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कांग्रेस मुक्त भारत
कांग्रेस देश का अबसे पुराना राजनीतिक दल है. इसे Grand Old Party भी कहा जाता है. अपने निर्माण के समय यह अकेली एक पार्टी थी और इसकी एक निश्चित भूमिका और विचारधारा थी. वह थी देश को अंग्रेजों की गुलामी से ‘ आज़ादी ‘ दिलाना. आज़ादी सभी देशवासियों की प्रमुख विचारधारा थी. महात्मा गांधी जी के नेतृत्व में आज़ादी की लड़ाई लड़ी गई और अंग्रेजी शासन से देश को आज़ाद करा लिया गया. कांग्रेस में सभी विचारधाराओं के लोग शामिल थे. किसी की कोई अलग पहचान नहीं थी. हिन्दू, मुसलमान, दक्षिण, वाम सभी विचाररधाराओं के लोग कांग्रेस में शामिल थे. आज़ादी दिलाने वाली कांग्रेस में समूचा राष्ट्र शामिल था. आज़ादी के बाद अलग अलग विचारधाराओं के लोगों नें कांग्रेस से बाहर निकल कर अलग अलग अपने राजनीतिक दल बना लिए. कांग्रेस कमज़ोर होती चली गई. हमारी राजनीतिक व्यवस्था में बहुत सी बुराइयां प्रवेश करती गईं. कांग्रेस आज देश सेवा के लिए न जानी जाकर बोफोर्स, 2 G, CWG AUGUSTA Westland Helicopter deal जैसे महाघोटालों के लिए जानी जाती है. कांग्रेस की छवि निम्नस्तर पर है. आज जो कांग्रेस के लोग यह दावा करते हैं कि कांग्रेस नें देश को आज़ादी दिलाई. उन्हें यह भी सोचना चाहिए कि आज़ादी दिलाने वाली कांग्रेस में सारा देश शामिल था. आज की कांग्रेस गांधी-नेहरू की कांग्रेस से बिलकुल मिन्न है. आज की कांग्रेस महाघोटालों में डूबी हुई है. इसकी छवि आज़ादी दिलाने वाली कांग्रेस से एकदम अलग है. आज की कांग्रेस के पास कोई विचारधारा नहीं है. अगर है तो वह है सल्तनत की सेवा करना। उसकी पहचान है महाघोटालों में सलिंप्तता. कांग्रेस पतनोन्मुख है.
आज़ादी के समय लेकर आज तक के बीच का कुछ समय छोड़ दें तो सारे समय कांग्रेस ही इस देश पर शासन करती रही है. इन लगभग 67 + वर्षों में 55 वर्ष कांग्रेस ने और केवल 13 वर्ष के करीब गैर कांग्रेसी सरकारों ने शासन किया. कांग्रेस में पंडित जवाहर लाल नेहरू ने 17 वर्ष ( 1947 से 1964 ) तक ,लाल बहादुर शास्त्री ने 02 वर्ष ( 1964-1966 ), गुलजारी लाल नंदा ( 1966 ) ने एक वर्ष, इंदिरा गांधी ने 15 वर्ष ( 1966 – 1977 और 1980 – 1984 ), राजीव गांधी 5 वर्ष (1984 -1989 ) , पी वी नरसिम्हाराव ने 5 वर्ष ( 1991 -1996 ) तथा मन मोहन सिंह ने 10 वर्ष ( 2004-2014 ) प्रधानमंत्री के तौर पर सत्ता की बागडोर संभाली. इमरजेंसी के बाद, 1977 में चुनाव हुए जिसमें कांग्रेस को हार का मुंह देखना पड़ा. विपक्षी दलों का एक मिला जुला गठबंधन जनता पार्टी के नाम से सत्ता में आया. मोरार जी देसाई इस प्रथम गैर कांग्रेसी सरकार के प्रधानमंत्री बने और उन्होंने 1977 से 1979 तक 2 वर्ष के लिए प्रधानमंत्री की कुर्सी सम्हाली, आपस की कलह से जनता पार्टी की सरकार टूट गई . चौधरी चरण सिंह ने 1979 से 1980 में प्रधानमंत्री का दायितव सम्भाला। यह वह समय था जब पहली बार कांग्रेस सत्ता के सिंहासन