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मूर्ति, भक्त और कौवा

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आजकल लेनिन भक्त बहुत परेशान हैं । देशभक्तॉ ने पहले तो लेनिन भक्तॉ से उनका धाम त्रिपुरा छीन लिया, बेचारे भक्त अभी सदमे से उभरे भी नही थे कि उनके रक्षक एवम जन संहारक जिहादी भगवान लेनिन की मूर्ति को भी धाराशाही कर दिया। वह एक कम्युनिस्ट, आदमकद महापुरुष थे। समय बदलने के साथ, वह कभी दफ्ती से निर्मित कटआउट बने तो कभी पत्थर को तराश कर मूर्तिवत बना दिए गए। भारत मे मूर्तियाँ बनती रहती हैं और टूटती रहती हैं ।
मूर्तियाँनिरंतर बनती रहती हैं सिर्फ उनके चेहरे एवम प्रेमी बदलते रहते हैं। बाबाऑ के बाबा, बाबा अंबेड्कर, मुर्तियॉ के प्रबल विरोधी थे पर उनके भक्तॉ ने सारे देश को उनकी मूर्तियॉसे ही भर दिया। हर गली, मुहल्ले और नुक्क्ड़ को बाबा अंबेड्कर के भक्तॉ ने बाबा की मूर्तियॉ से भरकर उनका तमाशा बना दिया है। असल तमाशा तो उनकी नुकीली नाक, चिढ़ाती उंगली एवम गुलामी के प्रतीक चिन्ह, नीला सूट एवम हैट से है।
काला मस्त कौवा इन सब से बहुत परेशान रहता है इस लिये, इस काली दुम वाले पक्षी ने उसके सिर पर विराजमान हैट के मुहाने पर आराम से बैठ कर, बेफिक्र होकर अपना शौच त्याग करने का सबसे सुरक्षित परौंदा बनाया।
नाक के नुकीलेपन के चलते कौवे की दुम के पंख कई बार टूटे और बिखरे। उसके बच्चे तो खैर बच्चे ही थे। वे अक्सर खेलते-कुद्ते बाबा की नाक पर जा बैठते हैं और खुद को भी घायल कर लेते हैं।
एक बार तो सीधे-साधे कौवे ने उस ज्ञानी मूर्ती से गंभीरता से पूछा, मित्र, यह तो बताओ कि तुम्हारी मूर्ती की पॉलिटिक्स क्या है? हमारे लिये कुछ पेड़: लगवा दिये होते तो तुम्हारा क्या चला जाता। दलित बाबा की फाइव स्टार मूर्ती क्रोधित होकर बोली, मेरी मूर्ती मेरी है। तुझे उससे क्या? तू अपनी औकात में रह। मस्त कौवे को उसकी यह बात बड़ी खटकी। वह उससे बहस में उलझ गया। जब बात तू तू-मैं-मैं के आर-पार विमर्श के स्तर तक गई तो मूर्ती ने कहा-कि तू बेकार ही बात बना रहा है। मैं मूर्ती-व्यक्ति नहीं, सोने की विचार हूं। विचार बेसिर पैर के होते हैं। मेरे नाम मात्र से ही मेरे भक्तॉ के वारे न्यारे हो जाते हैं।
मेरे नाम पर, मेरे भक्तॉ के लाखॉ एन.जी.ओ. करोडॉ – अरबॉ, बिना किसी काम के लूट रहे हैं। पुरस्कार, अवार्ड, क़ोटा, स्कोलरशिप, ज़ीरो परसेंट पर शानदार सरकारी नौकरी, आदि, सभी मेरी बदौलत ही मिलते हैं। तू या तेरा पेड़ क्या दिला सकते हैं। मेरी बहन तो आज हज़ारॉ की मालकिन है। सब मेरी ही माया है।
हैरान परेशान कौवा बोला, बाबा तेरी बात कुछ समझ से बाहर है, पर दाढी वाले बाबा पेरियार की क्या कहानी है ? उनके भक्त आजकल क्यॉ परेशान हैं ? उनकी दाढी क्यॉ चुभ रही है वह तो किसी अनाडी कलाकार की हथौड़ी और छेनी की खुराफात है। पेरियार बाबा तो खूद, मुगलॉ की तरह मूर्तीपूजा के विरोधी थे और उसने तो खुद अपने भक्तॉ से हिंदुऑ की हजारॉ मूर्ती तुड्वाई थी.। पर मेरी प्रतिमा यथावत लगी रहे यह सभी खुरफाती बाबा चाहते हैं ।
कौवा गुस्से से उसके सिर पर बैठा, दाढी को सवालों के घेरे में लाने की कोशिश करता रहा । एक दिन उसने चिड़िया-अधिकार वाली गिद्ध से पूछा-बहना बता, इसकी दाढी तो मेरे लिए बड़ी मुसीबत है, मेरे अधिकारॉ की रक्षा करो । धनी और घोटालेबाज गिद्ध पहले तो चहचहाई और फड्‌फडाई और फिर बोली-चल मेरे साथ। मैंने एक ऐसी मूर्ति देखी है जिसके नाक, हैट, सूट, दाढी और कान नदारद हैं, बस ढाचा है। वह लगभग निराकार है, बिना किसी शक्ल की। तू मेरी लिव-इन-सहेली है या शत्रु ? कौवा गुस्से से बुडबुडाया। मैं आज रात को तेरे से प्यार नहीं करुंगा। उसने कहा-निराकार पर कोई अपना घरौंदा कैसे बसा सकता है। तिनके-लकडी टिकाने का मजबूत आधार नही होगा तो घरौंदा तिनका तिनका बिखर न जाएगा। तुम एन.जी.ओ. के दुकानदार सभी का बेवकूफ बनाते हो।
गिद्ध बोला, अरे नहीं, असल घर तो वही जो प्रेम और यादॉ में बसता है। वैसे तुझे बता दूं, आने वाला समय खुराफातॉ से भरा होगा। हम सभी एन.जी.ओ. के दुकानदार लगे हुये हैं, तब न कोई मूर्ती बचेगी और न तेरा घरौंदा । कौवा बोला, ओह! यह तो बड़ी डरावनी खबर है। तू मुझे किसी बिना हैट, समतल नाक, प्रेम भरे हाथ, एवम बीना दाडी वाली देसी मूर्ती का पत-ठिकाना बता दे। मैं अपना घर वहां बना लुंगा। फिर दोनॉ जिन्दगी का आनंद लेंगे। या किसी किसी किसान का अतापता बता दे। मैंने सुना है कि किसान एकदम सीधे-साधे, शांत तथा किसी का नुक्सान नही करते हैं।
समय बीतता गया। तमाम उठा-पटक के बीच कौवा का घर बसा रहा। गिद्द रोज़ कौवे को सब्ज बाग दिखाती और उसे वैकल्पिक घर के लिए अनेक सुझाव दिए, पर कौवे ने उसकी बात नहीं मानी। फिर उसने गिद्ध को किसी को कहते सुना कि यह मूर्ती रहे या न रहे पर उसकी दुकान तो चलती रहगी । कौवे ने बहुत दिमॉग लगाया, पर वह तकनीक पता न लगी कि विचार के पटरे पर घर कैसे बसता है और दुकान कैसे चलती है?
