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जागरूक जनता ही करेगी स्वच्छ भारत का निर्माण

yunhi dil se
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2 अक्टूबर 2014 को प्रधानमंत्री मोदी द्वारा शुरू किए गए स्वच्छ भारत अभियान को अक्टूबर 2017 में तीन वर्ष पूर्ण हो रहे हैं। स्वच्छ भारत अभियान के मकसद की बात करें तो इसके दो हिस्से हैं, एक सड़कों और सार्वजनिक स्थलों पर साफ सफाई तथा दूसरा भारत के गाँवों को खुले में शौच से मुक्त करना।


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बात निकली ही है तो यह जानना भी रोचक होगा कि स्वच्छता का यह अभियान इन 70 सालों में भारत सरकार का देश में सफाई और उसे खुले में शौच से मुक्त करने का कोई पहला कदम हो या फिर प्रधानमंत्री मोदी की कोई अनूठी पहल ही हो, ऐसा भी नहीं है। 1954 से ही भारत सरकार द्वारा ग्रामीण भारत में स्वच्छता के लिए कोई न कोई कार्यक्रम हमेशा से ही अस्तित्व में रहा है, लेकिन इस दिशा में ठोस कदम उठाया गया 1999 में तत्कालीन सरकार द्वारा।


खुले में मल त्याग की पारंपरिक प्रथा को पूरी तरह समाप्त करने के उद्देश्य से “निर्मल भारत अभियान” की शुरुआत की गई, जिसका प्रारंभिक नाम ‘सम्पूर्ण स्वच्छता अभियान’ रखा गया था। इस सबके बावजूद 2014 में आई यूएन की रिपोर्ट में कहा गया था कि भारत की करीब 60% आबादी खुले में शौच करती है और इसी रिपोर्ट के आधार पर प्रधानमंत्री मोदी ने स्वच्छ भारत मिशन की शुरुआत की।


अब एक बार फिर जब इस अभियान की सालगिरह आ रही है, तो हमारे देश के नेता अभिनेता और विभिन्न क्षेत्रों के सेलिब्रिटीज एक बार फिर हाथों में झाड़ू लेकर फोटो सेशन करवाएंगे। ट्विटर और फेसबुक पर स्वच्छ भारत अभियान हैश टैग के साथ स्टेटस अपडेट होगा. अखबारों के पन्ने मुख्यमंत्रियों, नेताओं और अभिनेताओं के झाड़ू लगाते फोटो से भरे होंगे और ब्यूरोक्रेट्स द्वारा फाइलों में ओडीएफ (खुले में शौच मुक्त) गाँवों की संख्या निरंतर बढ़ती जा रही होगी, लेकिन क्या वास्तव में हमारा देश साफ दिखाई देने लगा है? क्या हम धीरे धीरे ओडीएफ होते जा रहे हैं? हमारे गांव तो छोड़िये क्या हमारे शहरों के स्लम एरिया भी खुले में शौच से मुक्त हो पाए हैं? शौच छोड़िये, क्या हम कचरे की समस्या का हल ढ़ूँढ पाए?


एक तरफ हम स्मार्ट सिटी बनाने की बात कर रहे हैं, तो दूसरी तरफ हमारे महानगर यहाँ तक कि हमारे देश की राजधानी दिल्ली में रहने वाले लोग तक कचरे की बदबू और गंदगी से फैलने वाली मौसमी बीमारियों जैसे डेंगू-चिकनगुनिया आदि को झेलने के लिए मजबूर हैं। अभी हाल ही में दिल्ली के गाजीपुर में कचरे के पहाड़ का एक हिस्सा धंस जाने से दो लोगों की मौत हो गई।


इन हालातों में क्या 2019 में गांधी जी की 150वीं जयंती तक प्रधानमंत्री मोदी की यह महत्वाकांक्षी योजना सफल हो पाएगी? दरअसल स्वच्छ भारत, जो कि कल तक गाँधी जी का सपना था, आज वो मोदी जी का सपना बन गया है, लेकिन इसे इस देश का दुर्भाग्य कहा जाए या फिर अज्ञानता कि 70 सालों में हम मंगल ग्रह पर पहुंच गए. परमाणु ऊर्जा संयंत्र बना लिए. हर हाथ में मोबाइल फोन पकड़ा दिए, लेकिन हर घर में शौचालय बनाने के लिए आज भी संघर्ष कर रहे हैं?


