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अमृतसर में घटित रेल पटरी पर भयावह दुर्घटना

National Issues
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अमृतसर पंजाब में रेल पटरी पर स्थित कई लोग हताहत हुए और जाने भी गईं. यह दुर्घटना तब हुई जब लोगों की भीड़ निकट के खाली स्थान पर दुर्गापूजा समारोह के अंतिम चरण में रावण दहन होना था.
इस रावण दहन को देखने नवजोत सिंह सिद्धू पत्नी सहित आए हुए थे. रावण दहन के पहले पाकिस्तानी आर्मी के मुखिया के गले लगकर नजदीकियां दिखला वाले सिद्धू को उनके खुशामदी चमचे और कांग्रेस के अन्य स्थानीय नेतागण इसका एहसास कराने में मग्न थे कि क्या बेहतरीन रावण दहन का आयोजन किया गया है और दूर दूर तक जनता कि भीढ़ उमड़ कर आई है. इस चमचागिरी की होड़ में रावण दहन के आयोजन के मुखिया का समूह भी सिद्धू तथा उनकी पत्नी के सत्कार एवं उनपर अपनी आयोजन क्षमता का सबल प्रभाव बनाने में व्यस्त था. सभी सिद्धू को प्रभावित करने में व्यस्त थे और दूर दूर तक फैली भीड़ की ओर ध्यान आकर्षित करने में लगे थे. रेल की पटरी पर जमा हुए लोग भी इनका ध्यान केवल इसलिए आकषित कर रहे थे कि इस रावण दहन के आयोजन का कितना आकर्षण जनता पर है. इन आयोजकों को, कांग्रेस के छुटभैये नेताओं को और जोकर सिद्धू को इसका तनिक भी ख्याल नहीं आया कि रेल की पटरी पर एकत्रित लोगों को फ़ौरन हटाया जाए और इसकी नसीहत दी जाए कि रेल की पटरियों पर जश्न मनाना बहुत ही खतरनाक है और इससे जान को भीषण ख़तरा है. आपको इसकी ओर भी ध्यान देने कि ज़रुरत है कि 50 पुलिसकर्मी इस मंत्री जो कांग्रेस मंत्रिमंडल में है के निकट ही इस आयोजन में आये इस आत्मलीन एवं आत्मकेंद्रित सिद्धू के इर्द गिर्द थे. एक विचार वाले एवं जनता प्रेमी आदमी सबसे पहले रेल की पटरी पर जमा लोगों को वहाँ से दूर करता और उन पटरियों पर जमा होने के खतरों पर जोर देता. पर ऐसा नहीं किया गया और किया भी कैसे जाता क्योंकि यह तो सही माने में जनता की भलाई का काम होता और पाकिस्तान तथा पाकिस्तानी आर्मी मुखिया की भलाई तथा उनकी प्रशशा इन सही कामों से नहीं होता.
इस नीच हरकतों से तो ऐसा लगता है कि किसी हास्य नायक कपिल शर्मा के प्रोग्राम में सिद्धू को सम्मिलित करना भी जघन्य होगा. परन्तु न मुझे tv के प्रोग्रामो के आयोजन करने वालो में भरोसा है और नहीं मैं यह समझता हूँ कि इनमे आत्मसम्मान की भावना है. किसी प्रकार से पैसा कमाना इनका लक्ष्य है.
जब जानें चली गयीं और भीषण दुर्घटना हो गयी तब हमेशा की तरह हम इसकी ओर ध्यान देना चाहते हें कि प्रशाशन क्या कर रहा था. फिर इस पर भी ध्यान देकर और ऊँगली उठाने की कोशिश की जा रही है कि रेल विभाग क्या सो रहा था. रेल को इसके लिए ज़िम्मेदार नहीं कहा जा सकता है. यह सच भी सामने आया है कि आयोजकों ने इस आयोजन के लिए प्रशाशन की अनुमति लेना आवश्यक नहीं समझा था. अब प्रश्न यह उठता है कि अगर आयोजकों ने इस आयोजन को बिना सरकारी नियमित स्वीकृति लिए बगैर किया तो इसके लिए दंड का प्रावधान क्या है. फिर प्रश्न यह उठता है कि सिद्धू के ऑफिस ने बिना यह देखे कि आयोजरों के पास इस रावण दहन की अनुमति है या नहीं इसमें शिरकत करना ज़रूरी क्यों समझा.
येहाँ प्रश्न यह उठता है कि हम किस प्रकार का शाशन और प्रशाशन चला रहे हें जहां हमे लोगों की सुरक्षा की परवाह नहीं है और सब चलता है की सोच से सारा काम किया जाता है. राजनीतिक दलों को इस सुरक्षा की चिंता हो इसके लिए यह आवश्यक है कि हम जागरूक नागरिक हों. जोकरों को राजनीतिक गद्दियों से दूर रखें तथा चुनाव के समय इसका ख्याल रखें.

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