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कड़कती धूप में सूरज की चमक
शरीर को जला रही थी
तेज़ हवा में उबलती लपट
शरीर को गला रही थी
दूर खड़े एक बुज़ुर्ग पर पड़ी नज़र
कर गयी उस चमक लपट को बेअसर
पूछा मंज़िल तक पहुँचाओगे
बोले कहाँ तक जाओगे
जगह बताई तो होश फ़ाक्ता उड़ गये
ना मंज़िल का पता ना ही रास्ते का
सफ़ेद चमकीले बाल,
छोटा कद और काठी
उम्र थी सँभालने की लाठी
ऐसा मैने सोचा था,
लेकिन,
उनके इस हौसले की करनी पड़ी कदर
कुछ मोल भाव हुआ
फिर
बन गये वो सारथी , शुरू हुआ सफर
कुछ ही दूर पहुँचे थे
सिर्फ नाम पूछा था
सुर सुनाई नहीं दिये
हम पीछे से आगे बैठ लिये
बोले
पन्ना लाल !
रास्ते को देखते जाइएगा
जहां मुड़ना हो बताइयेगा
फिर ऐनक को उतार दिया
हमें पसीने से तार दिया
हमने तुरंत सवाल दाग दिया
चश्मा शौक़ के लिये है क्या
किसी रौब के लिये है क्या
बोले
घबराईये मत!
फिर वो शांत
हम अशांत !
उनका जज़्बा गर्दिश में था
सफ़र धीरे धीरे मीठा हो चला
उनके किस्सै कहाँनियों का दौर चला
अपनी अर्धांगिनी के लिये जीवन बसर कर रहे थे,
जो कभी सुना था आज उसका एह्सास हुआ,
दो वक़्त की रोटी पाने की अहमियत का आभास हुआ।
सुर में सरलता,
स्वभाव में विनम्रता,
बोल में शालीनता,
स्तब्ध कर गयी,
बेशब्द कर गयी।
नमरूद्दीन ( नम्रता ) सलीके से पूछा
मोल भाव जो किये हो
उसमेँ गुज़ारा कैसे होगा ?
गाड़ी को भी खाना खिलाना होगा,
आज तो मिल गयी सवारी,
कल का क्या नज़ारा होगा ?
वो सोच में डूब गए,
शायद गलत सवाल पूछ गए
मूड़ बार बार हिलता जाए
मेरी बात से
या
सरकारी सड़को पर बने कुएं से
असमंजस स्थिति थी।
एकाएक ख्याल आया
मन में सवाल आया
कहा आज रात रुक जाओ
कल हमारे साथ ही जाओ
बचत हो जाएगी
रात के खाने में
फिर बातचीत हो जाएगी।
जवाब पल में ही हाँ मिल गया
मानो
उनके ज़हन से जुबाँ तक
मैं ही लेकर आया।
उनकी रफ़्तार में तेज़ी आयी
समझ नहीं आया
मेरे अपनेपन से
या
उनकी एकाएक चुप्पी से !
मन किया पूछ लू
फिर सोचा
कुछ सवालो का जवाब नहीं होता
बचा हुआ सफर ख़ामोशी में बीता।
रात में मिलने गए
तो चौपाल लगी थी
वो बीच में बाकी इर्द गिर्द
२-४ इलाके के कुछ शागिर्द
कुछ वो बोले
कुछ हम बोले
अपनी अपनी जुबानी
सभी ने खूब सुनाई कहानी
पास खड़ा कंडक्टर भी मिला लिया
उन्होंने इनको बस में ही सुला लिया।
सुबह हुई जाने की तैयारी
कहते हैं रात अच्छी गुज़ारी।
अच्छा किया रोक लिया
काफी अर्से के बाद
घर से बहार भी थे हम आबाद।
वापस पहुंचे कार पार्किंग
बैठे थे सब यूनियन वाले
कुर्सी मेज डाले
खा रहे थे रोटी कबाब
हुई गुफ्तगू कुछ सवाल जवाब।
इंसानियत के नाते पेश की ख़्वाइश
कर दी मैंने
अपने मन की फ़रमाइश
बोला तुम दो इनको जीने की आस
अबसे दे दो इनको फ्री पार्किंग पास
कहते हैं सब से कम है इनका
मैं बोला
इनके पास है ही तिनका !
उस पल की ख़ामोशी ने किया बयान
दिया वचन जब तक है जान
पन्ना लाल ही हैं हमारी शान।
जय हिन्द !
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