दिल की बातें दिल से
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अजनबी जबसे हमारी ज़िंदगानी हो गया।
ज़िंदगी का रंग तब से ज़ाफ़रानी हो गया॥
आने से गुलज़ार तेरे हो गईं रातें मेरी,
शब का हर इक लम्हा जैसे रातरानी हो गया॥
न रहे पहले से आशिक़ न रही वो आशिक़ी,
जीना-मरना प्यार में बस मुँ-ज़बानी हो गया॥
लुट रही इज़्ज़त वतन की फिर भी वो बैठें है चुप,
लग रहा उनकी रगों का ख़ून पानी हो गया॥
कल तलक आवारगी, मक्कारियों में जो जिया,
बन के नेता वो भी देखो ख़ानदानी हो गया॥
देखकर तंगी, गरीबी, भुकमरी इस देश की,
सोने की चिड़िया का तमग़ा बेईमानी हो गया॥
हर जुबां पे आजकल चर्चे हैं अपने इश्क़ के,
मिलना जुलना तुमसे “सूरज” इक कहानी हो गया॥
डॉ॰ सूर्या बाली “सूरज”
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