दिल की बातें दिल से
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टूट कर बिखरा हूँ इक पैगाम1 से।
लिख रहा हूँ ख़त किसी के नाम से॥
तुम कहाँ थे बज़्म2 में आए हो अब,
मुंतज़िर3 था दिल तुम्हारा शाम से॥
कल तलक चर्चे थे जिनके आज वो,
मारे मारे फिर रहे गुमनाम से॥
क़ातिलों के शहर में घर ले लिया,
डर नहीं लगता है अब अंजाम से॥
तय सियासत कर रही है अब हुनर,
बन रही पहचान अब ईनाम से॥
राह से भटके नहीं थे जो कभी,
पा गये मंज़िल बड़े आराम से॥
जात, मज़हब, ज़र-ज़मीनों से नहीं,
आदमी जाना गया बस काम से॥
बेवफ़ाई से किसी की टूटकर,
प्यार कर बैठा वो जाकर जाम से॥
आजकल “सूरज” चुनावी दौर में,
मिल रहे नेता जी हर आवाम से॥
डॉ॰ सूर्या बाली “सूरज”
1.पैगाम=संदेश 2. बज़्म=महफिल, सभा 3. मुंतज़िर= जो इंतज़ार करे
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