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ये हिटलर तंत्र है । लोकतंत्र कदापि नहीं ।

खड़ी बात
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सामूहिक बलात्कार के दोषियों को मौत की सजा देने की मांग को लेकर शनिवार को राष्ट्रीय राजधानी में युवाओं और स्कूली छात्र-छात्राओं ने विजय चौक , इंडिया गेट और राष्ट्रपति भवन के पास जोरदार प्रदर्शन किया। उन्हें वहां से हटाने के लिए पुलिस ने कई बार आंसू गैस के गोले दागे, पानी की तेज बौछारें छोड़ीं और कई बार लाठीचार्ज किया, लेकिन तमाम लोगों के घायल होने के बावजूद देर शाम तक उन्हें वहां से डिगा नहीं पाई।
आज पूरी दिल्ली नहीं , पूरा देश नहीं अपितु पूरा विश्व ने भारत में हो रहे इस क्रूर तमाशे को देखा है तमाशा देखा । जो भारत के देश के नाम से जाना जाता है। जो भारत पूरी दुनिया को सत्य और अहिंसा का सन्देश देता रहा । जो भारत पूरी दुनिया में एक बड़े लोकतंत्र के लिए जाना जाता है । आज उसी भारत को यहाँ की हिटलर सरकार ने अपने ही लोगों के ऊपर जो की एक नारी के ऊपर हुए क्रूरता एवं जघन्य अपराध के खिलाफ न्याय की मांग कर रहे थे, उनके ऊपर बर्बरता दिखाकर पुरे विश्व में भारत को शर्मशार कर दिया है । समय समय पर इस सरकार ने इस देश में लोकतंत्र के नहीं होने का अहसास कराती रही है। आज जो गुस्सा इस देश के नौजवान लड़के एवं लड़कियों में दिख रहा है , माताओं,बहनों एवं बूढों में दिख रहा है वो सिर्फ एक घटना के विरोध में नहीं है।
ये आक्रोश किसी एक घटना के ही खिलाफ नहीं है बल्कि ये एक के बाद एक लगातार हो रही घटनाओं के खिलाफ आवाज़ है । जिसमें की हमेशा ये सरकार आन्दोलनकारियों को दबाने का काम करती रही है । इसके पीछे एक के बाद एक होती बहुत सी घटनाएँ है । वो ये देख देख कर थक गए थे । वो ये देख रहे थे की कोई भी घटना हो जाती थी दो चार दिन मिडिया में रहने के बाद इतिहास का एक पन्ना बनकर रह जाती थी । चाहे वो देश के लूटेरों की हो या बलात्कारियों की । मै पूछता हूँ की क्या हुआ निठारी वाले कांड का ? क्या हुआ गोपाल कांडा का ? न जाने ऐसे कितने मामले है जो की एक जांच कमिटियों में ही अपना दम तोड़ देती है ।
ये जांच कमेटियां बनाई ही जाती है इसलिए । जिसमें की फाइलों में ही वो दम तोड़ दे ।
आज दिल्ली पुलिस ने जितनी क्रूरता दिखाई है उसकी जितनी भी भ्रत्सना की जाये वो बहुत ही कम होगी । आज शायद ही कोई हिंदुस्तानी होगा जिसका खून नहीं खौला होगा । धिक्कार है ऐसी क्रूर सरकार पर, सरकार नहीं हिटलर पर जो न तो बच्चे देखती हैं न बूढ़े, न लड़कियों को देखती है, न माताएं किसी को नहीं छोड़ते अपनी मर्दानगी दिखने में ।
आज मैंने देखा की श्रीमती शीला दीक्षित ने अपना दामन बचाने के लिए दिल्ली पुलिस को जिम्मेवार ठराया है । श्री संदीप दीक्षित ने पुलिस कमिश्नर को| क्योंकि उनके साथ एवं उनकी गाड़ी को थोडा नुकशान भीड़ ने पहुंचा दी थी । जब उनकी गाड़ी के साथ थोड़ी छेड़ छाड़ हुई तो कितना गुस्सा आया उनको की तुरत आनन फानन में दिल्ली पुलिस को जिम्मेदार ठहरा दिया ।
मुख्यमंत्री जी , आपको ये भी धयान होगा की दिल्ली के पुलिस कमिश्नर ने पहले ही गृह मंत्रालय को इसके बारे में पत्र दिया था की स्थिति कंट्रोल से बहार हो रही है और फिर मुझे नहीं लगता की बिना गृह मंत्रालय के आदेश के बिना दिल्ली पुलिस इतना बड़ा कदम उठा सकती है । आपको तो गृह मंत्री का स्तिफा मांगना चाहिए था । आप सीधे सीधे अपनी एवं अपनी सरकार की नाकामियों को छुपाने की कोशिश कर रही है।

