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दस्तखत सेवा

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रविवार का दिन था। मै अपनी पुरानी आदत का गुलाम, शरीर पर सरसों का तेल लगा कर ऑगन में बैठा अपने जूते चमका रहा था। लगभग पच्चीस साल एन.सी.सी. में रहने के बाद जूता पालिश करना, अपने कपड़े अपने आप धोना, प्रेस करना आदि कार्य करना आदत के हिस्सा बन गये। हांलाकि मै कभी नारीवादी होने का दावा नही करता। तभी दरवाजे की घंटी बजी। दरवाजे पर जाकर देखा तो कामरेड प्रोफेसर इमरान हलीम दरवाजे पर कुछ पेपर लेकर खड़े थे।
कामरेड प्रोफेसर को सब पीछे से खोटा मास्टर कहते थे क्योंकि कामरेड क्लास मे कम, नेतागिरी में ज्यादा दिखाई पड़्ते थे। बड़े गुस्से एवम तनाव में आकर बोले कि शर्मा जी श्री लंका सरकार भी फिरका परस्त हो गयी है और उसने बुर्का और हिजब पर पाबंदी लगा दी है। ऐसा लगता है कि राष्ट्रिय स्वंम सेवक संघ के लोग श्री लंका सरकार में घुसपैठ कर गये हैं। अगर कुछ भूले भट्के लोगों ने गुस्से में आकर कुछ बम धमाके कर दिये और उसमे कुछ सौ लोग अगर मारे भी गये तो कौन सी बड़ी बात हो गयी ? इतनी छोटी सी घट्ना के लिये पूरी कौम पर इतना अत्याचार होने पर हम चुप नहीं रहा सकते।
इस फिरका परस्त सरकार ने तो हमारे बुर्का तथा हिजब पर ही बैन लगा दिया। हम इसके विरोध मे एक दस्तखत अभियान चला रहे हैं, आप भी दस्तखत करके इस महान काम में अपना योगदान दें। शाम को घंटाघर से एक बड़ा मोमबत्ती मार्च का भी आयोजन किया जा रहा है। उसके लिये भी आप दिल खोल कर चंदा दें। इस महान कार्य के आप भी हिस्सेदार बनकर नाम एवम पुन्य कमायें।
दस्तखत अभियान, मोमबत्ती मार्च, धरना, सेक्युलरइस्म पर सेमिनार, दलित आंदोलन आदि कामरेड प्रोफेसर इमरान हलीम के जाने-माने व्यवसाय हैं। हलीम साहब एक एनजीओ के व्यवसाय से जुड़ेहैं। आजकल मोदी के खिलाफ अपना बहुमूल्य समय लगा रहे हैं। मोदी जीत गया तो आखिरी चुनाव होगा, मोदी जीत गया तो अल्पसंख्यक गायब हो जायेंगे, मोदी जीत गया तो आरक्षण खत्म हो जायेगा वगैराह, वगैराह्। इसको जिताऔ, इसको हराऔ। हांलाकि कामरेड के कहने से उनका मेहतर भी उस उम्मीदवार को वोट नहीं देता क्योंकि कामरेड हलीम मेहतर के काम के पैसे ही नहीं देता है। यह अलग बात है कि कामरेड मेहतर को दारू खूब पिला देता है।
कामरेड ने बुद्धिजीवी, शिक्षक, वकील, डाक्टर, कलाकार, लेखक, फौजी आदि के दस्तखतों के अनेक पन्ने भरवा लिये। दिन निकलते ही सभी अखवारों में अपना-अपना नाम देखने भागे। कुछ का नाम आया, कुछ का नहीं आया। कामरेड भी जानता है कि दस्तखत के कुछ पन्नों से कुछ भी नहीं होने जा रहा पर नेतागिरी और पैसा कमाने के लिये धंदा अच्छा है। फिर सोशल मीडिया पर खूब लम्बे चौड़े दावों ने कामरेड को शहर का वीआईपी बना दिया। कुछ् लोगों ने पक्ष और विपक्ष दोनों में दस्तखत करके खूब नाम कमाया। कहीं सच, कहीं झूठ, कहीं दोनों का शर्बत्। सारे शहर में कोई नहीं जनता कि आखिर कामरेड क्या आईटम है। बुर्का की तरह पूरी असलियत ही छिपी रहती है।
