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अमेरिकन बनने से पहले अच्छे भारतीये बनो

सच्चाई का आइना
सच्चाई का आइना
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क्रिकेट का खिलाडी जब किसी बोलर को पीटता है तो दर्शकों के भीतर एक अजीब सा रोमांच पैदा हो जाता है.
वह ख़ुद भी उत्तेजित हो जाता है. बहुत से लोगों के भीतर एक क्षण के लिए वह हीरो समा भी जाता है और वह कल्पना करने लगता है कि काश वह भी अपने दुश्मनों से इसी तरह निपट ले.
ऐसा ही रोमांच और उत्तेजना इस समय दुनिया के बहुत से हिस्सों में लोग महसूस कर रहे हैं. ख़ासकर भारत में.
पाकिस्तान में घुसकर अमरीकी कमांडो ने ओसामा बिन लादेन को मार दिया है.
बहुत से लोग चाहते हैं कि अब भारत भी अमरीका की तरह हीरो हो जाए और अपने कमांडो पाकिस्तान में भेजकर उन लोगों को मार आए जो कथित तौर पर भारत में चरमपंथी घटनाओं के लिए ज़िम्मेदार हैं.
बिना मुक़दमा चलाए और बिना सफ़ाई का मौक़ा दिए. क़ानून की सारी धाराओं और प्रावधानों को ताक पर धरकर.
ये अमरीकी न्याय का तरीक़ा है जो बहुत से लोगों को आकर्षित करता है. लुभाता है. शायद थोड़ा गुदगुदाता भी है और परपीड़ा का कुत्सित सुख देता है.
लेकिन वे शायद बहुत सी वास्तविकताओं को नज़रअंदाज़ कर जाते हैं.
लोग भूल जाते हैं कि इराक़ पर इसलिए हमला किया गया क्योंकि अमरीका और उसके सहयोगी देशों को विश्वास था कि सद्दाम हुसैन महाविनाश के हथियार रखे हुए हैं. लेकिन इराक़ को तहस नहस करने के बाद भी वहाँ से महाविनाश का एक भी हथियार नहीं मिला.
इसके बाद सद्दाम हुसैन पर दुजैल में 148 शियाओं को मारने का मुक़दमा चलाया गया और दोषी ठहराकर फाँसी पर चढ़ा दिया गया. लेकिन वर्ष 2003 में इराक़ पर हुए हमले के बाद से वहाँ एक लाख से अधिक लोग मारे जा चुके हैं उसका दोषी कौन है इस पर कभी चर्चा नहीं होती.
इसी तरह 9/11 के बाद अफ़ग़ानिस्तान पर अमरीकी और मित्र देशों ने हमला किया. तालिबान सरकार का पतन हो गया. लेकिन इन हमलों के बाद से अब तक कितने निर्दोषों की जानें गई हैं इसका आंकड़ा किसी के पास नहीं है.
अमरीका पाकिस्तान के क़बायली इलाक़ों में ड्रोन हमले करता है और इससे नाराज़ तालिबान लाहौर और कराची और दूसरी जगह विस्फोट करके उन निर्दोष नागरिकों की जान ले लेते हैं, जो अमरीका के साथ नहीं हैं. वे शायद अमरीका की दोस्त बनी पाकिस्तान की सरकार के साथ भी नहीं होंगे.
लेकिन इन सबसे अमरीका की चौधराहट कम नहीं होती.
‘समरथ को नहीं दोष गुसाईं’ की तर्ज़ पर अमरीका और उसके साथी देश एक के बाद एक कार्रवाई करते जाते हैं और समर्थ संस्थाएँ इस पर सवाल भी नहीं उठातीं.
पता नहीं कि लोकतंत्र की स्थापना और दुनिया को एक सुरक्षित स्थान बनाने का यह अमरीकी तरीक़ा कब तक चलता रहेगा.
किसी भी क़ीमत पर अल-क़ायदा से लेकर लश्करे तैबा को सही नहीं ठहराया जा सकता. इस बात से कोई इनकार नहीं कर सकता कि ओसामा बिन लादेन से लेकर दाउद इब्राहिम तक सभी को सज़ा दी जानी चाहिए.
