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हेमन्त ऋतु की आहट हो चली है , रात्रि- समारोहों आदि में ठिठुरन से बचने के लिए अलाव जलाए जाने का क्रम प्रारम्भ हो चला है | प्रस्तुत है एक ठिठुरती हुई रचना …..
१.
(श्याम घनाक्षरी –३० वर्ण , १६-१४, अंत दो गुरु -यगण)
थरथरथरथर, कांपेंसबनारीनर,
आईफिरशीतऋतु, सखिवोसुजानी |
सिहरिसिहरिउड़े, जियरापखेरूसखि ,
उरमांहिउमंगाये, पीर वो पुरानी |
बालवृद्धनारीनर, धूपबैठे तापिरहे ,
धूपभीहैकुछ, खोईसोईअलसानी |
शीतकीलहर, तीरभांतितनबेधिरही,
मनउठैप्रीतिकी, वोलहरअजानी ||
२.
( श्याम घनाक्षरी -३० वर्ण ,१६-१४, अंत दो गुरु – मगण)
बहुभांतिपुष्पखिलें, कुञ्जक्यारीउपवन,
रंग– विरंगीओढे, धरतीरजाईहै |
केसरअबीररोली, कुंकुंम ,मेहंदीरंग,
घोलकेकटोरोंमें, भूमिहरषाईहै |
फैलिरहींलता, चहुँऔरमनमानीकिये,
द्रुमचढींशर्मायं, मनमुसुकाईहैं |
तिलमूंगबादामके, लड्डूघरघरबनें ,
गज़कमंगोड़ोंकी, बहारसीछाईहै ||
३.
( मनहरण घनाक्षरी -३१ वर्ण ,१६-१५,अंत लघु-गुरु -रगण )
ठंडीठंडीभूमिनंगेपाँवलगेहिमशिला ,
जलछुएलगेछुआबिजलीकातारहै |
कठिननहानानललगेजैसेसांपकोई,
काँपरहातनचढ़ाजूडीकाबुखारहै |
शीतमेंतुषारसेहैमंदरविप्रभाहुई,
पत्तियोंपैबहेओसजैसेअश्रुधारहै |
घरबाग़वनजलाआगबैठेलोगजैसे,
ऋषिमुनिकरेंयज्ञविविधिप्रकारहैं ||
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