कितने अदभुद भारत के सेक्यूलर वादी योद्धा एवम नारी वादी हैं जो बुर्का के लिये जंग लड़ रहे हैं। आज के हालात में ऐसा हो गया है कि जब कोई काम ना हो या हर क्षेत्र में फेल हो जाओ तो घोषणा कर दो कि मै सेक्यूलरवाद, नारी अधिकार, एवम मानवाधिकार की लड़ाई लड़ रहा हूँ। इसके लिये दस्तखत का धंदा सबसे सस्ता तथा आय वाला है। कोई भी मुद्दा हो दस्तखत गैंग हर समय संघर्ष को तैयार रहता है। जब से दस्तखत गैंग की राजनीति महारथ देखी है, मन करता है कि रिसर्च एवम फेलोशिप के लिये यूजीसी को एक नया विषय बता दिया जाये। गजब की क्रंतिकारी थ्योरी है। क्या गजब की शर्बत थ्योरी है।
दस्तखत गैंग पालिटिकल चिंतकॉं से कहीं आगे है। नेहरू, गांधी, लोहिया, अम्बेडकर, लेनिन, लादेन, मार्क्स आदि सभी इस थ्योरी के सामने ज़ीरो हैं। इन कामरेडों ने कोई किताब नहीं पढी। पांचों बक्त के नमाज़ी की तरह सिर्फ कुछ जुमले रट लिये गये हैं। उन्हे ही सब जगह फिट कर दिया जाता है और दस्तखत अभियान शुरू। जैसे लोकतंत्र को खतरा, धर्मनिरपेक्षता पर खतरा, मानवधिकारों को खतरा, आरक्षण पर खतरा, मुसलमानों पर खतरा, दलितों पर खतरा, बुर्का पर खतरा, ट्रिपल तलाक एवम हलाला पर खतरा आदि। मौसम विभाग की तरह सभी खतरों के हमारे कामरेड विषेशज्ञ हैं। जैसे ये सभी मौसम विभाग के विषेशज्ञ हैं। बस नियुक्ति पत्र मिलने की देर भर है।
शाम होते ही दस्तखत गैंग कामरेड, कामरेडियों, कुछ जाने माने ठलुऐ, मुल्ला और मौलवी हाथों में मोमबत्ती लेकर नारे लगा रहे थे- इंकलाब जिंदाबाद, बुर्का अमर रहे, नारी पर अत्याचार-नहीं सहेगा हिंदुस्तान, बुर्का लेके रहेंगे, फिरका परस्ती नहीं चलेगी आदि आदि। सड़्कों पर अच्छा खासा मनोरंजन हो रहा था। कुछ जानी माने कामरेड एवम कामरेडियों हाथों मे डिब्बे लेकर चंदा भी इकठ्ठा कर रहे थे।
रात में मुझे एक शादी में जाना था। शादी एक फाइव स्टार होटल में थी। वहां एक कमरे का नजारा देख कर में दंग रह गया। वहां उस कमरे में शहर के सभी कामरेड, कामरेडियाँ, अनेक ठलुआ, और कुछ मुल्ला डिजायनर कपड़े पहने, कामरेडियाँ चौड़ी बिंदी लगाये, महंगी सिल्क-काटन साड़ी में जोर-जोर से बुर्का के समर्थन में, नारी-अधिकारों पर, लोकतंत्र एवम धर्मनिरपेक्षता पर खतरे पर बहस कर रहे थे। कामरेड प्रोफेसर इमरान हलीम शराब के नशे में एक सिफे पर टुन्न पड़ हुये थे। मै मन ही मन मुस्कराया और बोला दस्तखत गैंग अमर रहे।

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