दिल की बातें दिल से
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कटेगी सिर्फ़ दिलासों से ज़िंदगी कब तक।
रहेगी लब पे ग़रीबों के खामुशी कब तक॥
वरक़ पे आने को बेताब हो रहा है अब,
रहेगा हाशिये पे आम आदमी कब तक॥
न जाने कब ये बुराई का सिर क़लम कर दें,
सहेंगे लोग सियासत की गंदगी कब तक॥
मुझे डराएगा अब और कब तलक दुश्मन,
रहेगी खौफ़ के साये में हर खुशी कब तक॥
दमक रही है उजालों से शहर की बस्ती,
न जाने पहुंचेगी गाँवों में रौशनी कब तक॥
के माना दौरे-अमीरी है शानदार बहुत,
घुटन के दौर से निकलेगी मुफ़लिसी कब तक॥
ख़ुदा तलाश करो आएगा नज़र दिल में,
करोगे मील के पत्थर की बंदगी कब तक॥
शहीद होते रहें, मसअले का हल तो नहीं,
निभाई जाएगी सरहद पे दुश्मनी कब तक॥
निकल तो आयेगा “सूरज” भी सुब्ह होने तक,
अमीरे शहर बचाएगा चाँदनी कब तक॥
डॉ॰ सूर्या बाली “सूरज”
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