से हटी थी. . इस गैर कांग्रेसी सरकार में भी प्रधानमन्त्री बनने वाले सभी के सभी सर्वश्री मोरार जी भाई देसाई, चौधरी चरण सिंह, वी पी सिंह, चंन्द्रशेखर, एच दी देवेगौड़ा, आई के गुजराल सभी कभी न कभी कांग्रेस में रहे थे. फिर चुनाव हुए और इंदिरा गांधी जी की प्रधानमंत्री के तौर वापसी ( 1980 -1984 ) हुई. इसके उपरान्त अस्थिरता का दौर चला. वी पी सिंह ( 1989 -1990 ), चन्द्र शेखर ( 1990 -1991 ,एच डी देवेगौड़ा ( 1996 -1997 ), आई के गुजराल ( 1997 -1998 ) एक एक साल तक कुर्सी पर आसीन रहे. गैर कांग्रेसी सरकारों में केवल श्री अटल बिहारी वाजपेयी का शासन काल सबसे लम्बा 6 वर्ष( 1998-2004 ) का रहा. मई 2014 के 16वीं लोक सभा के चुनाव में कांग्रेस को अप्रत्यासित हार का सामना करना पड़ा है. देश पर 55 वर्ष तक शासन करने वाली पार्टी सिमट कर 44 सीट पर आ गई. श्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में बी जे पी नें अकेले दम पर बहुमत प्राप्त किया. लगभग 30 साल की अस्थिरता के बाद देश को एक दल की स्थिर सरकार मिली. चुनाव परिणामों नें सभी को अचंभित किया है. हार भी ऐसी कि जिसकी कल्पना न तो कभी कांग्रेस नें की थी, और जीत ऐसी जिसकी कल्पना न तो तो भाजपा नें की थी. 543 सदस्यों के सदन में कांग्रेस को कुल 44 सीटों पर विजय मिली। यह संख्या रेकग्नाइज़्ड विपक्ष का स्थान पाने के लिए भी अपर्याप्त है. कांगेस नें इस बात की कभी कल्पना भी नहीं की होगी कि ऐसे बुरे दिन भी कभी देखने को मिलेंगे , भारत के चुनाव के इतिहास में कांग्रेस का यह सबसे निम्नतम स्कोर है.चूंकि कांग्रेस 55 वर्ष के सबसे लम्बे समय तक शासन में रही है,इस कारण देश में जो कुछ गलत हुआ उसकी ज़िम्मेदारी भी उसे लेनी पड़ेगी. कांग्रेस की प्रतिष्ठा कीचड में मिल गई है.अभी हाल के कांग्रेस शासन के दिनों में देश में 2 G, CWG , Coal Block आंवटन, Augusta Westland Helicopter deal जैसे एक से बढ़कर एक महाघोटाले हुए. शायद यही कारण है कि लोग सभी व्याधियों को कांग्रेस से जोड़कर देखने लगे हैं. और कांग्रेस मुक्त भारत की बात करने लगे हैं. कांग्रेस मुक्त भारत की बात करना उचित नहीं कहा जा सकता. जनता नें कांग्रेस को भरपूर दण्ड दिया है. लोकतंत्र में विपक्ष की महत्वपूर्ण भूमिका होती है. वह शासक दल को मनमानी करने और गलत रास्ते पर चलने से रोकता है. कांग्रेस देश की सबसे पुरानी पार्टी है. देश को आज़ादी दिलाने मे इसकी प्रमुख भूमिका रही है. स्वतंत्रता संग्राम के समय यह अकेली पार्टी थी और सभी स्वतंत्रता संग्राम में भाग लेने वाले इसी पार्टी के माध्यम से स्वतंत्रता संग्राम में शामिल होते थे. उस समय केवल एक विचारधारा थी ‘ देश की आज़ादी ‘. आज़ादी मिलने के बाद विचारधारा के आधार पर विभिन्न राजनीतिक दलों का निर्माण हुआ. राष्ट्र जीवन में इस महत्व्पूर्ण भूमिका के कारण कांग्रेस को Grand Old Party कहा जाता है. कांग्रेस के बुरे दिनों में उसे अश्पृश्य नहीं बनाया जा सकत्ता है.
