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“भारत” था जो सिरमोर,क्या पतन भी उसी का होना था ?

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वीरों की भूमि थी “भारत” , “सत्यमेव जयते” था जिसका नारा,
बेईमानों,चोरों,नेताओं के कारण लोगों ने इसे अब भ्रष्ट राष्ट्र पुकारा,
जहाँ अध्यापक पूजे जाते थे और माँ बाप थे भगवान् ,
हत्या करते अपने ही बच्चों की, केवल दिखाने झूठी शान
चोला पहनकर भगवा रंग का ,लोग करते अब पाप,
कसरत सिखाने वालों को ,अब क्या “संत” कहेंगे आप,
भूल गये वेद मन्त्रों को ही अब ,याद करते शीला की जवानी,
मुन्नी को करें बदनाम और इतिहास देश का पुरानी हुई कहानी,
जहाँ बिकती अब “गीता” बाजारों में और बिकता “राम” का नाम,
पांच वक़्त की पूजा नियम जहाँ, झलकते छिल्काते शाम को जाम,
अहिंसा सत्य का पुजारी गाँधी छपा भारत की मुद्रा पर ,
रिश्वत में दिया जाता अब यह गाँधी रोता अपनी किस्मत पर,
तीरथ पर जाने वालों के, तिलक लगाके लोग पाँव थे पूजते,
उनको ही लूटने से, तीरथ के ही लोग नही है झिझकते,
पिता पुत्री को साथ सोने की थी सख्त मनाही,
इसका उपदेश देने वाले ही,लगाते धर्म को स्याही,
कहते हैं , “कलियुग” में ऐसा ही सब कुछ होना था,
“भारत” था जो सिरमोर,क्या पतन भी उसी का होना था ?
निवेदन
डॉ मनोज दुबलिश

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