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शहर में जाम, आँखों में डर सा क्यों है
शहर में पोलिस का नाका सा क्यों है।
शहर में हर शख्स आज डरा सा क्यों है
इस रुके ट्रेफिक का माजारा सा क्यों है।
मूर्दौ की तरह, सभी बेजान सा क्यों है
आँखों है, तो डर का कारण कोई ढूंढें।
जाम मे फसे, मंजिल कब आयेगी रफीकों
दौड़्ये नजर, सारा श्हर जाम सा क्यों है।
कोई नया भयावय हादसे का डर सा क्यों है
इस शहर को, हादसे से दहलाने का डर क्यों है।
जिंदा देख हमे आइना हैरान सा क्यों है
दारोगा जी के चेहरे पर पसीना सा क्यों है।
दिल है तो, बोलने की हिम्मत कोई ढूंढें
पत्थर की तरह इंसान बेजान सा क्यों है।
जाम की इस तनहाई मे, मंजिल कब आयेगी रफीकों
जनाजॉ को तो कोई रास्ता दिखाये रफीकों।
फरेबी सेक्यूलरवादी कहते हैं
आतंक का कोइ मजहब सा नही है।
पर एक मजहब नज़र आता है इनमें
ता-हद-ये-नज़र, बताना ही पड़ेगा।
कि इनका खुदा सबको दहलता क्यों है
और इस श्हर को बयाबान बनाता क्यों है।
नोट- यह गाना कवि ने आज तारीख 23 जनवरी 2019 को गाजियाबाद – वजीराबाद रोड पर भोपुरा, पसॉडा, गगन सिनेमा पर दो घंटे ट्रेफिक जाम मे फसने के बाद लिखा। इस्लामिक आतंकवादियॉ के भय के कारण आज राजधानी दिल्ली मे पुलिस की नाकाबंदी एवम चैकिंग के कारण सारे शहर को भयंकर ट्रेफिक जाम का सामना करना पड़ा ।
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