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मठ्ठा पीयें कायाकल्प करें !

आयुष दर्पण
आयुष दर्पण
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भारतीय रसोई, व्यंजन, संस्कृति एवं खान पान के तौर तरीके पूरी दुनिया में नायाब हैं। हमारे मसाले आज भी औषधि के रूप में दुनिया का ध्यान अपनी ओर आकर्षित करते हैं। ‘घी’ हो या ‘दही’ सभी का अपना महत्व है। ऐसे ही हमारे दादी-नानी द्वारा गांव से लेकर शहर तक अपनी खुशबू बिखेरने वाला दूध से बना “मट्ठा”कौन नहीं जानता।
इसे संस्कृत में ‘तक्र’ कहा जाता है इसे मिटटी के बर्तन में सबसे पहले दूध को गर्म कर उसके सोलहवें हिस्से को जलाकर, ठंडा होने के लिए छोड़कर जब साधारण गर्म रहे तब दही की जामन लगा दें, जामन डालने के 10-12 घंटे बाद जब दही बन जाए तब साफ़ मथानी में खूब मथकर उसमें चौथाई पानी डाल दें, यदि व्यक्ति स्वस्थ हो तब मट्ठे में से घी न निकालें और यदि रोगी हो तो घी निकालकर सेवन कराना चाहिए। आयुर्वेद में इसके गुणों का बखान किया गया है।
आईये अब हम आपको बताते हैं इसके गुण :
– मट्ठे का कल्प अर्थात केवल मट्ठे को निश्चित मात्रा में निश्चित दिन तक क्रम से बढाते हुए, एक मात्रा पर पहुंचकर रोगी के अनुसार चिकित्सक के निर्देशन में फिर उसी क्रम में घटाना ‘कल्पचिकित्सा’ कहलाता है और अगर यह ‘कल्प’ स्वस्थ व्यक्ति में नियमित कराया जाय तो शरीर में झुर्रियां नहीं पड़ती, बुढापा देर से आता है, बाल जल्दी सफ़ेद नहीं होते।
– मट्ठा दीपन ग्राही होता है, अर्थात भूख बढाने वाला, कोलाइटिस के रोगियों के लिए रामबाण औषधि है, यह वायु को शांत करता है।
– ताजा बना मट्ठा पाईल्स के रोगियों के लिए हितकारक है।
– जाड़ों के मौसम में अग्निमांद, अरुचि, वातव्याधि, उल्टी आना, भगंदर, सफ़ेददाग, अतिसार, उदर रोगों एवं कृमि रोगों में मट्ठे का सेवन हितकारी होता है।
– स्वस्थ व्यक्ति में मट्ठे का सेवन सदैव भोजन के आधे घंटे बाद करना चाहिए।
– ताजा मीठा मट्ठा एसिडीटी को दूर करता है।
– मट्ठा पचने में हल्का होता है, यदि रोगी कोई भी भोज्य पदार्थ नहीं पचा पाता है तो उसे मट्ठे का सेवन कराना चाहिए।
– कोलाईटीस के रोगियों में मट्ठे के साथ पंचामृतपर्पटी का कल्प चमत्कारिक प्रभाव दर्शाता है। कहा गया है क़ि जिस प्रकार सूर्य अन्धकार को दूर करते हैं वैसे ही मट्ठाकोलाईटीस को दूर करता है। बस ध्यान रहे की गर्मी के दिनों में मट्ठा खट्टा न हो जाय, अतः गर्मी के मौसम में मट्ठे के मटके को कपड़ा लपेटकर, बालू की रेट बिछाकर जल छिड़कने की व्यवस्था रखनी चाहिए।

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