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जरा सोचो तो…..

chalte chalte
chalte chalte
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क्यों चिल्लाते हो
भ्रस्टाचार पर, काले-धनवान पर
क्यों शोर मचाते हो
अन्याय पर, आज के भगवान पर.
भ्रस्टाचार कब नहीं था
अन्याय कब नहीं था
कालेधन का भगवान कब नहीं था.
त्रेता-द्वापर में भी था
भ्रस्टाचार,अन्याय और कालाधन.
धन के लालच में
तब भी गलत कार्य होते थे
नज़र के सामने भी अन्याय होते देख
बड़े-बड़े चुप बैठे रहते थे.
अपने ही घर में
औरतों पर जुल्म किया करते थे.
सीता हो या द्रौपदी,
देवकी हो या अहिल्या,
सबने सहा
किसी और के जुल्म की सज़ा.
ऐसे ही चलता है
ऐसे ही चलता रहेगा.
कोई रोये,कोई चिल्लाये
कोई फर्क नहीं पड़ेगा.
क्योंकि वो मिटटी तो हम हैं
जो पालते-पोसते हैं
भ्रस्टाचार के विष बृक्ष को.
क्या हम कुछ पैसे देकर
अपना काम जल्दी नहीं करवाते
क्या हम ब्रोकर को पैसे देकर
अपना रिसर्वेशन नहीं करवाते
अपनी सुविधा के लिए
हम सुविधा-शुल्क देते हैं
ये हमें कभी भ्रस्टाचार नहीं लगता
लेकिन,सच तो ये है
कि
भ्रस्टाचार के ये नन्हें पौधे ही
आगे चलकर
विशाल विष-बृक्ष बनते हैं
और
उसकी छाँव में खड़े रहते हैं
कालेधन के भगवान्.
जिनके हाथों में रहता है
भ्रस्टाचार की कमान.
थोड़ा-बहुत ले-दे कर
काम आसानी से करने,करवाने की
आदत तो छोड़ो
अपनी टूटी-बिखरी गन्दी
ख्वाहिशों को मोड़ो
पहले अपने मुखर स्वार्थों को खामोश करो
फिर
चिल्लाना
शोर मचाना
भ्रस्टाचार पर,अन्याय पर.
अगर ऐसा नहीं हुआ
तो
खुद सोचो
क्या हक़ है हमें
किसी पर चिल्लाने की
शोर मचाने की.

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