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ग़ज़ल

chalte chalte
chalte chalte
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कैसे कहूँ किसे ढूंढती है नज़र
हर घडी,हर जगह,हर रहगुज़र.

होंठ ख़ामोश भले ही रहे मलय
अनकही बातें कर रही हैं नज़र.

जानकर भी बहुत अन्जान बन रहे
क्या तुमने अदा पाई है सितमगर.

जब कभी घिरते हैं बादल तन्हाईयों के
बरसती आँखों से होता है चेहरा तरबतर.

इस रात की कोई सुबह तो होगी कभी
मेरी मुहब्बत का तुम पर भी होगा असर.

आज ही मुस्कुरा के कह दो अलविदा
ख़ुदा हाफिज़ कहने को कल ढूंढोगे दरबदर.

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