लेकिन हम अमेरिका नहीं हो सकते क्योंकि हमारी सेना में कम से कम पिछले दस सालों से जो भी सेनिक बना हे वो रिश्वत देकर बना हे तो आप भी अंदाजा लगा सकते हो की उनमे लड़ने की कितनी समता होगी मेरे हिसाब से जो कामयाब और सेना के लायक था वो तो कंही धाडी मजदूरी कर रह हे और जिसके पास २ लाख रूपया था वो सेना में हो गया सो सबसे पहले वो अपना २ लाख रूपया वसूल करेगा चाहे वो जिस रस्ते से भी आये, फिर लड़ने की या आंतकवादियों को पकड़ने की कोसिस कर सकता हे जब तक रिटाएर होने का समय हो जायेगा और उसके बाद आने वाला भी यही करेगा, दूसरी बात हमको यह कहते हुए बहुत अफ़सोस होता हे की हो सकता हे हमारे लड़ाकू विमान भी उड़ने के लायक हे या नहीं इस पर किसको विस्वास हे उनमे भी पट्रोल की जगह केरोसिन डाल सकते हे इतना भ्रस्टाचार हमारी सेना में आज दिन हे कोई यकीं करे या नहीं मगर यह सचाई हे इसको कोई झुठला नहीं सकता जितने भी फोजी हे उनको कसम दिला कर पूछ लो की तुम फोज में भर्ती होने के लिए पैसे दिए या नहीं ? फिर हम अमेरिका जैसा क्यों सोच रहे हे इन नेताओं को भी मालूम हे की हम उनके जैसा सात जनम में भी नहीं कर सकते, पिछले ३ साल से अमेरिकन यह योजना बना रहे थे मगर किसी को कानो कान भी खबर नहीं हुई की कोनसी योजना बन रही हे हमारे यंहा १ घंटे के अन्दर बात आ जाती हे की फलानी -फलानी योजना बन रही हे क्योंकि हमारे नेताओं और सरकारी कर्मचारियों को सिर्फ पैसों से प्यार हे इनके लिए देश कोई मायने नहीं रखता यह तो हमारी जनता हे जो देश के बारे में सोचती रहती हे हमको सबसे ज्यादा फोज पर विस्वास था वो भी अब भ्रस्ट हो गई हे अब तो भगवान ही बचा सकता हे या कुछ बुदिजिवी या कुछ नेता जिनको पैसों से ज्यादा देश से प्यार हो धरती से लगाव हो,आने वाली पीढ़ी को हम एक भ्रस्ट राजनेता और टुटा हुआ देश नहीं दे सकते इसलिए हमको भी जागना पड़ेगा नहीं तो बहुत देर हो जाएगी ,
लेकिन हम एक सभ्य सुसंस्कृत समाज का हिस्सा हैं और हमने समाज को संचालित करने के लिए क़ानून बना रखे हैं. हम सबसे उम्मीद की जाती है कि हम क़ानून का पालन करेंगे.मगर किसी की गुलामी करने से अच्छा हे एक बेहतर मौत, हम किसी के तलवे नहीं चाट सकते चाहे कुछ भी करना पड़े हमको अमेरिका नहीं बनना हे हमको सुधरना हे अगर हम सुधर जायेंगे तो किसी की क्या मजाल हे जो हमारे देश में आकर कोई आंतकवादी कुछ कर सके क्या हमारे सैनिक बोर्डर पर नहीं होते जब यह लोग आते हे या पैसा देकर चुप करा दिया जाता हे क्योंकि वो पैसा देकर फोज में आया हे इसलिए उसको पैसा चाहिए आंतकवादियों को बोर्डर पार करवाने में यह लोग भी मिले हुए हे इसलिए संबल जाओ ,
लोकतंत्र की हिमायत करने वालों को यह सुनिश्चित करना होगा कि लोकतंत्र की सभी संस्थाएँ सिर्फ़ अपने हिस्से का काम करें.
सुरक्षाबलों को सज़ा देने का अधिकार नहीं दिया जा सकता और न सेनाएँ अदालतों का काम कर सकती हैं.
अमरीका चाहे जो कहे लेकिन जो कुछ उसने पिछले कुछ दशकों में किया है उसने दुनिया को सुरक्षित बनाया हो न बनाया हो, अमरीका के भीतर एक डर ज़रुर पैदा कर दिया है.
ये भी कम लोग जानते हैं कि चरमपंथी हमलों का डर जितना अमरीकियों को सताता है उतना शायद इस समय अफ़ग़ानिस्तान और पाकिस्तान के लोगों को भी नहीं सताता होगा जहाँ इस समय आए दिन बम फट रहे हैं.
लेकिन फिर भी लोग अमरीका होना चाहते हैं.
भारत जैसे देश में अमरीका होने की ये इच्छा मन में एक डर पैदा करती है.उस डर को निकल दो और देश के दुश्मनों से लड़ो पहले नेताओं और भ्रस्ट कर्मचारियों से यही देश के सबसे बड़े दुसमन हे यह अगर सही रहंगे तो किसी को हिमत ही नहीं होगी हमारी तरफ आँख उठाकर देखने की अगर कोई देखेगा तो उसकी आँख फोड़ दी जाएगी .

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