दीक्षित जी जरा सोचिये उनपे क्या बीतती है जिनके बहन बेटियों के साथ बलात्कार हुआ है ?
जो प्रदर्शनकारी भीड़ शांतिपूर्वक अन्याय के खिलाफ प्रदर्शन कर रही थी वो भला उग्र कैसी हो गई मुझे तो इसमें भी सरकार की ही एक बहुत बड़ी साजिस दिख रही है । इस भीड़ में इस सरकार द्वारा शायद बदमाशों को शामिल करावकर पुलिस को कारवाही करने के लिए एक बहाना दिलवाना एक मकशद रहा हो। ये मेरी आशंका है जो बाद में सामने तो आ ही जाएगी ।
इतनी क्रूर सरकार हमने नहीं देखि । इस सरकार का रवैया हमेशा ही इनके खिलाफ आवाज़ उठाने वाले का मुह बंद करने वाला रहा है। हमेशा से ही लोकतंत्र की आवाज़ दबाने वाला रहा है।
आज जनता ने इस सरकार का वो घिनौना रूप भी देख लीया है । आज इस हिटलर सरकार ने जो अपने ऊपर उठती आवाज़ को दबाने के लिया लोकतंत्र के एक स्तम्भ जो की मिडिया है उसपर हमला बोलकर लोकतंत्र की बची खुची जान को भी बहार निकाल दिया । जिस तरह से महिला रिपोर्टर (न्यूज़ एक्स ) पर आंसू गैस के गोले दाग दिए (इस रिपोर्टर के पैर में 6 टाँके लगे है ), जिस तरह से टाइम्स नाउ के कैमरे तोड़ दिए , जिस तरह से न्यूज़ चैनेल के रिपोर्टरों के पैर एवं सर तोड़े वो लोकतंत्र पर एक बहुत बड़ा हमला है । न जाने कितने लोग इस एकतरफा हिटलर वाली कारवाही में घायल हुए वो तो दो चार दिन के बाद ही पता चलेगा ।
मिडिया पर हमला क्यों ? किसने दिए ये आदेश ? ऐसा लग रहा था जैसे मुंबई पर हमले के वक़्त टीवि देखकर पाकिस्तानी आकाओं ने निर्देश दे रहे थे ठीक उसी तरह से ये हिटलर के नुमाइंदों ने दिल्ली पुलिस को टीवी स्क्रीन को देखकर दे रहे थे ।
इस सरकार को जब भी अपने ऊपर हमले होते दिखती है तब तब ये ऐसे ही नपुंसकता दिखाती रही है ।
जब दिनभर ये सब कुछ चल रहा था तब क्यों नहीं सरकार सामने आई ? ऐसा लग रहा था की इस देश में न तो प्रधान मंत्री है न ही कोई राष्ट्रपति । मंत्रियों की तो बात ही बेकार । क्या कोंग्रेस पार्टी नेता विहीन हो गई है ? क्या किसी में हिम्मत नहीं रह गई है ? की इस परिस्थिति को संभाले। जनता के सामने तो वो आएगा जिसने जनता का विस्वास जीता हो यहाँ तो सब के सब खो चुके है । सबकी मति भ्रष्ट हो गई है तभी हमारे नौजवानों भाइयों एवं बहनों पर क्रूरता दिखा दिए । नपुंसक कहूँगा मै ऐसी सरकार को जो अपने ही लोगों को जो की न्याय की मांग कर रहे थे दौड़ा दौड़ा कर हाथ पैर तोडा , सर फोड़ा । बदतमीज़ी किया हमारी माताओं एवं बहनों के साथ । सारी दुनियां ने देखा की किस बदतमीज़ी के साथ दिल्ली पुलिस के जवानों ने लड़कियों को बदतमीज़ी के साथ हाथ लगाया , बेरहमी से घसीटा , लाठियों से पिटा । जनता कभी माफ़ नहीं करेगी इस क्रूरता को ।

