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अगर आप बिहार की बाढ़ से पीड़ित परिवारों की ओर ध्यान दे उस हालत में साफ़ हो जाएगा कि बिहार की राज्य सरकार की कितनी लापरवाही रही है और सुशाशन बाबू नितीश कुमार की प्रबंधन असफलता का उजागर होना स्वाभाविक है. पिछले ७० सालों से बाढ़ की परिस्थिथि से ग़रीब परिवारों को दुःख, असुविधा और घनघोर परिशानियों का सामना करते हुए मैं देख रहा हूँ. अगर लालू यादव के दुशाशन और नितीश कुमार के सुशाशन काल पर ध्यान दे तो बाढ़ की परिस्तिथियों में कोई सुधार नहीं दिख रहा है.
विभिन्न tv समाचारों से यह अवगत होता है कि बिहार की स्तिथि दयनीय है और बाढ़ के कारण नागरिकों का जीवन एक दर्दनाक और भयावह परिस्तिथियों से गुजर रहा है. यह समय सत्ता बदलने का नहीं है. लेकिन इस ओर गंभीर रूप से सोचने को बाध्य करता है और बाढ़ पीड़ितों को इस पर ध्यान देना होगा कि किसकी सरकार उनके दुखों के निवारण में सक्षम है, संवेदनशील है और विश्वसनीय है.
बाढ़ से बचने और बाढ़ के हालात से बचने के लिए ठोस क़दम उठाने की आवश्यकता है. सही इंजीनियरिंग क़दम उठाने और ईमानदारी से बाढ़ का हल निकाल सकना कठिन नहीं है. इसके लिए आवश्यक है कि बाढ़ की स्तिथि पैदा न हो और जल भराव न हो. पर इस समस्या का हल तब तक नहीं निकलेगा और ग़रीबों की कठिनाईयां तब तक दूर नहीं होगी जब तक हम “सब चलता है” सोच से ऊपर उठकर सही मायिनों में समस्या समाधान नहीं करते है. भरष्टाचार यूं तो भारत में हर राज्य में है पर मेरा यह मानना है कि बिहार और उत्तर प्रदेश में भ्रष्टाचार चरम सीमा पर है. बिहार में राजनेता लोग इस लक्ष्य से होते हें कि उन्हें जनता की भलाई से परे व्यवस्था के साथ मिलकर पैसे बनाने में भर पूर सहायता मिले. इसमें किस दल की सरकार है इस कारण से जनता को लाभ नहीं मिलता है. यही कारण है कि जबसे मैंने होश संभाला है तबसे बाढ़ का प्रकोप भयंकर रूप से चलता ही रहा है.
भारत में समझदार और समस्या पर अच्छी पकड़ रखने वाले लोगों की कमी नहीं है. बिहार का समाज भी समझदार और सूझ बूझ का है परन्तु भ्रष्ट नेता सभी सूझ बूझ को जनता की भलाई के लिए इस्तेमाल नहीं देते हें. यदि हम बाढ़ की समस्या से बचना चाहते हें तो सबसे पहले हमें ईमानदार होना पड़ेगा. बिहार की सभी सरकारों ने ईमानदारी से दूर होकर अपनी गद्दी बहाना ही उचित समझा है. बिहार की जनता को अपने स्वार्थ से ऊपर होना होगा तभी प्राकृतिक विपदाओं को दूर करने में हम समर्थ हो सकेंगे.
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