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गर सब कुछ ओके है,तो फ़िर आप ओके हैं !!

आयुष दर्पण
आयुष दर्पण
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बीमारियों के इलाज के लिए पहले फेमिली डाक्टर के पास जाते हैं और यदि उसकी सलाह होती है,तभी किसी विशेषज्ञ से परामर्श लेते हैं I आजकल समाज में यह नयी प्रवृति उत्पन्न हुई है ,क़ि किसी समस्या को पहले ही भांप कर उसका समाधान ढूंढा जाय ..और ऐसा ही कुछ चिकित्सा विधा के साथ भी हो रहा है I हाल ही में न्यू इंग्लेंड जर्नल में छपे  लेख के अनुसार शोधकर्ताओं का यह मानना है, क़ि कोलोनोस्कोपी कोलोन कैंसर से होने वाली मौत क़ी संभावना को कम करता है, लेकिन समय से पूर्व रोगों की पहचान का उत्साह एक प्रकार के खतरे को भी पैदा कर रहा है, जिससे ओवरडाइग्नोसिस और ओवरट्रीटमेंट जैसी समस्याएं भी पैदा हो रही हैं I हालाकि नियमित स्वास्थ्य क़ी जांच स्वस्थ रहने का नितांत आवश्यक पहलू है और इसके लिए स्क्रीनिंग एक अच्छा उपाय है,और कुछ हद तक यह जीवन बचाता भी है ,लेकिन यह अनावश्यक चिकित्सकीय सलाह ,अनावश्यक जांचें एवं कई बार अनावश्यक सर्जिकल आपरेशन जैसी समस्या भी लेकर आता है I आप इसे ऐसे समझें क़ि पहले आप बीमार पड़ने पर ही चिकित्सक के पास सलाह लेने जाया करते थे, लेकिन अब आप स्वस्थ रहने के लिए और स्वास्थ्य समस्याओं के बारे में अपनी जानकारी को बढाने के लिए चिकित्सक के पास जाते हैं Iआज .हेल्थकेयर एक उद्योग के रूप में हमारे सामने है और लोगों को मरीज बनाना चुटकियों का खेल है और हेल्थ स्क्रीनिंग इसका बड़ा साधन है, जिससे चिकित्सकों ,दवा कंपनियों एवं अस्पतालों को खूब फायदा पहुंचाता है I अमेरिका जैसे देश में जहां स्वास्थ्य और चिकित्सकीय सुविधायें आम आदमी की जेब को ढीली करने में कसर नहीं छोडती है ,वहां केवल प्रोस्टेट कैंसर की स्क्रीनिंग कर अस्पताल पांच हजार डालर बना लेते हैं I अमेरिकन कैंसर सोसाइटी के चिकित्सक इसके लिए की जानेवाले बायोप्सी , चिकित्सा और फालो-अप केयर को धन्यवाद देते हैं I रोगों से बचाव जिसे प्रीवेन्टिव-केयर कहा जाता है, यह आवश्यक भी है, पर इसे व्यसन रहित जीवनशैली,अच्छे खान-पान,व्यायाम ,योग आदि साधनों से पूरा किया जाना चाहिए ..लेकिन इसके उलट आज यह बायो-मेडिकल संस्कृति में बदल गया है, जहां प्रीवेन्टिव-केयर बीमारियों की खोज के हाईटेक साधन के रूप में सामने है ,क्यूंकि किसी स्वस्थ व्यक्ति में बीमारी ढूँढना ,बीमार व्यक्ति के इलाज से आसान जो है I लेकिन इससे हम रोगों की समय पूर्व पहचान की महत्ता को कम नहीं कर सकते ,जिसकी पुष्टि भारतीय संस्कृति की धरोहर आयुर्वेदीय चिकित्सा पद्धति में रोगों की समय पूर्व पहचान के लिए पञ्चनिदान जैसे सिद्धांत देकर की गयी है ..! बस जरूरी इतना है, क़ि चिकित्सा विज्ञान का धर्म रोगीयों को कष्ट से मुक्ति दिलाना हो न क़ि स्वस्थ को बीमार बनाना  ….ऐसा ही कुछ आयुर्वेद के महान मनीषी सुश्रुत ने वर्षों पहले “स्वस्थस्य स्वास्थ्य रक्षणं आतुरस्य विकार प्रशंमनं च” कहकर सुझाया था ..तो गर सब कुछ ओके है तो फिर आप ओके हैं ……!!

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