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आप इन दिनों दिन में कई बार भारतीय संविधान की चर्चा मुख्यतः विपक्षी नेताओं से सुनेंगे जो खुद को इस बात से बरी करना चाहते हें कि उनका क़दम भारतीय संविधान के अनुकूल है. संविधान का अनुच्छेद १५ भारतीय नागरिक को यह अधिकार देता है कि
१. वह स्वतंत्र है अपने विचारों की अभिव्यक्ति के लिए
२. शांतिपूर्ण ढंग से एक समूह के रूप में एकत्रित होने के लिए और इसके साथ शर्त है कि एकत्रित होने वाले समूह के किसी व्यक्ति के पास किसी प्रकार का घातक अस्त्र न हो
३. संविधान संगठन या संघ या यूनियन बनाने की भी स्वतंत्रता देता
है
४. संविधान के अंतर्गत देश के नागरिक को भारत की सीमा के अन्दर आने जाने की स्वतंत्रता है
५. भारत की सीमा के अंतर्गत कहीं भी बसने की स्वतंत्रता है
६. भारत में हम जो चाहें व्यवसाय, ट्रेड या बिज़नेस कर सकते हें. इस पर किसी प्रकार का रोक संविधान की ओर से नहीं है
इस स्वतंत्रता के साथ ही साथ हमसे यह भी अपेक्षा की जाती है कि हम स्थानीय व्यवहारों तथा मूल्यों का आदर करें और किसी भी ऐसे कार्यों से दूर रहें जो जान माल का विध्वंश या नाश करने की क्षमता रखते हें. इसके साथ ही स्थानीय नियमों का उल्लंघन मना है जो उचित रोक लगाते हें हमारी स्वतन्त्रता पर ताकि समाज में उथल पुथल या शान्ति भंग न हो. हमें अक्सर यह देखने में आता है कि लोग अपनी रुष्ट्ता का प्रदर्शन इस प्रकार करते हें जिससे सड़कों के वाहनों को भारी क्षति पहुँचती है और लोगों की सुरक्षा पर बहुत बड़ा प्रश्न चिन्ह लग जाता है. ध्यान देने की ज़रुरत है कि संविधान इसकी आज़ादी हमें नहीं देता है. अक्सर ऐसा देखा जाता है कि शान्तिपूर्ण वातावरण का उल्लंघन न हो इसके लिए ज़िम्मेदार सरकारी विभाग के कर्मचारी ही ऐसे कार्यों को बढ़ावा देते हें जिससे शांति और सौहार्द्र का वातावरण बिगड़ता है. राज्य का प्रशासन समाज के उपद्रवी तत्वों पर कोई ठोस क़दम उठाने के पहले यह देखता है कि इन उपद्रवी तत्वों पर कारवाई करने से किसी वर्ग या व्यक्ति विशेष के आत्म सम्मान को ठेस तो नहीं पहुँच रही है. अभी हाल की घटनाओं का यदि विश्लेषण किया जाए तो इससे स्पष्ट हो जाता है कि हमारी व्यवस्थाओं में सुधार की ज़रुरत है और लुभावने चुनावी झूठे वादों से राजनेताओं को बहुत दूर रहने की ज़रुरत है. सच्चाई तो देर या सवेर उभर कर सामने आएगी ही.
इस सन्दर्भ में यह कहना ज़रुरी है कि दंगा, फसाद के पीछे राजनेता का भी योगदान है. उत्तर प्रदेश की ओर अगर ध्यान दें तो पायेंगे कि पुलिस जातिवाद के उन्माद से सराबोर है. इस प्रदेश में लोग पुलिस की मदद से भी कतराते हें. यह हाल कर दिया है सपा बसपा और कांग्रेस के शाशन ने. बीजेपी की सरकार भी इस तथ्य को नहीं समझ पा रही है कि राजधानी में बैठकर चिंतन मनन से इन दुराचारी दुष्प्रभावों पर विजय नहीं प्राप्त होगा. उत्तर प्रदेश का तो सिर्फ उदाहरण के तौर पर उल्लेख किया गया है इसी प्रकार की दुराचारी संभावनाएं पूरे भारत में है.
नौकरशाही को राजनेताओं से जुड़कर राजनीतिक गतिविधियों को बढ़ावा देना लोकतंत्र के लिए विनाशकारी है. भारत की जनता को एक जुट होकर राजनेताओं को पाठ पढाना होगा कि यदि उनकी ईमानदारी भरोसेमंद नहीं है तो फिर आप राजनेता होने के लायक नहीं हें.
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