ये हिटलर तंत्र है । लोकतंत्र कदापि नहीं ।

सामूहिक बलात्कार के दोषियों को मौत की सजा देने की मांग को लेकर शनिवार को राष्ट्रीय राजधानी में युवाओं और स्कूली छात्र-छात्राओं ने इंडिया गेट, विजय चौक और राष्ट्रपति भवन के पास जोरदार प्रदर्शन किया। उन्हें वहां से हटाने के लिए पुलिस ने कई राउंड आंसू गैस के गोले दागे, पानी की तेज बौछारें छोड़ीं और कई मर्तबा लाठीचार्ज किया, लेकिन तमाम लोगों के घायल होने के बावजूद देर शाम तक उन्हें वहां से डिगा नहीं पाई।
आज पूरी दिल्ली नहीं , पूरा देश नहीं अपितु पूरा विश्व ने भारत का तमाशा देखा । जो भारत के देश के नाम से जाना जाता है ।,जो भारत पूरी दुनिया को सत्य और अहिंसा का सन्देश देता रहा । जो भारत पूरी दुनिया में एक बड़े लोकतंत्र के लिए जाना जाता है । आज उसी भारत को यहाँ की हिटलर सरकार ने अपने ही लोगों के ऊपर जो की एक नारी के ऊपर हुए क्रूरता एवं जघन्य अपराध के खिलाफ न्याय की मांग कर रहे थे ,उनके ऊपर बर्बरता दिखाकर पुरे विश्व में भारत को शर्मशार कर दिया है । समय समय पर इस सरकार ने इस देश में लोकतंत्र के नहीं होने का अहसास कराती रही है। आज जो गुस्सा इस देश के नौजवान लड़के एवं लड़कियों में दिख रहा है , माताओं,बहनों एवं बूढों में दिख रहा है वो सिर्फ एक घटना के विरोध में नहीं है।

इसके पीछे एक के बाद एक होती बहुत सी घटनाएँ है । वो ये देख देख कर थक गए थे । वो ये देख रहे थे की कोई भी घटना हो जाती थी दो चार दिन मिडिया में रहने के बाद इतिहास का एक पन्ना बनकर रह जाती थी । चाहे वो देश के लूटेरों की हो या बलात्कारियों की । मै पूछता हूँ की क्या हुआ निठारी वाले कांड का ? क्या हुआ गोपाल कांडा का ? न जाने ऐसे कितने मामले है जो की एक जांच कमिटियों में ही अपना दम तोड़ देती है । ये जांच कमेटियां बनाई ही जाती है इसलिए ।
आज दिल्ली पुलिस ने जितनी क्रूरता दिखाई है उसकी जितनी भी भ्रत्सना की जाये वो बहुत ही कम होगी । आज शायद ही कोई हिंदुस्तानी होगा जिसका खून नहीं खौला होगा । धिक्कार है ऐसी क्रूर सरकार पर, सरकार नहीं हिटलर पर जो न तो बच्चे देखती हैं न बूढ़े, न लड़कियों को देखती है, न माताएं किसी को नहीं छोड़ते अपनी मर्दानगी दिखने में ।
आज मैंने देखा की श्रीमती शीला दीक्षित ने अपना दामन बचाने के लिए दिल्ली पुलिस को जिम्मेवार ठराया है । श्री संदीप दीक्षित ने पुलिस कमिश्नर को क्योंकि उनके साथ एवं उनकी गाड़ी को थोडा नुकशान भीड़ ने पहुंचा दी थी । जब उनकी गाड़ी के साथ थोड़ी छेड़ छाड़ हुई तो कितना गुस्सा आया उनको की तुरत आनन फानन में दिल्ली पुलिस को जिम्मेदार ठहरा दिया । दीक्षित जी जरा सोचिये उनपे क्या बीतती है जिनके बहन बेटियों के साथ बलात्कार हुआ है ?

