रहने दो
प्रजा जिंदा रहेगी
तो प्रजातंत्र खुद-ब-खुद आ जायेगी
अपने अपने कब्रों से उठो
उसी कब्र में निकम्मे नेताओं को सुलाओ
फिर उनके कब्रों पर
कटोरे में थोड़ी दूध-मलाई रख आओ
इसके बिना वो कब्र में भी
आराम से सो न पायेंगे
प्रेत बनकर प्रजातंत्र को
ताउम्र सतायेंगे..
Read Comments