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भारत में वर्ण व्यवस्था व जाति प्रथा की कट्टरता, एक ऐतिहासिक आईना

drshyam jagaran blog
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भारत में वर्ण व्यवस्था व धर्म और जातिप्रथा की कट्टरता कब व कैसे और क्यों प्रारम्भ हुई, इसके ऐतिहासिक तत्वों पर कभी गंभीरता से युक्ति-युक्त विचार नहीं हुआ। विदेशियों व वामपंथी इतिहासकारों ने केवल अपने लाभ हेतु एवं विदेशी- अंग्रेज़ी साहित्य के चश्मे से ही इसे देखा व वर्णित किया गया, जिसका सत्य से लेना देना नहीं है। इस विषय पर युक्ति-युक्त विचार हेतु विभिन्न विषय, घटनाओं एवं उदाहरणों सहित इस आलेख को हम इसे चार भागों में प्रस्तुत करेंगे।

 

 

१. भाग एक–— देश का इतिहास व वर्णव्यवस्था —

२. भाग दो—-वैदिक धर्म में कुरीतिया कैसे आईं —

३. भाग तीन–– हिन्दू धर्म को जिन्दा कैसे रखा गया —

४.भाग चार —- केवल वैदिक हिन्दू धर्म ही जीवित रहा —

 

 

 भाग एक –—देश का इतिहास व वर्णव्यवस्था

 

देश के विश्वविद्यालयों में स्नातक स्तर के आधुनिक इतिहास के विभाग एवं  परास्नातक पाठयक्रम 1920 के बाद  खोले गए | फिर प्राचीन भारत में वर्णव्यवस्था पर आधिकारिक इतिहास किस आधार पर लिखा गया और किसने लिखा ? सारा इतिहास विदेशियों ने लिखा, उनकी ही नक़ल पर  देशी अंग्रेजों व वामपंथी इतिहासकारों ने अपने लाभ हेतु, विदेशी व अंग्रेज़ी साहित्य व भाषा के चश्मे से ही इसे देखा, वर्णित किया, और वही आगे भी लिखा व पढ़ा जाता रहा |

मुस्लिम व अँगरेज़ आक्रान्ताओं द्वारा  देश की मूल वैदिक धर्म व परम्पराओं पर चलने वाली हिन्दू जनता को किस प्रकार बलपूर्वक भयाक्रांत करके उन्हें निचले पायदान पर लाया गया यह किसी इतिहासकार ने नहीं बताया या लिखा अपितु उस भयाक्रांत भारतीय जनता को पहले फारसी, उर्दू फिर अंग्रेज़ी साहित्य द्वारा धर्मविहीन, मानसिक दिवालिया स्व-धर्म विरोधी बनाया गया कि देश के ही इतिहासकार स्वयं ही अपने ही इतिहास, धर्म-संस्कृति, वैदिक संस्कृति को नकारने लगे |

तथ्यों को इस प्रकार तोड़ा मरोड़ा गया और एक नया इतिहास रच दिया गया जिसके चलते विदेशी आक्रान्ता जिनके पूर्वजों ने 800 साल तक राज किया,  अत्याचार किए वही पाक साफ़ होकर देश के नागरिक बनकर स्वतंत्र भारत की सरकारों की तुष्टीकरण नीति के कारण अल्पसंख्यकों के नाम पर आरक्षण भी पारहे हैं और कटघरे में खड़े हैं स्वयं इस देश के मूल निवासी वैदिक धर्म व संस्कृति, यहाँ तक कि  आज के कथित अल्पसंख्यक अम्बेडकरवादी, गोंड आदि पुरा-आदिवासी जातियां अपने प्राचीन भारतीय गौरव को भूलकर, भारत में रहने वाले सवर्ण ब्राहमण-क्षत्री, वैश्य व अन्य लोगों को गाली देते हैं व विदेशी बताते हैं और खुद को भारत का मूल नागरिक |

ज्योतिबा फुले और अम्बेडकर आदि ने भी उसी चश्मे से देखा एवं तदनुसार भावावेश में इतिहास और तथ्यों को तोड़ा मरोड़ा और एक नया इतिहास रच दिया| अपने ही लोगों के मन में अन्य जातियों के लिए इनके द्वारा भरा गया ज़हर हमेशा भरा रहेगा जो देश-समाज-संस्कृति के लिए अहितकर हो रहा है एवं भविष्य में भी अहितकर होगा।
आज हालात यह हैं कि देश, समाज, सरकार की तुष्टीकरण नीति वहमारे समस्त समाज बुद्धिवादी व विशिष्ट जनों के भी मानसिक दिवालियापन की कोइ सीमा नहीं है |  कुछ उदाहरण प्रस्तुत  हैं—

