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चार मुक्तक—-डा श्याम गुप्त ..

drshyam jagaran blog
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मुक्तक—-

१. सवेरा हो-

मेरे मन में हे प्रभु निशिदिन मानवता का डेरा हो,

सत्य अहिंसा और धर्म का मानव मन में बसेरा हो |

राष्ट्रप्रेम और देशभक्ति का सबके मन में नेह जगे,

श्रृद्धा और विश्वास का सूरज लेकर नित्य सवेरा हो |

 

२.आदिशक्ति –

आदिशक्ति हो हे नारी तुम, जग का अर्ध बसेरा हो,

ममता दया क्षमा त्याग और प्रेम भाव का डेरा हो |

जागो उठो चलो साहस कर, कदम मिला सारे जग से,

दुनिया से तम मिटे, नवोदित जग हो नया सवेरा हो |

 

३.तुम चाहो तो-

चाहे जितना असत जाल हो, जग अज्ञान अन्धेरा हो,

नारी यदि तुम चाहो जग में, नीति न्याय का डेरा हो |

आदर्शों की बातें संतति के मन में तुम ही भरतीं,

सत्य व निष्ठा संस्कार का सारे जग में बसेरा हो |

 

४.आना-जाना –

आने-जाने वाले को भला कौन रोक पाया है,

आना-जाना तो जग का चलन, प्रभु की माया है |

आना-जाना पर उसी का याद रहता है ‘श्याम,

जिसने जीवन का, जगत का, प्रभु का गीत गाया है |

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