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हमारे गाँव में बचपन अभी भी मुस्कराता है

दिल की बातें दिल से
दिल की बातें दिल से
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Son


हमारे गाँव मे बचपन अभी भी मुस्कराता है।

कहानी रोज दादा अपने पोते को सुनाता है॥


ग़रीबी, भुकमरी, मंहगाई अब जीने नहीं देती,

हमारे गाँव का मंगरू मुझे आकर बताता है॥


ठिठुरता सर्द रातों में बिना कंबल रज़ाई के,

वो अपने पास गर्मी के लिए कुत्ता सुलाता है॥


(1) है अकेली है,

उसे हर आदमी आसानी से भाभी बनाता है॥


यहाँ क़ानून है अंधा यहाँ सरकार है लंगडी,

है जिसके हाथ मे लाठी वही सबको नचाता है॥


(2) नहीं बेचा,

अब ठेला लगाता है॥


डॉ॰ सूर्या बाली “सूरज”

1. मुफ़लिस=ग़रीब 2. खुद्दारी= आत्म-सम्मान

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