आइये कांग्रेस के पतन के कारणों पर विचार कर लें.
पिछले तीस सालों में में पहली बार किसी एक दल को अपने बल पर लोकसभा में स्पष्ट बहुमत मिला है. वह दल है भाजपा. भाजपा नें अपने बल पर लोक सभा में स्पष्ट बहुमत प्राप्त किया है. किसी को भी यह अपेक्षा नहीं थी कि कांग्रेस के विरोध में और भाजपा के पक्ष में इतना तेज तूफ़ान चल रहा है. इसके उपरांत कुछ राज्यों ,पश्चिमी बंगाल, तमिलनाडु, केरल,असम पुडुचेरी में चुनाव हुए. दो राज्य केरल और असम भी कांग्रेस के हाथ से निकल गए. चूंकि बहुत सी बातें पहली बार हो रही हैं, इस कारण चुनाव परिणामों को समझने की स्वाभाविक उत्कंठा होती है, विभिन्न दलों से प्रतिबद्ध और मीडिया के लोग अपने अपने तरीकों चुनाव परिणामों का विश्लेषण करेंगे. मैं अपनी समझ के अनुसार चुनाव परिणामों को समझने कोशिश करता हूँ. कांग्रेस की हार के अनेक करणों में हैं. सर्व प्रथम है दल का अहंकारी स्वभाव. सल्तनत का अहंकारी स्वभाव तो सबको पता है. नेहरू जी से लेकर इंदिरा जी और राजीव गांधी तक इस परिवार का व्यवहार सामंतवादी रहा है. आज़ादी के आस पास के समय और उसके थोड़ा बाद तक उस समय की पीढ़ी की लॉयल्टी / स्वामिभक्ति इस परिवॉर के साथ रही है.वह सल्तनत के हर प्रकार के घमंड नाज नखड़े को बर्दाश्त करती रही है. आजकल की वर्तमान पीढ़ी सामंतवाद में विश्वास नहीं करती है और हर चीज़ को गुण दोष के आधार पर परखना चाहती है. वह अंध भक्ति में विश्वास नहीं करती है.. हमारी पुरानी पीढ़ी हर तरह के नाज, नखड़े, अहम और घमंड को बर्दाश्त करती रही है. सामंतवाद कांग्रेस की नस नस में रच बस गया है. लेकिन वर्तमान पीढ़ी इसके लिए तैयार नहीं है. चूंकि अहंकार पार्टी का चरित्र बन चुका है इस कारण पार्टी के सभी कार्यकर्ता किसी न किसी हद तक इससे प्रभावित रहे हैं. चुनाव के समय टी वी चैनलों पर आने वाले कांग्रेस के प्रवक्ताओं के अहंकार की कोई सीमा नहीं थी ; सभी एक दूसरे को पछाड़ने की होड़ में शामिल थे. मोदी को गाली देने का जिम्मा बेनी प्रसाद वर्मा नें संभाला हुआ था. सलमान खुर्शीद भी उनसे पीछे नहीं थे मोदी द्वारा एक बार बेटी कह दिए जाने पर प्रियंका नें आसमान सर पर उठा लिया था . वोट बैंक की खोज में आतंकवादियों का पक्ष लेकर दिग्विजय सिंह नें हिन्दुओं को इतना आहत किया कि हिन्दू वोट भाजपा की झोली में जाकर गिरा। जाहिर है कि अगर कांग्रेस मुस्लिम वोट बैंक बनाती है तो हिन्दू को भी संगठित होना पड़ेगा. यह स्वाभाविक है, ऐसे घमंडी लोग जनता का समर्थन माँगते समय शर्म भी महसूस नहीं करते थे अपने अहंकार और घमंड का परिचय देने में हर कांग्रेसी ने अपना भरपूर योगदान दिया दिया।
