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मुक्तक—-
१. सवेरा हो-
मेरे मन में हे प्रभु निशिदिन मानवता का डेरा हो,
सत्य अहिंसा और धर्म का मानव मन में बसेरा हो |
राष्ट्रप्रेम और देशभक्ति का सबके मन में नेह जगे,
श्रृद्धा और विश्वास का सूरज लेकर नित्य सवेरा हो |
२.आदिशक्ति –
आदिशक्ति हो हे नारी तुम, जग का अर्ध बसेरा हो,
ममता दया क्षमा त्याग और प्रेम भाव का डेरा हो |
जागो उठो चलो साहस कर, कदम मिला सारे जग से,
दुनिया से तम मिटे, नवोदित जग हो नया सवेरा हो |
३.तुम चाहो तो-
चाहे जितना असत जाल हो, जग अज्ञान अन्धेरा हो,
नारी यदि तुम चाहो जग में, नीति न्याय का डेरा हो |
आदर्शों की बातें संतति के मन में तुम ही भरतीं,
सत्य व निष्ठा संस्कार का सारे जग में बसेरा हो |
४.आना-जाना –
आने-जाने वाले को भला कौन रोक पाया है,
आना-जाना तो जग का चलन, प्रभु की माया है |
आना-जाना पर उसी का याद रहता है ‘श्याम,
जिसने जीवन का, जगत का, प्रभु का गीत गाया है |
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