१. ऐसी कट्टर मानसिक गुलामी है कि वह अकबर तो महानहै जिसके शासन में 500000 लोगों को गुलाम बनाकर मुसलमान बनाया गया तथा सत्ता न मानने वाले चित्तौड़गढ़ के 38000 राजपूतों को कटवा दिया गया |  उस का महिमामंडन करने में मीडिया और भी आगे है |  लेकिन महाराणा प्रताप, गुरु गोबिंद सिंह जी, गुरु तेग बहादुर, रानी लक्ष्मी बाई, पन्ना धाय को दो पन्नो में समेट दिया गया या  बिलकुल ही विस्मृत कर दिया गया।

२.  25 साल के सैन्य बलों के कश्मीर में बलिदान को एक बेहूदी फिल्म बनाकर व्यर्थ कर दिया जाता है |

. कोइ यह नहीं बता पाता कि सिर्फ 50 सालों में कश्मीर घाटी के 10 लाख हिंदू 3000 के अंदर कैसे सिमट गये | किसी ने कोई प्रदर्शन नहीं किया, केंडल मार्च नहीं किया |

४. कसाब के पकड़े जाने के बाद हिन्दू विरोधी लाबी द्वारा प्रचारित किया गया कि   26/11 का मुम्बई हमला रा.स्वयं सेवक संघने करवाया था। जो झूठ साबित हुआ और स्कूली किताबों से इसको बमुश्किल  हटाया गया |

५.मनु, —–जिन्होंने शायद ही कभी “मनुस्मृति”का अध्ययन किया होगा, उन्हीं लोगों ने जयपुर हाईकोर्ट परिसर में महर्षिमनु की मूर्ति लगने पर विरोध प्रगट किया और हद तो तब हुई कि हाईकोर्ट की फुल बेंच ने भी अपनी विद्वता का परिचय देते हुए 48 घंटे में उसे हटाने का आदेश पारित कर दिया। जब दूसरे पक्ष द्वारा अपनी बात को  रखा गया तो तीन दिन लगातार बहस के बाद भी  मनु के आलोचक मनुको गलत साबित नहीं कर पाये और एक अंतरिम आदेश के साथ हाईकोर्ट को अपना आदेश स्थगित करना पड़ा ।

मनुस्मृति और अन्य धर्मशास्त्रों में वर्णव्यवस्था “कर्मआधारित” थी और कर्म के आधार पर कोई भी अपना वर्ण बदलने के लिए स्वतंत्र था  गीता में कहा गया है—“चातुर्वर्ण्य मया सृष्टा गुण कर्म विभागश:”  फिर भी कोई विरोध में तर्क दे तो उसे कुतर्क ही माना जाना चाहिए |

 

६.  भीमराव अम्बेडकर  —  आंबेडकर द्वारा रचित The Buddha And His Dharma की मूल प्रस्तावना में उन्होंने अपनी ब्राह्मण पत्नी और अपने  ब्राह्मण अध्यापकों ( महादेव आंबेडकर, पेंडसे, कृष्णा जी अर्जुन कुलेसकर ,बापूराव जोशी ) की हृदयस्पर्शी चर्चा की है

क्या यह वर्णव्यवस्था का दोष है – ब्राह्मण महादेव आंबेडकर का भीमराव को अपने घर में खाना खिलाना , पुणे के कट्टर ब्राह्मण परिवार से उनकी पत्नी सविता देवी का जीवन जिन्होंने जाति-पाँति के बंधनों की परवाह नहीं की |, कृष्णा जी अर्जुन कुलेसकर को जिसने भीमराव कोमहात्मा बुद्ध ” पर पढ़ने को पुस्तक दी और भीमराव बोध हुआ |
७.दलित मसीहा, रामविलास पासवानकी दूसरी पत्नी नीना शर्मा (एक पंजाबी ब्राह्मण) जिसने एकब्राह्मणत्व की धारणा को तोड़ कर एक दलित से शादी  की |

८.बामपंथियों का रचा गया इतिहास— यह कभी नहीं सोचा गया कि वर्णव्यवस्था में विद्रूपता और कट्टरपन क्यों, कब और कैसे आया, कभी हिंदुत्व के विरोधी एवं विदेशी नक़्शे कदम के पूजक वामपंथियों द्वारा रचित इतिहास के इतर कुछ पढ़ने/पढाने की कोशिश की नहीं गयी  | जो और जितना पढ़ा/पढ़ाया गया उसी को सबकुछ  मान कर भेड़चाल में हम धर्मग्रंथों और उच्च जातियों को गलियां  देने लगे ।

—-क्रमह भाग दो—–

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