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बकरे की मां की खैर (कविता)

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जंगल में आज जश्न का माहौल था,
सारे जानवर आज बेहद खुश थे।
बकरा और बकरे की मां भी आज,
बहुत खुश होकर नाच-गा रहे थे।

आखिर उनकी जिंदगी में भी खैर होगी,
उनके दिन में भी सकून होगा,
और रातें भी चैन से कटेंगीं,
और बच्चे भी उनके बेफिक्र खेलेंगे।

उसने देखा आज एक गजब खेल,
इंसान आज जिहदि बन कर,
बेगुनाह इंसान का कत्ल कर,
गले मिल कर दे रहा है ईद मुबारक।

कशमीर से कन्याकुमारी तक,
बंगाल से मुम्बई तक,
हर जगह ये ही लाल खेल,
और पैगाम दे रहे हैं शांतिदूत नाम्।

तेरा भी अजीब खुदा है,
इबादत जिसकी होती है,
बेगुनाहों के कत्ल से,
और जिसमें पढते हैं खुदा आप।

कल तक होता था मेरा कत्ल,
और आज हो रहा है नया खेल,
और इंसान, इंसान का कत्ल कर,
और कहा रहा है ईद मुबारक।

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