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मेरे पिताजी सदैव से राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ व भारतीय जनसंघ के सद्भावी थे, अन्य करोड़ों देश वासियों की भाँति | यद्यपि वे कभी उसके सक्रिय कार्यकर्ता नहीं रहे | ईमानदार इतने कि बड़ी फर्म के मुनीम की हैसियत से, न खाऊंगा न खाने दूंगा नियम युत, शहर के शत-प्रतिशत ईमानदार, मुनीम जी के नाम से व्यापार जगत में प्रसिद्ध | मुनीम जी को हिसाब बताये कारोबार में कोई हिस्सेदार या मालिक लाला उनके पुत्र भी अनुचित खर्च नहीं कर सकता था|
डा. श्यामा प्रसाद मुखर्जी की धारा ३७० के विरोध में कश्मीर यात्रा पर वे भी काफी उत्साहित थे | उस समय अटल बिहारी वाजपेयी युवा कार्यकर्ता थे जिनसे पिताजी काफी प्रभावित थे एवं कहा करते थे ये लड़का अवश्य ही बहुत ऊंचाई तक जायेगा | यद्यपि बात अधिक आगे नहीं बढ़ी | परन्तु पिताजी देश समाज व हिन्दुओं की इस दशा पर गम्भीर चिंतन रत रहते थे कि कब हिन्दुओं का अपने देश में वर्चस्व होगा, कब देश वास्तव में आज़ाद होगा | उनका मानना था कि कांग्रेस की जो यह पीढी इस समय राज्य कर रही है वह अंग्रेजियत व मुगलियत की गुलाम है अतः हम अभी भी गुलाम ही हैं, हम सब इसके प्रभाव वश ही कायर, मतलब परस्त हो चले हैं | बढ़ते हुए भ्रष्टाचार अनाचार एवं अनियमित अति भौतिक-विकास, सांस्कृतिक प्रदूषण भी उनकी चिंता का विषय रहता था | सामान्य भारतीय की भाँति वे कल्कि अवतार की प्रतीक्षा में भी थे, परन्तु उनका कथन था कि राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ और जनसंघ पार्टी ही सच्ची हिंदुत्व की समर्थक व राष्ट्रीयता की पोषक है और वही देश में वास्तविक भारतीय राज्य की स्थापना कर सकती है और एक दिन अवश्य ही ऐसा होगा | हाँ उनके सम्मुख यह नहीं हो पाया |
मैं स्वयं ‘राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ’ और जनसंघ पार्टी का सद्भावी हूँ पर कभी इन दोनों का सक्रिय सदस्य नहीं रहा | स्कूल कालिज का समय हो या सरकारी नौकरी, लाभ के पदों पर रहते हुए भी मैं पिताजी के सिद्धांत ‘न खाऊंगा न खाने दूंगा’ पर बना रहा, अपितु आगे बढ़ कर भ्रष्टाचार, शोषण के विरुद्ध अपने तरीके से मुहिम भी चलाता रहा | पिताजी की भांति मैं भी सोचता था कि कब हम विधर्मियों एवं विधर्मी, अधर्मी और भ्रष्ट विचारों की अनकही हिरासत से बाहर होंगे, आजाद होंगे | कब मेरा देश-समाज-धर्म वास्तव में आजाद होगा अनाचारों, अनीतियों, शोषण व भ्रष्टाचार से | कब अंग्रेज़ी परस्त, मुस्लिम परस्त व विधर्मी लोगों के चंगुल से ये देश स्वतंत्र होगा | इंतज़ार करते करते ५०-६० वर्ष बीत गए इस व्यथा का कोई अंत व छोर ही नहीं दिख रहा था |
देश भी शायद यही इंतज़ार कर रहा था, आये कोई मसीहा | कल्कि अवतार तो अभी तक पता नहीं परन्तु अचानक ही एक शक्तिशाली व्यक्ति देश की राजनीति में उभरा जो अश्वमेध के घोड़े को साथ लिए इस देश के जाने कितनी कुव्यवस्थाओं, बुराइयों, कुरीतियों, राजनैतिक राष्ट्रीय व अंतर्र्राष्ट्रीय अव्यवस्थाओं को ध्वस्त करता जा रहा है, ‘न खाऊंगा न खाने दूंगा’ के सिद्धांत के साथ |
आज भारतीय प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र दामोदर दास मोदी को कौन नहीं जानता | वे अभी भी अश्वमेध के अश्व पर सवार हैं एवं भारत देश की संप्रभुता, उसकी राष्ट्रीय पहचान, समाज में समता-समानता, भारतीय जनता एवं हिंदुत्व के लिए के लिए एक से एक नवीन विजय पताका फहराते जा रहे हैं सबके विकास एवं सबका साथ के साथ | मुझे अब प्रतीत हो रहा है कि मेरी व स्व.पिताजी की एवं मेरे भारत देश का भी चिंता-चिंतन व इंतज़ार का समय समाप्त हुआ, आगे जो भी होगा उचित ही होगा | मोदी है तो मुमकिन है | शायद कलयुग में कल्कि अवतार का अर्थ यही हो | मैं खुशनसीब हूँ कि यह सब मेरे जीते जी हुआ | मैं अब भारत के स्वर्णिम भविष्य के लिये आशान्वित हूँ सुनिश्चित हूँ |
मैं अब आश्वस्त हूँ |
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