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सेक्स: मिथक और सच्चाई

आयुष दर्पण
आयुष दर्पण
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जीवन बचपन,यौवन एवं बुढापे का एक मिश्रण है जहां शारीरिक निर्माण,विकास एवं क्षय क़ी  प्रक्रिया निरंतर चलती रहती है I बचपन निर्माण एवं विकास क़ी अवस्था का नाम है ,तो जवानी विकास एवं परिवर्तन क़ी शारीरिक अवस्था है,इसी प्रकार बुढापा क्षय एवं शारीरिक मुक्ति क़ी ओर जाने का मार्ग है I बचपन अल्हड,मस्त एवं चंचलता से अटखेलियाँ लेता हुआ यौवन क़ी  ओर कदम रखता है I विकास  क़ी इस प्रक्रिया में शारीरिक परिवर्तन होना भी स्वाभाविक है , यह  स्वर एवं  जननांगों  के विकास जैसे शारीरिक परिवर्तनों के साथ-साथ विपरीत लिंग क़ी तरफ आकर्षण जैसे मानसिक परिवर्तनों के झंझावात से गुजरता है, जिसे हम जवानी कहते हैंI  कहते हैं पानी और जवानी क़ी धार को रोकना मुश्किल होता है ,यह बिल्कुल सत्य है और इसी उम्र में लोग सेक्स से सम्बंधित गलतफहमियों का शिकार हो जाते हैं I जननांगों में होने वाले स्वाभाविक परिवर्तनों को युवा बड़ी कौतूहलता से लेते हैं और इसपर अश्लील साहित्य का तडका लग गया तो फ़िर एकांत में ‘हस्तमैथुन ‘ करने लग जाते हैं , यह क्रम लगातार स्वाभाविक रूप से चलता रहता है तथा उनके अंतर्मन क़ी कौतूहलता को कुछ हद तक शांत भी करता है, पर अचानक इन युवाओं का ध्यान किसी विज्ञापन पर पड़ जाता है ,जहां बचपन क़ी गलतियों क़ी व्याख्या भयावह तरीके से क़ी गयी होती है, अधूरी  एवं भ्रामक जानकारी उनके युवा मन-मस्तिष्क को बुरी तरह प्रभावित करती है तथा अक्सर ऐसे युवा अपने जननांगों क़ी लम्बाई को लेकर भ्रम में पड़ जाते हैं तथा ‘हस्तमैथुन ‘ को  कारण मानकर नीम- हकीम के चक्कर में पड़ जाते हैं, ऐसे युवा अपना धन एवं समय के साथ-साथ अपनी ऊर्जा व्यर्थ गवांते हैं I बस आवश्यकता मात्र इतनी होती है, कि कोई उन्हें सही मार्गदर्शन दे ,माता -पिता का इस उम्र में अपने बच्चों पर ध्यान न देना भी एक कारण होता है I माता -पिता अक्सर ऐसे बच्चों को लेकर चिकित्सक के पास आते हैं  तथा बच्चे के अंतर्मुखी एवं एकान्तप्रिय होने जैसे लक्षणों को बतलाते हैं , जब चिकित्सक बच्चे की  गहराई में विवेचना करते हैं तो इसके पीछे का कारण उनके मन-मस्तिष्क में  ‘हस्तमैथुन ‘ से सम्बंधित भ्रान्ति घूमना जान पाते हैं , कई बार तो ऐसे युवा अवसाद से भी ग्रस्त हो जाते हैं ,अतः उन्हें यह समझाने की  सख्त आवश्यकता है, क़ि जननागों को छूने या ‘हस्तमैथुन’ (मास्टरबेट) करने से कोई शारीरिक कमजोरी नहीं आती है I  उन्हें यह बताना आवश्यक है, क़ि हमारे शरीर में प्रति सेकेण्ड २००० शुक्राणु  बनते हैं तथा ये जवानी के आरम्भ से ही बनना प्रारम्भ हो जाते हैं,इन्हें परिपक्व  होने में कुछ हफ्ते मात्र लगते हैं,तथा ये स्वयं भी इजेकुलेट (बाहर निकलना ) हो जाते हैं और यदि इजेकुलेट  नहीं हुए तो शरीर में ही अवशोषित हो जाते हैं I अतः सेक्स  या ‘हस्तमैथुन’ करने मात्र से शुक्राणुओं के उत्पादन पर ख़ास फर्क नहीं पड़ता, यह सामान्य रूप से यथावत होता रहता है I  आधुनिक विज्ञान भी ‘हस्तमैथुन ‘ को सामान्य प्रक्रिया मानता है, हाँ यह सत्य है, क़ि हस्तमैथुन में ऊर्जा क़ी खपत   स्वाभाविक सेक्स के दौरान खर्च होने वाली ऊर्जा से काफी कम होती है I  यह बात अवश्य ध्यान रखनी चाहिए क़ि  प्राकृतिक सेक्स शारीरिक आवश्यकता है,जबकि ‘हस्तमैथुन ‘ एक अप्राकृतिक विकल्प मात्र I बस ध्यान रहे “अति सर्वत्र वर्ज्यते ”

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