तमाम तरह के भय और आशंकाओं के साथ वह मस्ता कौवा उड्ता रहा । नीचे धरती पर मूर्तियॉ के इर्द-गिर्द तरह-तरह के धंधे एवम दुकानें सजती रही और उजड्ती रही। झंडे, बिल्ले, पोस्टर, फूल, चादर बिके। फिर वहां चाय-पकौडी, आम्लेट, मछ्ली वालॉ ने अपनी दुकान सजा ली। कौवा ऊपर से नीचे देखता रहता था, तो पता लगता कि चाय-पकौडी, आम्लेट, मछ्ली के साथ देश-दुनिया के मुद्दों पर लगातार बहस चल रही है।
इसके बाद शराब वाला आया। उसके बगल में कबाब, चिकन वलॉ ने जमीन कब्जा ली और अपना खोंमचा जमा लिया। कभी-कभी चाय-पकौडी वाला कबाब, चिकन वाले से झगडा भी कर लेता था तो सेक्युलरिस्ट तथा कम्युनिस्ट एकदम आम्लेट, मछ्ली, कबाब, चिकन वालॉ के साथ मिलकर दंगा कर देते। चाय-पकौडी की दुकान पर जमे बहसवीर अपनी जान बचाकर भाग लेते। .
कौवा मानता था कि एक दूसरे के बेढरूम मै नजर न मारो। फिर एक दिन कुछ ऐसा हुआ जिसे देख सारी दूनिया सहम गई। चाय-पकौडी खाते-खाते सारे लोग पिट-पिट कर एक हो गये । उन्होंने अपनी आस्तीन ऊपर चढ़ा लीं। थोड़ी देर में भारत-माता की जय के नारे दूर से गूंजते सुनाई दिए। मूर्ती के नजदीकी लोग भी बड़ी जोर से चिल्लाए- इंकलाब जिंदाबाद । देखते ही देखते मूर्ती को भीड़ ने घेर लिया। इस बार आम्लेट, मछ्ली, कबाब, चिकन वाले तथा उनके हिमायती सेक्युलरिस्ट तथा कम्युनिस्ट जान बचा कर भाग खडे हुये।
भीडः मे कुछ शैतान नक्सली एवम जेहादि घुस गये । कुछ के पास लाठियां थीं तो कुछे के पास हथौड़े थे। दनादन सब मूर्ती पर बरसने लगे। कौवे ने बड़ी कातर द्र्ष्टी से मूर्ती को देखा। मूर्ती बिल्कुल शांत बनी रही। सबको लडा कर खुद शांत खडी पिट रही थी।
घबराये कौवे ने कातर स्वर में मूर्ति से कहा तुम भी दंगा करो । उसने शातिराना जवाब दिया-मै दंगा करती नही परंतु करवाती हूँ । मुझे अब कुछ नही करना है। अब जो होगा वह ऐतिहासिक भूल होगी। इतने मै गिद्ध वहॉ आ गयी और बोली, तू अपनी जान बचा और अपने बाल बच्चों के साथ यहां से उड़ जा।
कौवा उडा तो उड़ता चला गया । अंतत: उसने एक मॉडर्न आर्ट गैलरी के हाल में खड़ी बेसिरपैर वाली मूर्ति में अपना घरौंदा नए सिरे से बसा लिया और चैन की सांस ली। अब सुनने में आ रहा है कि वहां गिद्ध भी चोरी छिपे रात बीताने आ जाता है।
महाबली-जनसन्हारक ळेनिन बाबा की मूर्ति जमीन पर धाराशाही पडी है। टुटी मूर्ति की जगह कोई अन्य मूर्ति खडी होने वाली है। कौवा जानना चाहता है कि इस नई मूर्ति की नाक, हेट, दाडी, सूट, उंगली का आकार दरअसल क्या होगा? सभी चाय-पकौडी, आम्लेट, मछ्ली, कबाब, चिकन वाले, तथा सेक्युलरिस्ट, कम्युनिस्ट, एन.जी.ओ., अपनी-अपनी नई दुकान जमाने की जुगाड मै लगे हैं।

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