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कल तक वोट मांगना, चुनाव प्रचार करना, राजनीति में कदम जमाना या तो मर्दों का काम माना जाता था या फिर बड़े घर की औरतों का ही कार्य समझा जाता था लेकिन दिल्ली नगर निगम में महिलाओं की 50 फीसदी भागीदारी ने इस पूरे माहौल को बदल कर रख दिया है. अब मध्यम वर्गीय परिवार की महिलाएं भी अपने सपनों को सच करने के लिए मैदान में उतर चुकी हैं और दिल्ली की गलियों में घर-घर जाकर वोट मांगती नजर आ रही हैं. और सिर्फ अच्छी कालोनियों की ही नहीं दिल्ली के ग्रामीण इलाकों में भी महिलाएं पूरे जोश से निगम पार्षद बनने की तैयारी में हैं. चाहे निगम पार्षद के कार्यों की जानकारी हो ना हो लेकिन एक बार कुर्सी मिलने के बाद सब सीख लेने का भरोसा कई महिलाओं को इन दिनों दिल्ली की गलियों में घुमा रहा है.
दिल्ली नगर निगम चुनाव – पप्पू नहीं दबंग बनिए
शहर के हर गली-कूचे में महिलाओं की मौजूदगी निगम के चुनाव में उत्साह का नया रंग घोल रही है. सिर पर टोपी, हाथ में झंडा और जुबान पर तरह-तरह के नारे और गीतों से मतदाताओं को रिझाने निकलीं इन महिलाओं को चुनाव प्रचार करते देखना एकदम नया अनुभव है.
कुछ समय पहले की ही बात है जब दिल्ली में महिला प्रत्याशियों की गिनती अंगुली पर की जा सकती थी लेकिन आज गिनती के लिए आपको काफी दिमाग लगाना पड़ सकता है. दिल्ली नगर निगम के बंटवारे और महिलाओं के लिए 50 फीसदी सीटें आरक्षित हो जाने से माहौल में यह तब्दीली दिख रही है.
जोर-शोर से जारी है दिल्ली नगर निगम चुनाव की गहमागहमी
महिलाओं का प्रचार करने का तरीका भी बहुत ही अलग है. यह एक जगह मैदान में सभा या कोई बड़ा सम्मेलन नहीं करतीं बल्कि घर-घर जाकर प्रभावी चुनाव प्रचार करती हैं. इस तरह के प्रचार से सबसे ज्यादा लाभ मिलता है. हालांकि जानकारों की मानें तो निर्वाचन आयोग की बंदिशों ने प्रत्याशियों के सामने विकल्प सीमित कर दिए हैं. घर-घर घूम कर वोट मांगना सबसे बेहतर विकल्प है. पर ऐसे में महिला प्रत्याशियों को प्रचार के लिए महिलाओं की टोली की जरूरत पड़ रही है और इन महिलाओं की टोली की आवभगत करने में भी अच्छा-खासा चूना लग रहा है.
एक अनुमान के मुताबिक एक टोली में कम से कम 30-40 महिलाएं होती हैं जो हर इलाके में घूम-घूम कर प्रचार करती हैं. अब इनमें से हरेक महिला को दिन के 200-250 रूपए नकद, दो समय का भोजन और एक समय की चाय उपलब्ध कराई जाती है. यानि एक ही टोली का खर्चा प्रत्याशी को अच्छा-खासा चूना लगा जाता है. लेकिन इस तरह के प्रचार का फायदा भी मिलता है.
चुनावों के दौरान उन गरीब महिलाओं को काफी अच्छा मौका मिलता है पैसा कमाने का जो दिन भर घर बैठी रहती हैं. चुनावी रैलियों के दौरान भीड़ इकठ्ठा करना और नारे लगाकर दिन के 250 रू. कमा लिए जाते हैं साथ में दो वक्त की रोटी मुफ्त. पर चुनावों के दौरान गरीब लोगों का किसी भी पार्टी के लिए प्रचार करना यह साफ करता है कि गरीब को अगर कुछ पैसे और दो वक्त की रोटी दे दी जाए तो वह किसी भी पार्टी का प्रचार करने के लिए तैयार हो जाते हैं.
लेकिन महिला प्रत्याशियों के आने से चुनावी खर्चे और किसी विवादों की संख्या कम नहीं हुई. महिलाएं मैदान में है तो बेशक घमासान कम हो लेकिन इस घमासान की वजहें जरूर औरतों से मेल खाती हैं मसलन किस गली में कौन प्रचार करेगा. किसी विरोधी पार्टी के ऑफिस के सामने ही उसके खिलाफ नारेबाजी करना अब आम बात है.
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