गाँधी जी ने 1916 में पहली बार अपने भाषण में भारत में स्वच्छता का विषय उठाया था और 2014 में हमारे प्रधानमंत्री इस मुद्दे को उठा रहे हैं। स्वच्छता 21वीं सदी के आजाद भारत में एक ‘मुद्दा’ है, यह दुर्भाग्यपूर्ण है, लेकिन 2019 में भी अगर यह एक ‘मुद्दा’ रहा, तो अधिक दुर्भाग्यपूर्ण होगा। देश को स्वच्छ करने का सरकार का यह कदम वैसे तो सराहनीय है, लेकिन इसको लागू करने में शायद थोड़ी जल्दबाजी की गई और तैयारी भी अधूरी रही।


अगर हम चाहते हैं कि निर्मल भारत और स्वच्छता के लिए चलाए गए बाकी अभियानों की तरह यह भी एक असफल योजना न सिद्ध हो, तो जमीनी स्तर पर ठोस उपाय करने होंगे। सबसे पहले तो भारत एक ऐसा विशाल देश है, जहां ग्रामीण जनसंख्या अधिक है, और जो शहरी पढ़ी-लिखी तथाकथित सभ्य जनसंख्या है, उसमें भी सिविक सेन्स का आभाव है। उस देश में एक ऐसे अभियान की शुरुआत जिसकी सफलता जनभागीदारी के बिना असंभव हो, बिना जनजागरण के करना ठीक ऐसा ही है जैसे किसी युद्ध को केवल इसलिए हार जाना, क्योंकि हमने अपने सैनिकों को प्रशिक्षण नहीं दिया था।


जी हाँ इस देश का हर नागरिक एक योद्धा है, उसे प्रशिक्षण तो दीजिए। सबसे महत्वपूर्ण बात “अगर आपको पेड़ काटने के लिए आठ घंटे दिए गए हैं, तो छह घंटे आरी की धार तेज करने में लगाएँ”। इसी प्रकार स्वच्छ भारत अभियान का सबसे महत्वपूर्ण हिस्सा है देश के नागरिकों को चाहे गांव के हों या शहरों के, उन्हें सफाई के प्रति, उनके सामाजिक दायित्वों के प्रति जागरूक करना होगा। क्योंकि जब तक वे जागरूक नहीं होंगे हमारे निगम के कर्मचारी भले ही सड़कों पर झाड़ू लगाकर और कूड़ा उठाकर उसे साफ करते रहें, लेकिन हम नागरिकों के रूप में यहाँ-वहाँ कचरा डालकर उन्हें गंदा करते ही रहेंगे। इसलिए जिस प्रकार कुछ वर्ष पूर्व युद्ध स्तर पर पूरे देश में साक्षरता अभियान चलाया गया था, उसी तरह देश में युद्ध स्तर पर पहले स्वच्छता जागरूकता अभियान चलाया जाना चाहिए।


यह अभियान उस दिन अपने आप सफल हो जाएगा जिस दिन इस देश का हर नागरिक केला या चिप्स खाकर कचरा फेंकने के लिए डस्टबिन ढूँढेगा, भले ही उसे आधा किमी चलना ही क्यों न पड़े और यह सब किसी जुर्माने के डर से नहीं, बल्कि देश को स्वच्छ रखने में अपना योगदान देने के लिए।


दूसरा, हम गांवों में शौचालयों की संख्या पर जोर देने की बजाय उनके ‘उपयोग करने योग्य’ होने पर जोर दें. क्योंकि जिस तरह की रिपोर्ट्स आ रही हैं उसमें कहीं शौचालयों में पानी की व्यवस्था नहीं है, तो कहीं शौचालय के नाम पर मात्र एक गड्डा है।


तीसरा, स्वच्छ भारत अभियान केवल शौचालय निर्माण तक सीमित न हो, उसमें कचरे के प्रबंधन पर भी जोर देना होगा। कचरे से ऊर्जा और बिजली उत्पादन के क्षेत्र में रिसर्च, नई तकनीक और स्टार्टअप को प्रोत्साहन दिया जाए। प्लास्टिक और पॉलीथिन का उपयोग प्रतिबंधित हो और इलेक्ट्रॉनिक कचरे के लिए एक निश्चित स्थान हो। जब देश को अस्वच्छ करने वाले हर क्षेत्र पर सुनियोजित तरीके से आक्रमण किया जाएगा, तो वो दिन दूर नहीं जब स्वच्छ भारत का गाँधी जी का स्वप्न यथार्थ में बदल जाएगा।

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