जो प्रदर्शनकारी भीड़ शांतिपूर्वक अन्याय के खिलाफ प्रदर्शन कर रही थी वो भला उग्र कैसी हो गई मुझे तो इसमें भी सरकार की ही एक बहुत बड़ी साजिस दिख रही है । इस भीड़ में इस सरकार द्वारा शायद बदमाशों को शामिल करावकर पुलिस को कारवाही करने के लिए एक बहाना दिलवाना एक मकशद रहा हो। ये मेरी आशंका है जो बाद में सामने तो आ ही जाएगी ।
इतनी क्रूर सरकार हमने नहीं देखि । इस सरकार का रवैया हमेशा ही इनके खिलाफ आवाज़ उठाने वाले का मुह बंद करने वाला रहा है। हमेशा से ही लोकतंत्र की आवाज़ दबाने वाला रहा है।
आज जनता ने इस सरकार का वो घिनौना रूप भी देख लीया है । आज इस हिटलर सरकार ने जो अपने ऊपर उठती आवाज़ को दबाने के लिया लोकतंत्र के एक स्तम्भ जो की मिडिया है उसपर हमला बोलकर लोकतंत्र की बची खुची जान को भी बहार निकाल दिया । जिस तरह से महिला रिपोर्टर (न्यूज़ एक्स ) पर आंसू गैस के गोले दाग दिए (इस रिपोर्टर के पैर में 6 टाँके लगे है ), जिस तरह से टाइम्स नाउ के कैमरे तोड़ दिए , जिस तरह से न्यूज़ चैनेल के रिपोर्टरों के पैर एवं सर तोड़े वो लोकतंत्र पर एक बहुत बड़ा हमला है । न जाने कितने लोग इस एकतरफा हिटलर वाली कारवाही में घायल हुए वो तो दो चार दिन के बाद ही पता चलेगा ।
मिडिया पर हमला क्यों ? किसने दिए ये आदेश ? ऐसा लग रहा था जैसे मुंबई पर हमले के वक़्त टीवि देखकर पाकिस्तानी आकाओं ने निर्देश दे रहे थे ठीक उसी तरह से ये हिटलर के नुमाइंदों ने दिल्ली पुलिस को टीवी स्क्रीन को देखकर दे रहे थे ।
इस सरकार को जब भी अपने ऊपर हमले होते दिखती है तब तब ये ऐसे ही नपुंसकता दिखाती रही है ।
जब दिनभर ये सब कुछ चल रहा था तब क्यों नहीं सरकार सामने आई ? ऐसा लग रहा था की इस देश में न तो प्रधान मंत्री है न ही कोई राष्ट्रपति । मंत्रियों की तो बात ही बेकार । क्या कोंग्रेस पार्टी नेता विहीन हो गई है ? क्या किसी में हिम्मत नहीं रह गई है ? की इस परिस्थिति को संभाले। जनता के सामने तो वो आएगा जिसने जनता का विस्वास जीता हो यहाँ तो सब के सब खो चुके है । सबकी मति भ्रष्ट हो गई है तभी हमारे नौजवानों भाइयों एवं बहनों पर क्रूरता दिखा दिए । नपुंसक कहूँगा मै ऐसी सरकार को जो अपने ही लोगों को जो की न्याय की मांग कर रहे थे दौड़ा दौड़ा कर हाथ पैर तोडा , सर फोड़ा । बदतमीज़ी किया हमारी माताओं एवं बहनों के साथ । सारी दुनियां ने देखा की किस बदतमीज़ी के साथ दिल्ली पुलिस के जवानों ने लड़कियों को बदतमीज़ी के साथ हाथ लगाया , बेरहमी से घसीटा , लाठियों से पिटा । जनता कभी माफ़ नहीं करेगी इस क्रूरता को ।

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