दिल की बातें दिल से
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उसके जलवों का ऐसा असर हो गया॥
दीन-ओ-दुनिया से मैं बेख़बर हो गया॥
सूझता कुछ नहीं मुझको उनके सिवा,
वो ही मंज़िल वही हमसफ़र हो गया॥
सौंप दी ज़िंदगी उसके ही हाथ में,
अब वही जान, दिल औ जिगर हो गया॥
मेरे उजड़े चमन मे बहार आ गयी,
दिल का आबाद हर इक शजर हो गया॥
चाह जन्नत की “सूरज” नहीं है मुझे,
अब तो बस उसका घर मेरा घर हो गया॥
डॉ॰ सूर्या बाली “सूरज”
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