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एकात्म मानववाद के प्रणेता पंडित दीन दयाल उपाध्याय

Durga Dutt
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आज पंडित दीनदयाल उपाध्याय की पुण्यतिथि है। समाज  के अंतिम पायदान पर बैठे व्यक्ति की उपासना पर बल देते हुए दरिद्र नारायण के उत्थान की करने वाले कुछ लोग ऐसे होते हैं जिनका जन्म ही केवल सामाजिक क्रांति के लिए ही होता है। पंडित दीनदयाल उपाध्याय भी उन्ही महान लोगों में से एक थे। जिन्होंने समाज बदलने के लिए जन्म लिया था। पंडित दीनदयाल उपाध्याय एक प्रखर विचारक, उत्कृष्ट संगठनकर्ता तथा एक ऐसे नेता थे जिन्होंने जीवन भर अपनी व्यक्तिगत ईमानदारी व सत्यनिष्ठा को महत्त्व दिया। साथ ही वह भाजपा के वैचारिक मार्गदर्शन और नैतिक प्रेरणा के स्रोत रहे हैं। वह हिन्दू राष्ट्रवादी और भारतीय राजनीति के पुरोधा भी थे। दीनदयाल उपाध्याय की पुस्तक एकात्म मानववाद (इंटीगरल ह्यूमेनिज्म) है जिसमें साम्यवाद और पूंजीवाद, दोनों की समालोचना की गई है। दीनदयाल जी बचपन से प्रतिभाशाली व्यक्तित्व वाले व्यक्ति थे। दीनदयाल उपाध्याय बचपन से ही अपनी जिन्दगी के मकसद को समझ चुके थे और पंडित दीनदयाल उपाध्याय का जन्म 25 सितंबर, 1916 को ब्रज के मथुरा ज़िले के छोटे से गांव जिसका नाम “नगला चंद्रभान” था। पं. दीनदयाल उपाध्याय का बचपन कठिन परिस्थितियों के बीच गुजरा था। इनके पिता का नाम ‘भगवती प्रसाद उपाध्याय’ था तथा माता का नाम ‘रामप्यारी’ था जो धार्मिक प्रवृत्ति की महिला थीं। दीनदयाल जी के पिता एक रेल कर्मचारी थे लेकिन जब बालक दीनदयाल सिर्फ तीन साल के थे तभी दुर्भाग्यवश उनके पिता का देहांत हो गया था। यही से उनके जीवन की कठनाइयों ने जन्म लिया था लेकिन वह विचलित नहीं हुए और उन्होंने पिता की मृत्यु के बाद भी अपनी अपनी जिन्दगी में संघर्ष किया। दीनदयाल उपाध्याय जी को पढ़ाई का शौक बचपन से ही था इसलिए उन्होंने तमाम बातों की चिंता किए बिना अपनी पढ़ाई पूरी की। सन 1937 में इण्टरमीडिएट की परीक्षा दी। इस परीक्षा में भी दीनदयाल जी ने सर्वाधिक अंक प्राप्त कर एक कीर्तिमान स्थापित किया। एस.डी. कॉलेज, कानपुर से उन्होंने बी.ए. की पढ़ाई पूरी की और यहीं उनकी मुलाकात श्री सुन्दरसिंह भण्डारी, बलवंत महासिंघे जैसे कई लोगों से हुई जिनसे मिलने के बाद उनमें राष्ट्र की सेवा करने का ख्याल आया। सन 1939 में प्रथम श्रेणी में बी.ए. की परीक्षा पास की लेकिन कुछ कारणों से वह एम.ए. की पढ़ाई पूरी नहीं कर पाए। हालांकि पढ़ाई पूरी करने के बाद उन्होंने नौकरी न करने का निश्चय किया और राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के लिए काम करना शुरू कर दिया। संघ के लिए काम करते-करते वह खुद इसका एक हिस्सा बन गए और राष्ट्रीय एकता के मिशन पर निकल चले।

पंडित दीनदयाल उपाध्याय को साहित्य से एक अलग ही लगाव था शायद इसलिए दीनदयाल उपाध्याय अपनी तमाम जिन्दगी साहित्य से जुड़े रहे। उनके हिंदी और अंग्रेजी के लेख विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित होते रहते थे। केवल एक बैठक में ही उन्होंने ‘चंद्रगुप्त नाटक’ लिख डाला था। दीनदयाल ने लखनऊ में राष्ट्र धर्म प्रकाशन नामक प्रकाशन संस्थान की स्थापना की और अपने विचारों को प्रस्तुत करने के लिए एक मासिक पत्रिका राष्ट्र धर्म शुरू की। बाद में उन्होंने ‘पांचजन्य’(साप्ताहिक) तथा ‘स्वदेश’ (दैनिक) की शुरुआत की।

पंडित दीनदयाल उपाध्याय को 1953 में अखिल भारतीय जनसंघ की स्थापना होने पर यूपी का सचिव बनाया गया। पं. दीनदयाल को अधिकांश लोग उनकी समाज सेवा के लिए याद करते हैं। दीनदयाल जी ने अपना सारा जीवन संघ को अर्पित कर दिया था। पं. दीनदयाल जी की कुशल संगठन क्षमता के लिए डा. श्यामाप्रसाद मुखर्जी ने कहा था कि अगर भारत के पास दो दीनदयाल होते तो भारत का राजनैतिक परिदृश्य ही अलग होता। दीनदयाल की जीवनशैली बड़ी ही सादगी से भरी थी। वह बहुत बड़े राजनीतिक थे पर उनमे तोडा भी अहंकार नहीं था। 11 फरवरी, 1968 को मुगलसराय रेलवे यार्ड में उनकी लाश मिलने से सारे देश में शौक की लहर दौड़ गई थी। लेकिन वह हमेशा ही भारतीयों के दिलों में अमर रहेंगे।

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