भ्रष्टाचार की पराकाष्ठा अन्ना हज़ारे के जन लोकपाल और बाबा रामदेव के आंदोलन के समय कांग्रेस का व्यवहार अहंकार की पराकाष्ठा पर था. 2G, CWG, आदर्श सोसाइटी, कॉल ब्लाक आंवटन और अगुस्ता वेस्टलैंड हेलीकाप्टर डील से सम्बंधित भ्रष्टाचार की खबरों से जनता गुस्से से उबल रही थी ऐसे समय में हमारे प्रधान मंत्री किन्हीं अज्ञात कारणों से मौन धारण किये हुए थे. यह समझ के बाहर की बात है कि जब देश लुट रहा था उनके सामने निष्क्रिय होने की क्या मजबूरी थी
अक्षम नेतृत्व बाकी कोर कसर राहुल गांधी नें पूरी कर दी. एक कागज़ पर लिखी हुई बेसिरपैर वाली बातें पढ़कर, कुर्ते की बाहें चढ़ाकर बार बार गुस्से का इज़हार करके उन्होंने ऐसा प्रभाव पैदा किया कि मानो उनके पास कहने को सकारात्मक कुछ भी नहीं है. उपरोक्त . सभी बातों का स्वाभाविक परिणाम यह हुआ कि कांग्रेस का नाम कीचड में मिल गया. परिणाम तो वही हुआ जो होना था. .
कांग्रेस में मुख्य भूमिका नेहरू-गांधी परिवार की रही. पंडित जवाहर लाल नेहरू ( 17 साल ), इंदिरा गांधी ( 15 साल ) और राजीव गांधी ( 5 साल ) कुल मिलाकर इस परिवार नें ( 37 साल ) राज्य किया. कांग्रेस में एक से बढ़कर एक सुयोग्य नेता थे. लेकिन कुछ ऐसी परिस्थितियों का निर्माण किया गया कि ऐसा कोई व्यक्ति जो प्रधानमंत्री के योग्य हो या इस सल्तनत को कभी चुनौती दे सके इस पार्टी में न रह सके. पार्टी में प्रतिभा का रहना मुश्किल बना दिया गया. केवल चाटुकार ही बचे रहे . किसी प्रतभाशाली व्यक्ति के लिए पार्टी में स्थान नहीं रह गया. जितना ही कांग्रेस एक परिवार पर निर्भर होती गई, कांग्रेस का ह्रास होता गया. कांग्रेस नें अपने को एक परिवार तक सीमित कर लिया है. अगला प्रधानमंत्री केवल इसी परिवार से ही आना है. वैकल्पिक तौर पर ममन्मोहन सिंह जैसा व्यक्ति हो जो कभी सल्तनत को चुनौती न दे सके. कांग्रेस पतनोन्मुख है. परिस्थिति ऐसी आ पहुंची है कि अभी हाल के लोकसभा क चुनाव में कांग्रेस को 543 में केवल 44 स्थान मिले. कांग्रेस मुख्य प्रतिपक्ष की भूमिका निभाने लायक भी नहीं रह गई है. भयंकर भ्रस्टाचार एवं पार्टी में नेतृत्व की अक्षमता के कारण कांग्रेस की छवि मिट्टी में मिल चुकी है. फिर भी कांग्रेस मुक्त भारत का सपना देखना उचित नहीं कहा जा सकता. कांग्रेस अपनी गलतियों से सीखेगी और एक बार फिर खड़ी हो सकती है. लोकतंत्र में प्रतिपक्ष की भी महत्व्पूर्ण भूमिका होती है, कांग्रेस को सशक्त प्रतिपक्ष की भूमिका निभाना चाहिए और जनता का विश्वास प्राप्त करना चाहिए. यही लोकतंत्र का तकाजा है.
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