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पंजाब विधानसभा जिसे अकाली दल का गढ़ कहा जाता है, वहां इस बार किसकी सरकार बनेगी यह कोई नहीं कह सकता. 30 जनवरी को पंजाब में विधानसभा चुनाव होने को हैं लेकिन क्षेत्र में एक्जिट पोल के बार-बार बदलने से सभी हैरान हैं. कोई भी आंकड़े किसी की जीत को सुनिश्चित नहीं करते. दरअसल पहली बार ऐसा हो रहा है जब अगली सरकार किसकी होगी, इसके संकेत मतदान से 15 दिन पहले भी उभरे न हों. न किसी के हक में कोई लहर या हवा है और न ही किसी की मुखालफत में ही सुर सुनाई दे रहे हैं.
अकाली दल और भाजपा के खेमे में परेशानी है तो कांग्रेस उनकी परेशानी को अपनी जीत बनाने के लिए अपने बड़े नेताओं को पंजाब का दौरा करवाने में लगी है. कुछ समय पहले भाजपा ने पंजाब में विकास का मुद्दा उठा अकाली दल को अच्छी तरह घेरा था लेकिन अकाली दल ने हालात को भांपते हुए थोड़े-बहुत विकास कार्य कर सबको चुप करा दिया. ऐसे में अकाली दल को किस मुद्दे पर घेरा जाए यह किसी को समझ में नहीं आ रहा है.
यहां तो कांग्रेस किसी को भ्रष्टाचार के मुद्दे पर भी नहीं घेर सकती क्यूंकि वह खुद केन्द्र में है और उसकी सरकार पर कितने भ्रष्टाचार के आरोप हैं उन्हें वह खुद नहीं गिन सकती. पंजाब में भ्रष्टाचार अब कोई मुद्दा नहीं बचा है. बात केवल विकास की हो रही है. कांग्रेस घोषणापत्र से भी यही आभास होता है कि पार्टी चुनावी सभाओं में चाहे कुछ कहे मगर भ्रष्टाचार को उसने इस बार अपने घोषणापत्र में ज्यादा तरजीह नहीं दी है. महंगाई जरूर मुद्दा बन सकती है पर इसे कांग्रेस एक मुद्दे की तरह उठाए यह सही नहीं होगा.
कहां गए यह पुराने मुद्दे
सभी दल पुराने मुद्दों को इस बार तिलांजलि दे चुके हैं. कांग्रेस आतंकवाद की बात नहीं कर रही तो अकाली दल ने भी गड़े मुर्दे उखाड़ने से अब तक गुरेज कर रखा है. न राजधानी चंडीगढ़ पर हक जताया जा रहा है और न ही पंजाबी बोलते इलाकों के बारे ही कोई बात की जा रही है. अरसे से लंबित यह मुद्दे कभी राजनीतिक पार्टियों के घोषणापत्र की शोभा होते थे.
मतदाताओं का रुख देखकर राजनीतिक दलों ने भी समझदारी दिखाई है और कल्याण योजनाओं पर ध्यान केंद्रित किया है. कांग्रेस के घोषणापत्र में ऐसी कितनी ही योजनाओं का जिक्र है जो गरीब, दलित या पिछड़े वर्ग से जुड़ी हैं.
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