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विदेशी बैंक खातों में भारतीय काले धन का मुद्दा गर्माने के बाद अब स्विटरलैंड का नाम आते ही लोग भोहें चढ़ा लेते हैं। हालाकि हाल ही में स्विटजरलैंड की संसद ने भारत के साथ नए टेक्स समझौते को मंजूरी देकर रिश्तों को कुछ सुधारने की कोशिश की है लेकिन यह भविष्य ही बता पाएगा की काले धन का मुद्दा दोनों देशों के बीच रिश्तों को कितना प्रभावित करता है।स्विटजरलैंड और अन्य टैक्स हैवंस में भारतीयों के खातों में रखा काला धन हर उस भारतीय की नजर में खटक रहा है जो अपनी गाढ़ी कमाई का 33 प्रतीशत तक टैक्स के रूप में देता है। दूसरी और बेईमान उद्योगपति, भ्रष्ट नेता और अधिकारी गैरकानूनी रूप से पैसा कमाकर विदेशी खातों में पहुंचा देते हैं। रिपोर्टों के मुताबिक विदेशी बैंकों में जमा भारतीय धन 1500 बिलियन डॉलर यानी करीब 68 लाख 55 हजार करोड़ रुपए के बराबर है। यह भारत पर कुल विदेशी कर्ज का भी तीन गुना है। यही नहीं यदि इसे 45 करोड़ भारतीय गरीबों में बांटा जाए तो वो कम से कम लखपती हो जाएंगे।विदेशों में जमा काले धन का मुद्दा 17 जनवरी को उस समय और गर्मा गया जब स्विस बैंकर और ह्विसल्ब्लोअर रुडोल्फ एल्मर ने स्विस कानूनों को तोड़ते हुए देश से गद्दारी की और स्विटजरलैंड की बैंकों में खुले 2000 खातों की जानकारी की सीडी विकीलीक्स के संस्थापक जूलियन असांजे को दे दी। इस सीडी में स्विटजरलैंड की बैंकों में खाता रखने वाले अमेरिका, ब्रिटेन और एशिया के नेताओं और उद्योगपतियों के नाम हैं। इस सीडी के जूलियन के पास पहुंचने के बाद से ही भारतीय राजनीति में कोहराम मचा हुआ है। इस मुद्दे पर नसिर्फ राजनीति हो रही है बल्कि आम आदमी भी इस पर तीखी टिप्पणियां कर रहा है।जब इस मुद्दे पर सुप्रीम कोर्ट की बैंच ने तीखी प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि विदेशी बैंकों में जमा काला धन राष्ट्रीय पैसे की खुली चोरी है। यह एक दिमाग को हिला देने वाला अपराध है और इसमें हम किसी समझौते की नजाकत को नहीं देख सकते। यह देश के धन की खुली लूट है तो भारत सरकार के महाधिवक्ता गोपाल सुब्रमण्यम भी प्रधानमंत्री के शब्दों को ही दोहराते नजर आए।लगता है सुप्रीम कोर्ट की फटकार के बाद सरकार इस मुद्दे पर हड़बड़ाहट में आ गई है और उसके नुमाइंदे एक के बाद एक गलती किए जा रहे हैं। वित्त मंत्री के स्थान पर रक्षा मंत्री एके एंटनी ने बचकाना बयान देते हुए कहा कि हमारी सरकार काला धन वापस लाने के लिए प्रतिबद्ध है लेकिन इसका एक तय तरीका है। इस मामले में किसी भी प्रकार के घालमेल को बर्दाश्त नहीं किया जाएगा।इंटरनेट पर भी इस मुद्दे पर गंभीर बहसें छिड़ी हुई हैं और कुछ ब्लॉगर्स ने यह सुझाव दिया है कि काला धन रखने वाले लोग इस धन को सफेद करने के लिए इसे घोषित कर सकते हैं और इस पर निर्धारित 33 प्रतिशत टैक्स दे सके हैं। लोग क्यों स्विस बैंक खातों में पैसा छुपाकर रखते हैं?इस सवाल का जवाब बेहद सरल है। स्विटजरलैंड में बैंकों के खातों संबंधी कानून बेहद कड़े हैं और लोगों को पूरी गोपनीयता दी जाती है। इन कानूनों के तहत बैंक और बैंककर्मी किसी भी खातें की जानकारी खाताधारक के सिवा किसी और को नहीं दे सकते। यहां तक की स्विटजरलैंड की सरकार भी इन खातों की जानकारी हासिल नहीं कर सकती। यदि कोई भी इन खातों की जानकारी सार्वजानिक करता है या खाताधारक से अलग किसी और को उपलब्ध कराता है तो उस पर मुकदमा चलाया जाता है। स्विस बैंकों में खातों की गोपनियता स्विटजरलैंड के लोगों के लिए एक बड़े सम्मान की बात है। 1984 में जब इन कानूनों को हटाने संबंधी मतदान कराया गया था तो 73 प्रतिशत लोगों ने कानूनों के पक्ष में वोट किया था। अब हमारी सरकार को एक ही काम करना चाहिय की जो भी पैसा है उससे हमारे देश का जितना कर्जा है वो चूका देना चाहिय और जो बाकि बचता है वो पट्रोलियम कंपनियों को दैदैना चाहिय जिससे की बार -बार कीमत बढ़नी बंध हो जाय कुछ दिनों कई लिया और जनता को परेसानी से कुछ राहत मिल सके अगर इससे भी अच्छा किसी के पास विचार है तो वो करना चाहिय मगर वंहा से अगर पैसा लेकर रख दिया तो वो वापिस उन्ही लोगों के पास चला जायेगा हमारे पास कुछ नहीं रहेगा उपर से स्विटजरलैंड आने -जाने का खर्चा भी हमही लोगों को वहन करना पडेगा जो की यह लोग ज्यादा से ज्यादा पट्रोल का भाव बढ़ा देंगे और खर्चा निकल लेंगे I
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